tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post3073648195261130003..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: चांदी की पतली तार फंसी गर्दन में... बौखलाया सिंह भागता जंगल में...सागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-46272088439843745672012-07-28T20:24:48.575+05:302012-07-28T20:24:48.575+05:30पतंग का बार बार झपकर नीचे गुत जाना, दो डोर बाँधे त...पतंग का बार बार झपकर नीचे गुत जाना, दो डोर बाँधे तो सधी रहती है पतंग।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-8960484138754829632012-07-28T15:29:01.469+05:302012-07-28T15:29:01.469+05:30सागर भाई , आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले...सागर भाई , आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर<br /><br />आपके जैसा लेखन ब्लॉग जगत में किसी का नहीं...विलक्षण...कमाल इस बार ही नहीं हर बार...वाह. <br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-43581677930476217742012-07-27T19:52:58.974+05:302012-07-27T19:52:58.974+05:30वाह!
क्या अल्फाज़ हैं! क्या बयानी है!वाह! <br /><br />क्या अल्फाज़ हैं! क्या बयानी है!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com