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Showing posts from November, 2010

हश्र है वहसते-दिल की आवारगी...

मैंने कहा मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हारे बिना मर जाऊंगा उसने सुना कि मैं आत्म निर्भर नहीं हूँ और मेरा दिल बहुत छोटा है. मैंने कहा मुझे तुम्हारे बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता और अगर तुम एक बार मुझे कह दो कि मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ तो मेरा जीना सफल हो जाएगा, उसने सुना मेरी पसंद बड़ी सीमित है  साथ ही  मेरा संसार भी बड़ा छोटा है और जिसका दायरा छोटा होता है उसके घेरे नहीं बढ़ते और ऐसा आशिक ही क्या जिसे सपने इतने छोटे छोटे हों कि महज़ एक लाइन से जिसका जीना सफल हो जाए. फिर मैंने कहा मुझे मेरी गलतियों के लिए कोई भी सजा दे दो पर मुझे माफ़ कर दो उसने सुना कि मुहब्बत में गिडगिडाने में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती. मैंने उससे क्षणिक सहमति दिखाते हुए फिर उसे फिर कहा कि हाँ मेरा दायरा छोटा जरूर है पर उसके अणु बहुत मजबूत हैं. उसने कोई उदहारण माँगा तो मैंने बताया कि तुम्हारे घाघरे कि तरह जहाँ उत्सुकता लगातार बनी रहती है मेरा आशय उसके क़दमों में पड़े रहने से था जो उसकी  मौन आज्ञा  के बाद ही ऊपर जाता लेकिन उसने सुना कि मर्द मर्द ही होते हैं और पूरी उम्र तिलचट्टे कि तरह चिपकना पसंद करते हैं. मै

पाँव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है

"जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है जहाँपनाह, उसे ना तो आप बदल सकते हैं ना मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिनकी डोर ऊपर वाले की उँगलियों में बंधी है. कब, कौन, कैसे उठेगा ये कोई नहीं बता सकता है. हाः, हाह, हाह, हाह हा........" काली पैंट, झक-झक सफ़ेद शर्ट.. और उसके उपर काली हाफ स्वेटर पहने मैं किसी अच्छे रेस्तरां में वायलिन बजने वाला लग रहा हूँ.. कल मैंने म्यूजिक अर्रेंज किया था... १२ लोगों की ओर्केस्ट्रा को जब निर्देश दिया तो सा रे गा मा प ध नी ... सब सिमटते और मिलते जाते थे...  तीन  रोज़ पहले जब पुराने झील के किनारे मैं आदतन अपने गाढे अवसाद में बीयर की ठंढे घूँट (चूँकि शराब की इज़ाज़त वहां नहीं है) गटकते हुए  एक खास नोट्स तैयार की थी .. तब मेरी वायलिन जिस तरह बजी थी आज लाख चाह कर भी मैं वो धुन नहीं तैयार कर पा रहा हूँ.  दर्द के वायलिन किले में भी सिहरन देती है और हम उन सारे कम्पन को समूची देह में दबाये घूमते हैं.  ट्राफिक पुलिस वाले के लिए चलती रिक्शा का रोक देना कितना आसान होता है.... पर सवारियों को यूँ बिठाये हुए फिर से पहला पैडल मारना बहुत कष्टकारी होता है. भोर

मजनू को बुरा बताती है लैला मेरे आगे...

- सुन सहेली, क्या तेरा वाला भी तेरे को इतना ही प्यार करता है ? - हाँ रे, इतना कि पूछो मत  - फिर भी... बता तो ... कितना - जब वो मेरे साथ होता है, मैं तितली बन उडती रहती हूँ. आसमान बन कर मेरे ऊपर छा जाता है, पहली बार अपने होने पर नाज़ होता है मुझे... तू भी बात ना.. मुझे अकेले बोलते शर्म आती है. - मुझे भी वो बहुत चाहता है और मैं भी, अब तो खाना-पीना कुछ भी नहीं सुहाता.. हर आहट पर कान धरे रहती हूँ... लगता है आ रहा है... और तो और आज सुबह कपडे प्रेस करते वक़्त पापा की कमीज उसकी समझ के प्रेस कर दी ... पापा ने कहा - इत्ते अच्छे से तो  आज तक  तूने मेरी जुराब भी  प्रेस नहीं की.  वो गाना है ना " मैं दुनिया भुला दूंगा तेरी चाहत में " उसी टाइप - ... हम्म... तो तू क्या सोचती है ? - सोचना क्या है, बस प्यार करना है उसी से  - और शादी ? - छिः प्यार और शादी दो अलग अलग चीजें थोड़े ना होती हैं ? - तो ? - तो क्या ? शादी भी उसी से करुँगी - तू बड़ी भोली है रे ! - और तू ? तू तो जैसे सबकी नानी है  **** - जानती है, वो भी जब मेरे को अपने बाहों में कसता है दिल कसम से एकदम झूम सा जाता है - अरे सच्ची, मन क

तीन नंबर की ईंट वाली गली

रूम पर लड़की लाना कोई बड़ी बात नहीं थी वो साकेत से उठाई जा सकती थी और आज २ अक्तूबर यानि ड्राई डे  को भी दारु को जुगाड़ करना भी कोई बड़ी बात नहीं थी वो मुनिरका से मंगवाई जा सकती थी.  बड़ी बात तो अपने साए से पीछा छुड़ाना था. वो डर जो अकेले में आँखें बंद करते ही पैर के अंगूठे को अपने मुंह में लेने लगता है. एक गर्म गलफड़ा अपना भाप छोड़ते हुए बहुत मुलायम लेकिन अघोषित निवाला बनाने लगती है. वो जीव जो रासायनिक प्रयोगशालाओं से निकला लगता है और तमाम हानिकारक अम्ल से लैस है... ...और गर्म गलफड़े में भाप की गर्मी से अंगूठा गायब हो जाता है. अब तो घुटने पर है ..  यह डर  खाए जाता था. सर के ऊपर घूमता पंखा सीने पर गिर जाता और उसकी सारी डालियाँ अलग-अलग हो जाती.. एक पंखा सीने में भी चलता है, थोडा बीमार सा कम वोल्टेज में जैसे चलता हो... जैसे अब प्राण पखेडू उड़ने वाले हों. और यह लगना पिछले कई सालों से चला आ रहा हो और अब यकीन हो चला हो कि अबकी भी मरना नहीं है अलबत्ता मरना महसूस करना है उसकी प्रक्रिया से होते गुज़ारना है.  नीचे देखता तो लगता अब धरती  फट जाएगी तो मैं उसमें नहीं समां सकूँगा क्योंकि समाते

ये करें, वो करें, ऐसा करें, वैसा करें !

With the first light of dawn, came the twittering of birds from the bamboo groves of a nearby village. That filled her with foreboding.  She was not sure how she would relate now to the world of the living. स्क्रिप्ट राइटर ने वर्ड पेज खोला और कुछ लिखने की कोशिश करने लगा.. स्क्रीन पर कर्सर ब्लिंक करता हुआ उसके उँगलियों की प्रतीक्षा करने लगा... कर्सर आधे सेकेण्ड प्रति मिनट की दर से गायब और प्रगट होता यों ऐसी हरकत कर रहा था जैसे उसे उकसा रहा हो  कि   - लिखो यार ! लेकिन ऊपर जो रवीन्द्रनाथ टैगोर का पैरा दिया है उसको आधार मानकर उसे वह आगे नहीं बढ़ा पा रहा था. घटनाओं से वो खुद को रिलेट नहीं कर पा रहा था. उसने पत्रकारिता कोर्स के दौरान टेड ह्वाईट की किताब में पढ़ रखा था कि कई बार दिमाग में खबर नहीं बनते. ऐसे में दिमाग में आते ही नहीं कि शुरुआत कैसे करें, क्या लिखना है. ऐसे में बिना कुछ सोचे-समझे कुछ लिखें और मिटा दें लय पकड़ में आ जाती है ... स्क्रिप्ट राइटर ने भी यही किया. वह कुछ लिखता और सात से आठ शब्द टाइप करने के बाद बाद मुंह से चक्क  मारकर, बैकस्पेस ले मिटने लगता... जिस की-बोर्ड पर उस

तालमेल

मलिन आत्मा ने अपनी केंचुल उतारी, ड्रेसिंग टेबल के दराज़ में पड़ी कुंवारी काज़ल की डिबिया से सपनो का काजल निकाल अपने आँखों में लगा लिया. अब दुनिया वैसी नहीं थी जैसी पिछली रात थी. स्याह काली.  मुस्कुराकर वस्तुओं को देखना आ गया था. किसी की बात शांत चित्त से सुनता. इन्द्रियों के गुण दुनिया में फिर से सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक लगने लगा था. छूना, देखना, महसूस करना, सुनना इन सब प्रक्रियाओं से गुज़रते हुए रोमांच हो उठता था. मौसम के साथ यह बदलाव सुखद था. रही सही कसर तब पूरी हो गयी जब हथेली से पतली परत हटा कर प्रार्थना के नदी में बिना तैराक हुए कूद पड़ा और तलहथी से जा लगा. पर शरीर अभी एक पानी में फूला हुआ लाश नहीं था जो तली से टकराने के बाद गेंद के तरह नदी के सतह पर जा जाता. इस नदी में समर्पण था, अपनी रूह ईश्वर के नाम कर देने का. क्षण -क्षण प्रतिपल रोमांच का अनुभव करते हुए स्वयं को हवाले करने का. आँखों में आंसू थे, रहस्यमयी साक्षात्कार के जिससे लगता पवित्र हाथ आत्मा पर हाथ फेर रही हो और कांटें गिलहरी के त्वचा में बदलती जा रही हो. परिवर्तन संसार का नियम है यह गीता में उसने पढ़ रखा था लेकिन यहाँ स्व

लाइफ टेंड्स टू किधर ?

          माथे पर जब भी ठीक से टीका नहीं लगा तो मन वहीँ अटका. बस नहीं पकड़ सका तो बड़ी कोफ़्त हुई. नल में पानी नहीं आया तो 4 घंटे उसके फ़िक्र में खोया रहा. रात भर बिजली नहीं रही तो रात के कई घंटे उसके गौरो फ़िक्र में रहा.           अक्सरहां ऐसा होता है जो हो जाता है उस पर नहीं सोचते और जो नहीं होता वो घर बना कर बैठ जाता है. यह डर नहीं है ना ही कोई पूर्वाग्रह बल्कि कई बात तो सफलता पूर्वाग्रह कि तरह आता है. जब काम करने को हुए तो पहले कि सफलता से हो गए काम याद आते हैं. हमने कभी उतना नहीं सोचा. सोचा तो बस इतना कि देखे अबकी क्या होता है या इस बार ऐसा करूँ तो कैसा होता है ? यहाँ सफलतापूर्वक पहले हुआ ठीक यही काम एक पल के लिए दिमाग मैं कौंधता है पर उससे संतुष्टि मिली थी और नहीं होना बेचैनी देता है. मैं कह सकता हूँ कि ये ना होना कई और चीजें होने कि वजह बनती हैं.  विचारशून्यता का होना, विचार का होना, उसे कहना और उस पर अमल करना यह सब अलग - अलग बातें हैं ठीक वैसे ही जैसे घर में दर्जनों ए.सी. लगाकर पर्यावरण में चिंता जताते हुए इस मुद्दे को बड़ा बताना और इसके लिए किसी कैम्पेन में शामिल होने की