Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2009

Say-ओए-होए, होह-होए

1 बाहर/दिन/यूनिवर्सिटी का मैदान कलाई पूरी तरह से घुमती है। घुटने को नीचे झुकाकर बल्लेबाज बाहर जाती हुई गेंद को स्वाक्यर कट लगाता है। विकेटकीपर सूने ग्ल्बस् को अपनी पेट की ओर खींचता है। दोनों पैर हवा में हैं और निगाहें घास पर फिसलती गेंद पर जो सीमा रेखा के बाहर जा रही है - चार रन। इस तरह, बल्ले का संपर्क छूटते ही गेंद मैदान पकड़ती और एक पर एक क्लासिकल किताबी चौका लगता जाता। `अमित का ऑफ साइड बहुत मजबूत है` अहाते से सनग्लासेज लगाए आती-जाती लड़कियां मुस्कान फेंकती है और मुलायम ताली बजाती हैं जिससे ताली की आवाज नहीं आती लेकिन वो उत्साहवर्धन और `बेटा तू लिस्ट में है` का भ्रम देती है। प्रत्युत्तर में बल्लेबाज भी पसीना पोंछने के बहाने हेलमेट उतारता है और मुस्कान बिखेरता है। मैदान के सारे क्षेत्ररक्षक पलटकर गैलरी की तरफ देखते हैं और ओवरकांफिडेट होकर अपना कॉलर चढ़ाते हुए अगली गेंद पर जान की जानी लगा देने वाली फििल्डंग का जज्बा लिए बल्लेबाज की तरफ बढ़ते हैं। उधर गेंदबाज़ अजीत अगरकर की तरह अगली गेंद फेंकने के लिए अपनी सांसें बटोर रहा है। बल्लेबाज फिर हेलमेट लगाता है, बल्ला हवा में घुमाता

सायलेंस..... एक्शन

"ऐसा क्यों होता है कि कभी मन कुछ नहीं करने का करता है, जिस चीज़ का इंतज़ार बरसों के करते रहते है वो मिल जाने पर उतनी ख़ुशी नहीं रहती?.. ऐसा क्यों होता है की कभी- कभी हर चीज़ से उब जाते है हम... बेवज़ह की थकन क्यों रहती है... मन बहलाने घर से निकलो तो क्यों सर दर्द वापस लिए लौटते हैं... क्यों ऐसा होता है की कोई कितना भी उकसाए उठकर चलने का हौसला नहीं होता... क्यों लगता है कभी-कभी की जो है वो बीता जा रहा है और उसका मुझे कोई मलाल नहीं है," ... अंजू यह दार्शनिकता भरी बात शून्य में निर्विकार, अपलक देखते कहती है... "तुमने कभी किसी को बर्बाद होते देखा है ? मैं खामोश हूँ... "जानते हो! मैं जिंदगी में अच्छा कर सकती थी पर एक मोड़ पर मैंने ऐसा महसूस किया जितना बेहतर मैं बर्बाद हो सकती हूँ शायद बन नहीं सकती... तुम जिंदगी के ऐसे ही मोड़ पर मिले; जहाँ मैंने तुम्हारा साथ सिर्फ इसलिए पड़का क्योंकि तुम बिछड़ने वालों के कतार में सबसे अव्वल नज़र आते हो..." " बह जाने दो ना यह दुनिया, भाड़ में जाए, एक पल में यह झंझट ख़तम... जिसे यह इत्मीन