tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post4094320246393647428..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: इतिहास पलटो नदी का जहां खड़े हो कभी वहीँ से बहा करती थीसागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-53616001611846928212012-03-09T15:54:59.242+05:302012-03-09T15:54:59.242+05:30ये पोस्ट अद्भुत है...इसमें कई बार खुद का अक्स नज़र...ये पोस्ट अद्भुत है...इसमें कई बार खुद का अक्स नज़र आया...हम किसी लेखक को इसलिए बेहद पसंद करते हैं कि कहीं न कहीं उसके लिखे में खुद को पाते हैं...ये आत्ममुग्धता नहीं तो और क्या है...किन्ही खूबसूरत शब्दों में खुद को तलाशते हुए ऐसे ही किसी नदी में कोई क्यूँ न छलांग लगा दे...तुम रच ही ऐसा मोहक रहे हो सागर...हर पंक्ति पर निसार जायें जैसा कुछ...शुरुआत ही एकदम कातिलाना हुयी है यूँ तो पर पूरी पोस्ट में कई बार पैर फिसलते बचे हैं...वोल्गा का पानी जाने कैसा होगा...<br /><br />'मुझे लगता है हमारे प्यार में अब वो स्थिति आ चुकी है जब मैं तुम्हें उस पुल पर बुला, बिना कुछ कहे ईशारा मात्र करूंगा और तुम वोल्गा में छलांग लगा दोगी। अरी पगली! जितनी सीधी तुम थी उतने हम कहां थे। तुम प्रेम जीने लगी थी और मैं प्रेम खेलने लगा.'<br /><br />ओह...मत खेलो प्रेम से रे पगले, कि इसके उलट भी स्थिति आती है...मगर जब आये तब आये...फिलहाल...लिखा बेहद खूबसूरत और मंजा हुआ है...तलवार की धार पर के नर्तन जैसा. <br /><br />जियो!Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-56324717199024232412012-03-09T11:00:53.797+05:302012-03-09T11:00:53.797+05:30आपको पढ़ते हुए लगता है मन की किसी गहरी नदी में छला...आपको पढ़ते हुए लगता है मन की किसी गहरी नदी में छलांग लगा दी हो। आपने मनोविज्ञान पढ़ा है क्या। बहुत बढ़ियादीपिका रानीhttps://www.blogger.com/profile/12986060603619371005noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-53310270467717020902012-03-05T22:48:09.083+05:302012-03-05T22:48:09.083+05:30Photo nahin dikh raha...fir se chipkaoPhoto nahin dikh raha...fir se chipkaoPuja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-61947363517787210172012-03-05T21:35:03.705+05:302012-03-05T21:35:03.705+05:30न जाने हमें क्या भाता है,
तुम्हें पर क्या समझ आता ...न जाने हमें क्या भाता है,<br />तुम्हें पर क्या समझ आता है?प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-58766848768932075752012-03-05T20:34:15.494+05:302012-03-05T20:34:15.494+05:30प्रेम को जीने और प्रेम को खेलने में कितना फर्क हैप्रेम को जीने और प्रेम को खेलने में कितना फर्क हैरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.com