tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post7366786966398839448..comments2024-03-11T14:25:01.160+05:30Comments on सोचालय: जलता और पकाता चूल्हासागरhttp://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-24465978445077252712011-01-01T11:32:38.253+05:302011-01-01T11:32:38.253+05:30Apoorv Miyaan bhi jawan hai iska matlab :)Apoorv Miyaan bhi jawan hai iska matlab :)अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-34350379490761200302010-12-30T22:16:56.487+05:302010-12-30T22:16:56.487+05:30ओये-होये...इत्ते रोमांटिक कबूतर!!:-)
और फिर
"...ओये-होये...इत्ते रोमांटिक कबूतर!!:-)<br />और फिर<br />"- हाँ मेरा दिल धड़का. <br />- तो समझो तुम भी जवान हो."<br /><br />..भई दिल तो हमारा भी धड़का..पढ़-पढ़ कर!! :-)अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-26708634480409297402010-12-30T14:31:53.022+05:302010-12-30T14:31:53.022+05:30@ मुक्ति,
शुक्रिया, आपका यह सच ऊपर लिखे गए सच के ...@ मुक्ति, <br />शुक्रिया, आपका यह सच ऊपर लिखे गए सच के सम्बन्ध में कहे जाने का एक एक्सटेंशन है. सोचालय पर अमूमन पोस्ट नशे में लिखी जाती है. आज सुबह मैंने जब खुद इसे फिर से पढ़ा तो ब्लंडर गलतियाँ दिख रही हैं. लेकिन पोस्ट करते समय अगर मैं फिर से पढ़ लूँ तो खुद को कन्विंस नहीं कर पाता हूँ की यह कहने लायक कोई बात है, (ऐसे में साल लग जायेंगे मुझे एक पोस्ट कहने में) <br /><br />"व्याकरणिक गलती" यह पहली बार नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि ब्लॉग पर पढ़ते समय आप परोसे गए बात को पढने कि मनः इस्थिति बना लेते हैं. आप जो पढना चाहते हैं वो निकाल ही लेते हैं जैसे आपने निकाला या फिर मुझे प्रूफ रीडर की जरुरत है. <br /><br />अब सुधार भी नहीं सकता फिर आपके कमेन्ट का मतलब ख़त्म हो जाएगा सो आपका ह्रदय के अंतिम छोर से भी धन्यवाद!सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-62451633957658304012010-12-30T08:56:55.333+05:302010-12-30T08:56:55.333+05:30कबूतरों ने सारी समझदारी अपहृत कर ली है, मानवता से।...कबूतरों ने सारी समझदारी अपहृत कर ली है, मानवता से।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-82376456849860521692010-12-30T06:25:15.205+05:302010-12-30T06:25:15.205+05:30सागर जी बिलकुल सही कहा.सागर जी बिलकुल सही कहा.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3688148429960405201.post-31743105120036485652010-12-29T20:49:47.226+05:302010-12-29T20:49:47.226+05:30सोलह आने सच बात, भले ही कबूतरों ने कही हो. तुम्हार...सोलह आने सच बात, भले ही कबूतरों ने कही हो. तुम्हारी तारीफ़ क्या की जाय. तुम सच में रिश्तों के कितने करीब जाकर देख लेते हो. सच में क्या दूसरों के घर में झाँकने की आदत है ? <br /> इस पोस्ट में कई वैयाकरणिक त्रुटियाँ हैं, जैसे इस लाइन में "ऐसा होने के कारण कई रहे होंगे और अब चूँकि वो अपनी जवानी खो चुकी है और सारे बदनामियाँ और जालालत उस उम्र में दोनों ने अपने सर माथे ले चुके हैं और पूरा परिवार इसका अभ्यस्त हो चुका है तो हम भी सोचना छोड़ इस रिश्ते को वैसा ही अपना लेते हैं जैसा सब मान चुका है" "सारे बदनामियाँ" का जगह "सारी" होना चाहिए था, जालालत सही है या जलालत, "दोनों ने" के साथ "ले चुके हैं" का प्रयोग सही नहीं है, इसमें से "ने" हटा दें, तो अच्छा हो. आखिर में "जैसा सब मान चुका है" नहीं "चुके हैं" होना चाहिए.<br />चलो अच्छा, चलेगा. अब कबूतरों की हिन्दी में थोड़ी बहुत कमियां तो हो सकती हैं ना :-)muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.com