सत्रह की उम्र जैसे पगडण्डी पर लुढकती कोसको की गेंद... कबड्डी-कबड्डी की आवाज़ लगाती बिना टूटन की साँस... हर चौकोर खाने में चपटा सा टुकड़ा रख कर कित-कित खेलती साक्षी जब आईने में शुरू से खुद को देखती तो लगता दुनिया यों उतनी बुरी भी नहीं है जैसाकि बाबूजी कहते फिरते हैं...
सूना सा गला सादगी के प्रतीक थे... और नाक-कान में नारियल के झाड़ू की सींक... दो चोटी कस कर बांधना... फिर एक सिरे से पलक खोलती तो एक ही चीज़ की कमी लगती- बिंदी की .... तो ये लगाई बिंदी और हो गयी तैयार साक्षी.. अब देखो इतने में कैसी खिल उठी है. अब ज़रा सी देर में धूप भंसा घर के खपरैल के नीचे सरकेगी और वो होगी खेल के मैदान में सबकी छुट्टी करने.
लेकिन श्रीकांत का क्या ? उसके बारे में क्या सोचा है उसने ? जिसने खेलने के बहाने इनारे पर बुलाया है...
पर मेरा मन तो खेलने का है पर श्रीकांत जो दूसरे गांव से मिलने आया है वो भी स्कूल के ब्लैक बोर्ड पर इशारे से लिखकर उसने पहले ही बता दिया था और मैंने आने की हामी भी शरमाकर भरी थी, उसका क्या ? बड़े उम्मीद से विनती की थी उसने!
साक्षी के आँखों में श्रीकांत का चेहरा घूम जाता है...
प्यार में बड़े समझौते करने पड़ते हैं दीदी भी यही कहती है... तो साक्षी आज इनारे पर ही जायेगी.
तुम हमेशा यहीं क्यों मिलने बुलाते हो श्रीकांत, साक्षी एक अनजाना सा सवाल करती है.
क्योंकि अपने गांव में कोई और यादगार जगह नहीं है. श्रीकांत को जैसे सब पता है.
क्या यादगार है यहाँ ? ज़रा मैं भी तो जांनू...
क्या नहीं है, हर दुल्हन हल्दी लगने के बाद पहला स्नान यहीं करती है. यह इनार गवाह है कई ....
अच्छा तो तुम वहाँ तक पहुँच गए ... श्रीकांत बताता ही होता है कि बात काटकर साक्षी उसे रोक देती है.
तुम लड़कियां कोई अच्छी बात पूरा क्यों नहीं करने देती ? अबकी श्रीकांत सवाल करता है
क्योंकि हम उसके बाद उसमें बंध जाते हैं श्रीकांत
तो क्या तुम्हें बंधना पसंद नहीं ? श्रीकांत की बेसब्री बढ़ जाती है
है ना ! अच्छा चलो पानी में दोनों एक साथ अपनी परछाई देखते हैं....
श्रीकांत ने हामी भरी... दोनों ने पानी में एक साथ झाँका, कुएं का पानी बड़ा साफ़ था. अभावों के दिन थे पर एक ही फ्रेम में दोनों आ गए... परछाई में दोनों ने एक एक-दूसरे को देखा... साक्षी ने अपने तरीके से श्रीकांत को माँगा और श्रीकांत ने अपने जहां का कोना-कोना साक्षी को दे डाला... और इसी पल की तस्वीर दोनों के मन में सदा-सदा के लिए खिंच गए.
खाई है रे हमने कसम...
बहुत अच्छी और संवेदनशील कहानी कहानी।
ReplyDeleteमुझे पूछो तो मै नीचे कौन सा नगमा दूंगा . जाहिर है.......गुलज़ार का ...आसमानी रंग है आसमानी आँखों का ......
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=iIeFaSx6eVE
सम्वेदनशील कहानी ..."
ReplyDeletebahut hi samvedansheel kahani...kuvein me parchai aur fir frame me kaida kya baat kahi..
ReplyDeleteअभावों के दिन थे पर एक ही फ्रेम में दोनों आ गए... जंच गई बात
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
Kitni pyari kahani hai yah...Us ladki kee tasveer ki tarah..!
ReplyDeleteप्रेम-इनारे की इस डुबान में कौन नहीं डूबना चाहेगा ..
ReplyDeleteकितना नेचुरल 'फ्रेम' है , यह अभाव का ही तो भाव है !
सुन्दर ! गाने में कसम खाना भी अच्छा लगा आपका !
बढिया चीज लिखी है बंधु।
ReplyDelete@ झूमर ने नीचे, लाल कालीन पर नाचा करती थी दिलफरेब बाई, कोहनी को मसलन पर टिका कर मुजरा देखना चाहता हूँ, मैं उन पर पैसे लुटाना चाहता हूँ, वक़्त को गुज़रते देखना चाहता हूँ... मुंह में पान की पीक भरे, महीन सुपारी को खोज-खोज कर चबाते हुए...
आपका प्रोफाईल बड़ा रोचक लगा। बहूत खूब।
अच्छा लिखा है आपने. बुरा मत मानियेगा, पर पोस्ट की शुरुवात जिस तरह बेहतरीन हुई थी कि, बहुत ज्यदा ही शायद उम्मीद बांध ली थी मैंने. कुल मिलाकर बढ़िया पर शायद परवान नहीं चढ़ सकी.
ReplyDeleteक्या-क्या शब्द ढूंढ कर लाये हो बंधू! पूरे ग्रामीण परिदृश्य का समां बाँध दिया है...साक्षी को जैसे बातें बाँध लेती होंगी वैसे हीं आप पाठक को बाँधने में सफल हुए हैं. बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteअभावों के दिन थे पर एक ही फ्रेम में दोनों आ गए... परछाई में दोनों ने एक एक-दूसरे को देखा... साक्षी ने अपने तरीके से श्रीकांत को माँगा और श्रीकांत ने अपने जहां का कोना-कोना साक्षी को दे डाला... और इसी पल की तस्वीर दोनों के मन में सदा-सदा के लिए खिंच गए.
ReplyDeleteबहुत भावुक कहानी...
पिछले कुछ वक्त मे से आपकी सबसे बढ़िया पोस्ट..कसम से! ;-)
ReplyDeleteपढ़ते हुए कई कहानियाँ कितने फ़साने याद आये..और कहानियों के कई अक्स आपस मे गड़मड़ा गये..मगर इनारे के कुएँ मे वक्त के इस पानी की थरथराहट के बावजूद कितने ऐसे युगल निश्चल फ़्रेम अभी भी स्मृतियों की फ़ोटोग्राफिक फ़िल्म्स जैसे सुरक्षित छ्पे होंगे..
...मगर फिर आगे क्या हुआ??
अब ऐसे तो जाने नही देंगे दोस्त!! ;-)
हाँ फोटो बढिया लगा..स्मृतियों के सेपिया कलर्ड सायों के जैसा..और गाना भी.. ;-)
ReplyDeleteफोटोग्राफी पसंद आयी.. खाने में इमेज का बनना ज़रूरी है दोस्त..! हमने विज्युलाईज किया..
ReplyDeleteखाने = कहानी
ReplyDeleteशुरू से अंत तक बंधे रहे, कितना कुछ देखते रहे एक छूटे हुए गाँव की पगडंडियों के पीछे. प्यार के इतने सारे शेड्स पर लिखते हो तुम कि अचक्के से रह जाती हूँ.
ReplyDeleteगाँव का एक बड़ा इनारा जहाँ का पानी पूरा गाँव पीता है, पोखर और एक चट्टी बोरिया वाला स्कूल भी.
तुम्हारी साक्षी की मासूमियत दिल ले गयी यार.
ओह, वह समय हम बरबाद कर गये! :(
ReplyDeleteBeautiful! Captivating!
ReplyDeleteSunder
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