अपनी डफली... सबका राग!
जर्नालिस्म में एक चीज़ पढ़ा था कि सूचना का पुनरूत्पादन होता है... मनोरंजन का भी गोया यही हाल है. हर चीज़ कहीं न कहीं पढ़ी लगती है, किसी न किसी सन्दर्भ से जुडी लगती है... ताक-झांक करने की मेरी पुरानी आदत है और आदतन हम अपनी डफली के बहाने गैरों के राग सुनाने बैठ गया...
'धुरंधरों के सामने इस ब्लॉग का कोई औचित्य नहीं है... यह बस उस गाने की तरह है- अ ने कहा ब्लॉग बनाइम, त बी न भी कहा ब्लॉग बनायेम... त हमहूँ कही हमहूँ ब्लॉग बनायेम... ब्लॉग बनायेंगे और छा जायेंगे...
तो अब जब भी टेम मिलेगा अपन अपना हारमोनिया लेकर शुरू हो जायेगा...
'दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए... मुहब्बत भरी एक नज़र चाहिए...
'सच्ची साहिब हमको मुहब्बत भरी आपकी एक नज़र चाहिए'
सलाम!
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ReplyDeleteअलग अंदाज़ में सही एंट्री मारी है गुरू...
ReplyDeleteबस छा ही गये....
bahut sundar. ! jaaree rahiye!
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
ReplyDeleteलिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी
सबके राग से आपकी डफली से निकलने वाले सुर को समझने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है, कोई सरल तरीका तो बता दें.....................
ReplyDeleteएक नई सोंच की सफल प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
बोले तो इकदम मज़ा आगया सर |उम्मीद है कुछ मज़ेदार पढने को मिला करेगा brijmohan shrivastava
ReplyDeleteबहुत अच्छे सागर, अभिजात्य की यही संस्कृति है । आज़ादी के बावज़ूद यह खौफ कम नही हुआ है . जल्द ही अपने ब्लॉग पर इस विषय पर् लिखी कविता " गोद" दूंगा ।
ReplyDeleteसागर, हर लम्बी रेस के घोडे के साथ शुरू में यही होता है. बस वक़्त का इन्तेज़ार करो
ReplyDeleteआप सभी का शुक्रिया...
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