सुबह आंख खुलते ही जो सबसे पहले चीज़ सोची वो यह कि आज पीना है। पीने को लेकर इतना मूड बनाकर नहीं पिया। हमेशा सोचा और पिया। यह बिल्कुल वैसा है जैसे 15 को मेरी शादी हो यह सोच की बात है लेकिन अगर आज 15 ही हो तो आज शादी का काम करना है। अतः आज पीना है। इसके लिए मैं कल रात से ही मूड बना रहा हूं। यह क्या उम्र है कि मुझे हर चीज़ के लिए अब तैयारी करनी पड़ती है। आज की शाम चाहता हूं कि सारी दुनिया शराब में डूब जाए। दिल करता है अखबार में इश्तेहार दे दूं जैसे एनजीओ संस्थाएं आठ से साढ़े आठ लाईट, पंखा बंद करने का आहवान करती हैं। शराब मेरी नस नस में उतर आए। मैं क्या पीयूंगा यह दोस्तों पर छोड़ता हूं लेकिन पीने में मज़ा तभी है जब मैं अपने हलक में थोड़ी थोड़ी देर रोक कर घंूट लूं। जैसे पुराने भोथरे ब्लेड से चेहरे के नीचे शेविंग करते समय कई जगह से खून की धार बह निकले और बहुत इत्मीनान से उस पर फिटकरी लगाई जाए। होता अक्सर ये है कि पी लेने के बाद मैं एक स्त्री में तब्दील हो जाता हूं, एक पतित स्त्री में। नहीं नहीं मीना कुमारी को याद मत कीजिए। पीना और लिखना बादशादत देती है। कितना भी बूढ़ा हो जाऊं...
I do not expect any level of decency from a brat like you..