सोहर क्या था - अलहा मियां हमरे भैया का दियो नन्दलाल। ऐ मेरे अल्लाह! मेरे भाई को भगवान कृश्ण जैसा बेटा दे। अब ये मुसलमान घराने का गाना है। -आनन्द भवजे मील बैंठी... आरे लगाये मनावै - हजरत बीबी कह रही हैं कि अली साहब नहीं आये हैं। सुगरा तोते से कह रही हैं और अगर वो कहीं न मिले, ढूंढने जाओ कहीं न मिलें तो वृन्दावन चले जाना। ``है सबमें मची होली अब तुम भी ये चर्चा लो। रखवाओ अबीर ए जां और मय को भी मंगवा लो। हम हाथ में लोटा लें तुम हाथ में लोटिया लो। हम तुमको भिगों डालें तुम हमको भिंगो डालो। होली में यही धूमें लगती हैं बहुत फलियां। है तर्ज जो होली की उस तर्ज हंसो बोलो। जो छेड़ है इस रूत की अब तुम भी वही छेड़ो। हम डालें गुलाल ऐ जां तुम रंग इधर छिड़को हम बोलें अहा हो हो तुम बोलो ओहो ओ हो`` मौलाना हसरत मोहानी वो हैं शायर उर्दू के गजल गो शोहवा में जिनके अहमियत बहुत ज्यादा है यानी इकबाल के बाद जिन लोगों ने गजलें वगैरह लिखी हैं, गजलें लिखीं हैं शायरी की है उनमें बहुत अहम नाम है मौलाना हसरत मोहानी का। एक नया रंग, गलल में दिया है मौलाना ने। तो एक शायर की हैसियत से उनका रूतबा बहुत बदन है। मजहबी आदमी थे...
I do not expect any level of decency from a brat like you..