tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post518626447409590576..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: लहंगा शॉप @ चांदनी चौकसागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-15523154931100330972012-08-22T11:07:21.679+05:302012-08-22T11:07:21.679+05:30अहा दर्पण,
एक अरसे बाद मुझे कुछ अच्छा कमेन्ट मिल...अहा दर्पण, <br /><br />एक अरसे बाद मुझे कुछ अच्छा कमेन्ट मिला है... दाद देनी होगी आपके यादाश्त की भी... लेकिन में कहानी कहाँ लिखता हूँ ? सोचालय आइडिया को मंज़रनाम बना कर रखता है बस.... सोचालय एक मूड स्विंग है... इसके आड़ में ये अयोग्यता भी बैठी है कि कहानी लिखनी मुझे नहीं आती (वैसे तो कुछ भी नहीं आता, ध्यान रहे) लेकिन कहानी लिखने के लिए जो धैर्य, शैली, मनोभाव, उतर चढ़ाव, शुरुआत, मध्य और अंत, क्लाइमेक्स चाहिए उन सब से अनभिज्ञ हूँ... ये बहुत अनुशासन का काम लगता है...<br /> <br />अलबत्ता ये आईडिया जब वाकई गंभीरता से री-राईट किये जायेंगे तो बहुत बदलाव होगा. अभी तो बस मगर यूँ ही मामला है. <br /><br />कई बार लगता है कि मैं निरा गधा हूँ चार साल में तो बेकार से बेकार भी अच्छी रेंज हासिल कर लेते हैं.. कुछ कहना सीख जाते हैं.. किसी विधा को अपना लेते हैं मैं अब तक आवेगों पर लिख रहा हूँ... <br /><br />"वैसे मुझे अधूरी कहानियों के लेखक से बड़ा लेखकिय अपनापन लगता है "<br />आपकी ये बात सौ प्रतिशत सही है.... मुझे लगता है इन्ही अधूरेपन को हम दिल से निकालते हैं, इसके बाद तो ऐयारी है.<br /><br />इस मामले में आप मुझसे कहीं ज्यादा ऊँचे हैं. सो मैं आपके ड्राफ्ट कि चाभियों का सही चयन नहीं... हाँ मुझे इतने में मज़ा आता है कि प्लाट पर मिल कर लिखें... <br /><br /><br />कमलेश्वर और मोहन राकेश वाली "दोस्ती" है.सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-27193509589745260922012-08-22T03:28:10.520+05:302012-08-22T03:28:10.520+05:30बाबू के चरित्र हनन आई मीन चरित्र चित्रण से आगे बढ़े...बाबू के चरित्र हनन आई मीन चरित्र चित्रण से आगे बढ़े कथा तो कुछ कहें । :-P :-D <br />आपकी ऐसी ही एक कथा दो तीन भागों के बाद अपने अंत बिना ही अंत को प्राप्त हो गयी । शायद किसी मुहल्ले की कहानी थी । डी वी डी के दुकानदार वाली । वैसे मुझे अधूरी कहानियों के लेखक से बड़ा लेखकिय अपनापन लगता है । अग़र आप ये पूरी कर पाएँ तो अपने ड्राफ्ट की चाबी आपको सौंप दूँगा । आख़िर कमलेश्वर और मोहन राकेश वाली दोस्ती है । पैर तले की ज़मीन आप पूरी करना ।<br />;-)दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-62175053908148323122012-08-21T00:02:29.319+05:302012-08-21T00:02:29.319+05:30Bahut rochak likhte hain!Bahut rochak likhte hain!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-50437764987909973112012-08-20T20:33:10.952+05:302012-08-20T20:33:10.952+05:30लहँगे जैसे मँहगे विषय में हम शान्त रहना बेहतर समझत...लहँगे जैसे मँहगे विषय में हम शान्त रहना बेहतर समझते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com