tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post5641100250927401703..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: अपडेट सागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-64074917974727776622015-07-24T11:50:32.835+05:302015-07-24T11:50:32.835+05:30खुद को खोना, पाना, लिखना, बहना ही जिंदगी है हर समय...खुद को खोना, पाना, लिखना, बहना ही जिंदगी है हर समय झरने की तरह बहना संभव नहीं, जिस दिन खड़ा पानी हो जाएंगे, झील बनने का मन होगा, जिस दिन झील हो जाएंगे नदी बनने का, जिस दिन नदी बन जायेगे तो समुद्र बनने का और फिर ताउम्र समुद्र की लहर बन किनारों पर सर पटकते रहने की जगह चुनेंगे बूंद बनना और फिर एक दिन धो डालेंगे कोई पत्ती, सौंधी खुशबु से महका देंगे कोई कोना, खिड़की पर खींच देंगे लकीरे, लिख लेंगे एक कविता, कोई कहानी और कुछ देर को छोड़ देंगे अपनी अँगुलियों के निशा पढ़ने वालों के दिल की दीवारों पर... neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-61396375156895482112015-07-07T17:30:34.427+05:302015-07-07T17:30:34.427+05:30thahro....socho fir chalo
kai baar jyaada vichaar ...thahro....socho fir chalo<br />kai baar jyaada vichaar karne se khyaal ud jaate hai sonalhttps://www.blogger.com/profile/03825288197884855464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-43691921040237046802015-07-07T15:55:08.683+05:302015-07-07T15:55:08.683+05:30जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, बात वही है। ख़ुद से भागते...जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, बात वही है। ख़ुद से भागते जाने की। <br /><br />जितने भी शब्द तुमने यहाँ इस्तेमाल किए हैं, उन्हे ध्यान से देखो। 'मेनीपुलेट', 'भ्रष्ट', 'टेकेन ग्रांटेड', 'कंफ्यूज' सब किस तरफ़ ले जारहे हैं। कोई तो धागा देते होंगे हाथ में? <br /><br />लिखना है तो इतनी सजगता कहीं बाहर से आए, यह अच्छी बात नहीं। अंदर सब 'मकैनिज़्म' मौजूद है। वह देख लेगा। <br /><br />और यह जो न लिखना है, शायद ज़िद है, सरल होने की। और एक बात तो तुम ख़ुद कह गए, मीडियम और ख़ुद के बीच सामंजस्य बिठाने वाली। <br /><br />पिछली पंक्ति में आई आख़िरी वाली दोनों बातें काबिलेगौर है। और हमें पता है, तुम लौट आओगे..:)शचीन्द्र आर्यhttps://www.blogger.com/profile/04772878588085381288noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-87453523576364916942015-07-06T22:29:48.453+05:302015-07-06T22:29:48.453+05:30ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ है..अमूमन ऐसा तब होता ह...ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ है..अमूमन ऐसा तब होता है जब हम कुछ असाधारण या सभी को अचम्भित कर देने के लेखन की तैयारी में रहते हैं, हम या तो हर बार अपना सर्वश्रेष्ठ लिखना पसन्द करते हैं या तो लिखना ही पसन्द नहीं करते और अपने लिखे को काटकर डायरी बन्द कर देते हैं ।अभिषेक शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/14627282206279494025noreply@blogger.com