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Showing posts from June, 2011

ऑफ स्टंप से चार ऊँगली दूर गुड लेंथ गेंद, पॉइंट में चौका मारने का प्रयास, बल्ले का बाहरी किनारा .... और गेंद स्लिपर के हाथ में!

सुबह साढ़े तीन बजे सोया और सवा नौ बजे उठना हुआ। फिर भी अभी नींद आ रही है। पलके आधी मूंदी हुई हैं और ऐसे में गौतमबुद्ध नगर से गाड़ी होती हुई दफ्तर आई। जाने कितना तो विशाल है भारत। कहीं दो सिलसिलेवार मकानों की लड़ी के बीच पार्क होता है जहां कोई बैठने वाला नहीं होता फिर भी माली दिल्ली विकास प्राधिकरण माली लगाते हैं जिनकी तनख्वाह चौदह हज़ार होती है तो कहीं मकानों का ऐसा जमात होता है जिनपर प्लास्तर नहीं चढ़ा होता। उनके बीच कीचड़ भरे रास्ते होते हैं। वो कीचड़ भी गहरा ज़ख्म लिए होता है कि पता चलता है काला पानी दूर तक छींटे के रूप में उड़ा होता है कि अभी अभी कोई ट्रैक्टर उनको रौंदता हुआ गया है। शहर को परखना इन्हीं अलसाए हुए पलों में होता है। शहर तभी चुपके से हमारी रगों में दाखिल हो जाता है। जहां पाॅश इलाकों के रास्तों पर कमर में हाथ डाले, जाॅगिंग करते फिरंगी टाइप लोग घूमते हैं। या बेदखल किए हुए बौद्धिक बुजुर्ग वहीं गंदी मकानों की श्रृंखला में जिंदगी सांस लेती है। सायकल के टायर घुमाते नंगे बच्चों की बाजियां हैं। एक मधुर टुन टुन सा संगीत है। मौसी का किरोसिन लाना है और फलाने का पोता आया है तो द

इस मँझधार में...

ये क्या उमर है कि अब हम प्रेम नहीं करते सिर्फ प्यार से जुड़ी बातें करते है। स्याह खोह से बिस्तर गर्म करती औरतें नहीं है मगर उनके दिए हुए वे पल और ख्याल हैं। ऐसा अब नहीं होता कि तुम देर तक साथ में बैठो तो मैं उठ कर तुम्हारा कंधा दबाने लगूं और थोड़ी देर बाद तुम उठ कर मेरी आंखों में गहरे झांको। हमारी सांसे उलझती। मैं कमरे की दीवार पर तुम्हें घेर दूं और छिपकली की तरह हम दोनों दीवार से चिपक जाएं। हवा का एक कतरा भी फिर हमारे बीच से पार ना होने पाए। अब नहीं होता ऐसा।  XXXXX एक किसी किताब पर हम घंटों बातें करते हैं। तुम्हारी सोच किसी रहस्य किताब की तरह खुलती जाती है और मेरी उमर की उंगलियां उसे पलटते पलटते घिसती जाती है। क्या प्यार में गर्क होना या फिर तबाह हो जाना, उमर बीताना इसे ही तो नहीं कहते कि हो और मेरी किसी पार्क में बैठ कर जिंदगी पर पूरी पूरी शाम बातें करते हैं। जवानी अच्छी थी, एक जूनून हुआ करता था। जवानी अच्छी थी एक जूनून हुआ करता था। कंठ फूटने के दिन थे और खाली वक्त में बाज ख्याल ऐसे आते थे कि जिनसे निजात ना मिले तो किसी चैराहे पर खुद पर किरोसिन छिड़क आग लगा ली जाए। जाने कौन सा

सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

शरणार्थी तो हम थे ही, यह हमें भलिभांति ज्ञात था लेकिन वो होता है न कि किसी दोस्त के जन्मदिन की पार्टी में हम भूलने की कोशिश करते हैं कि हमारे साथ पिछला क्या बुरा हुआ है। तो बस आधी रात को वही थोड़ी के लिए भुला बैठे थे। पानी भरने के लिए जगने का अलार्म लगाया था। कभी कभी ऐसा होता है न कि बिस्तर पर पूरी रात बिताने के बाद भी लगता है दिमाग जागा रहा और हम बस आंखे मूंदे पड़े रहे इस इंतज़ार में कि अब नींद आ जाएगी। अंधेरे में अंधेरा ज्यादा होता है। कोई दोस्त कमरे की लाइट जला दे तो पलकों के पर्दे के पार अंधेरा हल्का हो जाता। ऐसे में आंखें जोर से भींच लेते। मस्तिष्क पर एक अतिरिक्त दवाब बनता और सवेरे लगता है जागते हुए ही रात कटी है। लगता लेकिन नींद तयशुदा वक्त से पांच मिनट पहले खुल गई। मन हुआ नल चेक करें क्या पता पानी आना शुरू हो गया हो। पीठ पसीने से तर थी। बिस्तर पर के चादर में चिपटी हुई..... गीली। उचाट सा उठा, किचन गया, नल खोली। पानी नहीं था लेकिन उसने आने की आहट थी। आधी रात के सन्नाटे में सांय सांय की शोर करता नल... कहने को शांति में खलल डालता लेकिन जिसके मधुर आमद का स्वर... ऐसा ही लगा जैसे सू

उड़ जा सानू नई तेरी परवा...

INT. CAFÉ COFFEE DAY - DAY. चंडीगढ़ के इस कॉफ़ी हाउस में मेज़ के इधर उधर, आमने सामने एक जोड़ा बैठा है। पीने की इच्छा कुछ भी नहीं है फिर भी बात ज़ारी रखने के लिए एक एक कप कॉफ़ी ली जा रही है। जूनी (लड़का) लगभग बेफिक्र है और इकरा (लड़की) कॉफ़ी का सिप लेकर जब टेबल पर स्लो मोशन में रख रही होती है तो हल्की रोशनी में सफेद टेबल कवर पर काली छाया दिखती है। लगभत यही रंग लड़की के आंखों के नीचे भी गहरे काले धब्बे के रूप में मौजूद है। बैकग्राउंड में जैज़ जैसी मद्धम धुन बज रही है। जूनी:       नो......  नॉट इम्पोस्सिबल  ईरू... अब... नहीं हो सकता इकरा:       हाऊ इज़ इट पॉसिबल जूनी ? तुमने कहा था ना हम घर छोड़ देंगे ? जूनी:             नो... आई कांट... मैं घर के अगेंस्ट नहीं जा सकता। इसका रिजल्ट ठीक नहीं होगा। इकरा: बट आई विल गो.... लिसन जूनी.... यू नो आई विल डाई। यू नो ना... जूनी:                ऐसा नहीं होता... इनफैक्ट होगा। हमने साल भर साथ में बिताए ना... ईनफ है। (एक सांस में) सी ईरू !  ऐसे केसेज में हम अपने दिल में ही ग्राऊंड रिएलिटी को ईग्नोर कर रहे होते हैं। टू बी फ्रेंक... हर फ्य

एक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब, जैसे मुफलिस की जवानी, जैसे बेवा का शबाब

जिस तरह का दिल है लगता है थोड़ा बीमार हूं और अब बिस्तर छोड़कर उठ जाने में दो चार दिन ही बचे हैं। कफ सीरफ से चम्मच पर निकाल की दवाई दी जा रही है। मीठी दवाई जिसमें थोड़ी कड़वाहट का पुट मिश्रण भी है उस चम्मच में एक जहाज की भांति हिचकोले खाती हुई लगती है। बहुत गहरे में पैठ बनाती हुई। अत्यंत कलात्मक दृश्य जैसे गदराए समतल पेट पर से फिसलते हुए पानी की एक बूंद नाभि प्रदेश की ओर गमन करती हुई उसमें प्रवेश करती है। क्यों लगता है जैसे बहुत कुछ कर सकता हूं पर हो नहीं रहा ? क्यों लगता है अब सब कुछ अच्छा हो जाएगा लेकिन वैसे का बना रहता है। देर तक कबूतर आकाश में उड़ा तो हमें भी उड़ने का मन हो आया। हमने जी भर का नृत्य किया। नाचने के दौरान हर खुद का पक्षी भी मान लिया और भाव भंगिमा पक्षी जैसी बना कर उड़ने की नकल भी की। गोया सब कुछ कर लिया उड़ने की अनुभूति भी हुई लेकिन उड़ नहीं सका। हम हर बार लौट कर घर को ही क्यों आ जाते हैं ? एक इंसान भावनाओं से इतना लबालब क्यों होता है कि हर बार कल्पना का सहारा लेकर ही खुद को सुकून देना पड़ता है। पढ़ा लेकिन ऐसा कि लगा पूरा नहीं समझ सका। जिया लेकिन अब भी प्यास बाकी है

दोनों के कान में एक-एक लीड था, लगता था गाना बंट रहा हो लेकिन गाना पूरा था.

जन्मदिन पर एकांत कोरस

तुम्हीं कहो आज तुम्हारे जन्मदिन पर क्या लिखा जाए? क्या नाम किया जाए तुम्हारे ? कम पड़ती ऊंगलियों के खानों पर तुम्हारे एहसान गिन कर पल्ला झाड़ लूं या कि किसी दीवार के सहारे पीठ टिकाकर अतीत का कोई दुख भरा दिन याद कर लूं। औपचारिकताएं तो मुझसे होंगी नहीं सो बेहतर है कि तुम मेरे बिना जीना सीख लो। आंख मत मूंदो कि हम हमेशा साथ रहेंगे। सच तुम्हें भी पता है लेकिन मैं जानता हूं कि लड़कियां थोड़ी अंधविश्वासी होती हैं और उनकी समझ में यही रहता है कि क्या बुरा है अगर कुछ करने या मान लेने से उसके मन का वहम बना रहता हो। आखिरकार सभी तरह के खटकरम लोग अपने चैन के लिए ही तो लोग करते हैं। इस बार कुछ ज्यादा ही अलग और अजीब तरीके से तुम्हारा जन्मदिन आया है। मुझे खुद नहीं पता मैं ऐसा कैसे हो गया। मैं ऐसा हुआ या दुनिया ही बदल गई। भद्र पुरूष किसे कहते हैं। उसका पैमाना क्या है और मेरे कथन इतने निर्दयी कैसे हो गए। ऐसा क्या था मेरे और दुनिया के बीच जो नहीं बदल सका। पोल्ट्री फॉर्म में घुटने भर रेत में अंडे  तो  पड़े थे। दुनिया ने मुर्गी बन उसी डैने से वही आबो हवा मुझे भी दिया। फिर क्या था जो रह गया और सही तरीके

बैक लो, बैक लो, और पीछे. हाँ वहां से बाएं !

बूंद जो रूकी होगी गुलमोहर के डंठल पर उसे कहना मेरा इंतज़ार करे। पेड़ के तनों का रंग लिए जो मटमैला सा गिरगिट होगा उसे कहना भुरभुरी मिट्टी देख कर ही अंडे दे। गंगा पार जब सफेद बालू पर परवल पीले फूलों वाला मिनी स्कर्ट पहन कर सीप में मोती सा पड़ा हो तो उसे कहना तुम कुछ दिन और हरे रहो। राजेंद्र प्रसाद के पुण्य स्थल पर अलसुबह हुए बारिश में अपनी ऊंगली से उन सफेद संगमरमर पर कोई नया ताज़ा शेर लिख जाना। इस शहर में दशहरे के वक्त आसमान लाल नहीं होता। अव्वल तो आसमान देखना ही नहीं होता। अपना शहर अच्छा है शिकायत होते ही आकाश तकते हैं। यहां यह शाम के लिए बचा कर रखना पड़ता है। छत पर वाली बाथरूम के बगल वाली जगह खाली रखना जहां हमने न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण वाले नियम की परख की थी। यहां के मकानमालिक उस गज पर भी नोट कमाना चाहते हैं। पाल पोस कर बड़ा किया हुआ जगह अंतर्मन में अपने कुछ स्थान छोड़ जाता है। कई दिनों बाद जब वहां जाना हो तो चार आदमियों से बात करते हुए भी कनखियों से देख लेना होता है। वो शिवालय पर 'शिवम-शिवम' का लिखा होना, महावीर मंदिर पर 'महावीर विनउ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना' द

इस किले के नीचे किसकी सल्तनत है

पांव तो पार्क से ही कांप रहे थे। ज़मीन समतल थी लेकिन चार कदम आगे पर उठी हुई लगती मानो किसी और का चश्मा लगा कर आसपास का जायजा ले रहे हों। कहीं ढ़लान भी लगता तो लेकिन ज़मीन तो समतल थी तो पूरे बदन में एक चोट सी लगती। सब झूठा पड़ रहा था अपने अंदर भी और सामने से देख रही होती दुनिया के सामने मैं भी। यकायक उसे देखा तो एक तेज़ प्यास लगी। बस गुदाज़ बाहों वाली लड़की को थाम लेना चाहता था। विकल्प बस दो ही थे या तो अपने बाजू में उसे तौल लूं या कि खुद बुरादा बन बिखर जाऊं। खत सामने आया तो यही लगा कि सामने रखा वो चेहरा मंजिल को सामने पा कर रो रहा है पर कागज़ों को हथेली से रगड़ने भर से कब प्यास बुझती है ? शिद्दत में गालों के मसाम खड़े हो गए।  हर्फ महके तो लगा कत्ल-ओ-गारत की ज़मीन पर खड़े हैं। यहीं कहीं खुदा भी रहता होगा। वैसे खतों में हमने कई खुदाओं को छोटा होते देखा है। अपना वजूद खोते आशिक देखे हैं और अदृश्य सीढ़ी के आखिरी पायदान पर लटके रिश्ते देखे हैं। कुछ और भी देखा है जो हाशिए पर पर था मगर अब वो वहां भी रहा रही। पता नहीं मुंह के बल किसी पठार पर गिरा होगा या किसी दलदल वाली खाई में।  गर खतों मे

ये खूं की महक है कि लब-ए-यार की खुशबू

इक तरफ ज़िन्दगी, इक तरफ तनहाई दो औरतों के बीच लेटा हुआ हूं मैं --- बशीर बद्र ***** एक भयंकर ऊब और चिड़चिड़ापन, शरीर की मुद्रा किसी भी पोजीशन में सहज नहीं मगर मन अपने से बाहर जाए भी तो कहां ? भरी दुपहरी फुटबाल खेलने की ज़िद और आज्ञा न मिलने पर खुद को सज़ा देना जैसे खुदा जानता हो कि अब खेलने को नहीं मिला तो पढ़ने में या और भी जो तसल्लीबख्श काम हों उनमें मन लगेगा। तो जि़द बांधकर ज़मीन पर ही लोटने लगा।  / CUT TO: / एक दृश्य, ज़मीन पर लोटने का  / CUT TO: / दूसरा, बुखार में गर्म और सुस्त बदन माथे में अमृतांजन लगा पसीने पसीने हो तकिए में सर रगड़ना  ... यातना और याचना के दो शदीद मंज़र।  कुछ ऐसा ही रेगिस्तान फैला होगा। यहां से वहां तक सुनहरे बदन लिए एक हसीन औरत, पूरा जिस्म खोले और रेत की टोलियां ऐसे कि समतल पेट पर नाभि का एहसास...कि जिस पर इंसानी ख्वाब चमकते हैं, कि जिस पर पानी का भी गुमां होता है कि जिस पर धोखा भी तैरता है। सूरज का प्रकाश छल्ले से जब कट कर आता है तो घट रही कहानियों पर क्या प्रभाव पड़ता होगा ? फफक कर रो ही लो तो कौन माथा सहलाता है ? आकाशवाणी होनी बंद हो गई। इसकी