tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post7041278235405354932..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: B. Call log 07/04/2012 8:28PM last call duration: 03:38:21सागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-9949425784986311672013-04-19T19:00:21.970+05:302013-04-19T19:00:21.970+05:30सूखे गले में शराब की पहली कड़वी घूंट ........सूखे गले में शराब की पहली कड़वी घूंट ........डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-77049481509890844232013-04-19T18:08:10.400+05:302013-04-19T18:08:10.400+05:30मेट्रो के कांच के उस पार से विदा किया है किसी को क...मेट्रो के कांच के उस पार से विदा किया है किसी को कभी? वो सामने होता है मगर छूटता हुआ, उसे देख सकते हैं पर छू नहीं सकते, उतरने की ख्वाहिश है पर ट्रेन चल चुकी है. <br /><br />कि जब तक अगली ट्रेन पकड़ कर वापस इस मेट्रो स्टेशन पर आओगे, सब बदल चुका होगा और वो जा चुका होगा जिसे रोकने की खातिर तुम अपने रास्ते बदलने को तैयार थे,पीछे लौटने को तैयार थे. <br />किसी के होने को बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है.जाने को भी. याद को भी. <br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-20644456700632700962013-04-19T15:02:02.154+05:302013-04-19T15:02:02.154+05:30पूँछ रहे, जीवन है कैसा,
यादों की ऐसी कठपुतली,
कहीं...पूँछ रहे, जीवन है कैसा,<br />यादों की ऐसी कठपुतली,<br />कहीं दूर पर उँगली चलती,<br />छम छम नाच रहे हम।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-67206970533241907152013-04-19T09:53:38.194+05:302013-04-19T09:53:38.194+05:30:(:(Shekhar Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02651758973102120332noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-18961167258684799202013-04-18T17:53:49.452+05:302013-04-18T17:53:49.452+05:30अपने वजूद पर उन यादों की हमने वैसे ही कोटिंग कर रख...अपने वजूद पर उन यादों की हमने वैसे ही कोटिंग कर रखी है जिससे एक्सट्रीम अंदर और बाहर तो आज़ाद हैं मगर बीच में हम बस गुलाम हैं।<br /> <br /><br /> इस गुलामी से सभी अभिशप्त हैं और आज़ादी फूंकती रहती है जिन्दगी की साँसे ..... neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.com