tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post6766058571261552837..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: एक ही रंग दिखाता है सात रंग भीसागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-52898034887783275322012-12-07T16:00:46.629+05:302012-12-07T16:00:46.629+05:30और तब
निरक्षर लिखता है पहला अक्षर...
स से सागर. और तब <br />निरक्षर लिखता है पहला अक्षर...<br />स से सागर. Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-70402974581299911092012-05-27T09:29:00.589+05:302012-05-27T09:29:00.589+05:30:)
पता है नीरा...अक्सर सागर को पढ़ते हैं तो समझ न...:) <br />पता है नीरा...अक्सर सागर को पढ़ते हैं तो समझ नहीं आता कि लेखन की तारीफ करें या लेखक के लिए परेशान हों. <br />और खुद का जो हाल होता है वो तो इस माथापच्ची में पड़ना भी नहीं चाहता.Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-46832079770716142132012-05-23T03:57:45.507+05:302012-05-23T03:57:45.507+05:30नज़रअंदाज़ करने के लिए कितनी ताकत चाहिए तू जानती ह...नज़रअंदाज़ करने के लिए कितनी ताकत चाहिए तू जानती है?<br />बहुत वज़नदार बात! <br />प्लीज़ हमारी पूजा को मत रुलाया करो वज़नदार बातों के दबाव से!neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-68811408472727935262012-05-17T15:40:51.896+05:302012-05-17T15:40:51.896+05:30accha likhe ho.accha likhe ho.vandana khannahttp://gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-24516474908586564452012-05-14T18:33:51.411+05:302012-05-14T18:33:51.411+05:30फिर मेरी आंखों में गहरे झांका जैसे कह रहा हो नज़रअ...फिर मेरी आंखों में गहरे झांका जैसे कह रहा हो नज़रअंदाज़ करने के लिए कितनी ताकत चाहिए तू जानती है?<br />--<br />पोस्ट को कई बार पढ़ते हुए बचपन के दिन याद आये...पटना में छत पर की गयी सहेलियों से अनगिन बातें याद आयीं...हाल हाल तक का रोना बिलखना याद आया...तडपना...सहमना याद आया...मन के अंदर जिस लड़की को गला घोंट कर मार दिए थे वो फिर से सामने आ कर खड़ी हो गयी और अनगिन लड़कों के नाम गिनाने लगी. <br />तुम जब ऐसा लिखते हो...समय का पहिया उल्टा घूमने लगता है...जिन गलियों को छोड़ बड़ी मुश्किल से दिल्ली का रोना रोना शुरू किये हैं वो किसी पुराने घाव जैसा दुखने लगता है.<br />--<br />ऐसा मत लिखा करो सागर.Puja Upadhyayhttps://www.blogger.com/profile/15506987275954323855noreply@blogger.com