पहला प्यार
(सब-टाइटल : निम्नमध्यम मोहल्ले का प्यार )
शादी के बाद रश्मि लाल रंगों में लिपटी पहली बार अपने मायके आई है... गोरे-गोरे हाथ, भरी-भरी चूडियाँ, करीने से लगाया हुआ सिंदूर, बहुत सलीके से पहनी हुई साडी, मंगलसूत्र, डीप कट ब्लाउज, बाजूबंद... कुल मिलकर ऐसी बोलती संगमरमरी मूरत कि कोई पुराना आशिक देख ले तो अबकी तो मर ही जाए... लिखित गाईरेंटी, स्टाम्प पेपर पर, तीन इक्का, खेल खतम.
सोनू के दूकान के पास से जब रश्मि गुजरी तो ऊपर वर्णित स्विट्ज़रलैंड की वादी को देखकर सनसनाहट में उसने अपने होंठ काट लिए.... एक सिसकारी भरी और सारी ताकत किस्मत जैसी किसी अदृश्य चीज़ को गरियाने में लगा दिया...
सोनू, रश्मि का पुराना आशिक, कक्षा आठ से उसके ट्यूशन-कोचिंग के दिनों से उसके आगे-पीछे डोलता हुआ.
रश्मि जब भी घर से निकलती तो उसे गली के मोड से कोलेज और कोलेज से गली के मोड तक सशरीर छोड़ता सोनू. उसके बाद रश्मि को अपनी आखों से उसके बेडरूम तक छोड़ता था... आज उसके प्यार में बर्बाद होकर उसी मोड पर सी.डी. की दूकान खोले बैठा है जो अब कितनी भी घिसी हुई सी.डी. चलने में एक्सपर्ट हो चुका है, वो एक ग्राहक को जो उसे सोनू भईया बुलाता है उसे बता रहा है कि “ये सी.डी. साली चलेगी कैसे नहीं, इसपर दो बूंद पानी डालो, सूती कपडे से पोछो फिर चलाओ और देखो”... क्योंकि ग्राहक की शिकायत थी की “भईया यह सिनेमा हर हाल में देखे के है, शंकरवा बोला है कि इसमें हीरोइन कपडे उतारकर कर हीरो से फोटू बनवाती है”.
उसके पास राम तेरी गंगा मैली, मेरा नाम जोकर, आस्था, एक छोटी सी लव स्टोरी से लेकर सलमा की जवानी, रंगीला बुढ्ढा, वन एक्स, डबल एक्स और ट्रिपल एक्स जैसी सी. डी. हैं... जहां आवारों का जमघट है और फलाना फिलिम में ढीमकाना सीन तक के चर्चे हैं विथ एक्सप्रेशन एंड ऐक्ट...
यों सोनू का जिंदगी का सिलेबस बस काफी सिमट चुका है, सुबह उठकर माई के हाथ का चाय पीना, नहाना, तुलसी में जल देना और दस बजे तक दूकान खोल देना.. इन सबके बीच में तुलसी में जल देते वक्त मुई गर्दन रश्मि के घर के तरफ मुड ही जाती थी... गोया यही एक कॉमन चीज़ रह गई थी...पर इससे पहले भी सिलेबस कहाँ ज्यादा था... घर के उलाहने थे, थोड़ी सी जिम्मेदारी थी, रोज का आटा-दाल, नून का घटना था और इन सब में गड्ड-मड्ड होते सोनू के मन में बसी रश्मि थी.
हाँ तब सी.डी. की दूकान नहीं थी, थी तो बस एक सायकल जिसपर लड़कियों को हीरो फिल्मों में ही बिठाकर हरे-भरे पगडंडियों पर घुमाता हुआ ठीक लगता है... आगे बैठे हुए लड़की और उसके कानों में ‘आई लव यू’ कहता लड़का, इसे करते हुए दोनों आनंदित होते है और आप देखकर... “जब लड़की आगे बैठती है तो सीन कैसा रोमांटिक लगता है पर पीछे बैठते ही सीन कैसे संघर्षवाला लगने लगता है रे बाबा, दुपहरी जाग जाती है”
रश्मि भी उसी हेरोइन के तरह होती तो जिनगी केतना खुशहाल होता, ना.. ना वो तो है हेरोइन... इसमें कोई शक नहीं, गर्दन झुकाकर हँसती है तो कैसे सरसों लहलहाने लगता है खेत में, गेंहू की सारी बालियाँ हहरा उठती है, लगता है कोई राह बनाते जा रहा हो पर उसकी छाया तक न दिखती हो, जुल्फन को झटका देती है तो लगता है कि किसी बात को फेर से कहेगी... खैर... “होता है, चलता है, दुनिया है...” सोनू सोचता है.
तो आज रश्मि दूकान के सामने से क्या गुजरी सोनू फ्लैश्बैक में चला गया... उफ़ क्या दिन थे, अंग्रेजी के पासपोर्ट के पैसे से फोन करना, छोटू के हातों मुरब्बा भिजवाना, कैसे रस ले के खाती थी जुगनी (रश्मि का प्यार भरा नाम) झूला पर झूलते हुए, रेनोल्ड्स के लीड में लपेट कर चिठ्टी देना, चुम्मा लेने की कोशिश करते ही उसका हाथ छुडा के इठलाकर भाग जाना...... “यह लड़कियां लास्ट मोमेंट पर हाथ छुडा के काहे भाग जाती है, समझ नहीं आया आज तक” ... सोनू सोचता है.
“होता है, चलता है, दुनिया है...”
(जारी...)
* * * * *
Note: अगला भाग कब लिख सकूंगा पता नहीं, शायद तब जिस दिन मूड फिर कुछ ऐसा ही हो.
बहरहाल यह गीत सुनिए, अबकी भोजपुरी लाया हूँ, माहौल से मिलता-जुलता, गीत के शब्द बड़े सरल हैं, आप सामंजस्य बिठा लेंगे, आपको हिंदी जैसी ही लगेगी, अभिनेता मनोज तिवारी ‘मृदुल’ हैं जो इस गीत के गायक भी है. वो भोजपुरी फिल्मों के अमिताभ कहलाते हैं... गीत अपने आप में एक पोस्ट है, एक लखनवी पान है, आप बस ध्यान से सुनिए... इट्स अ पर्सनल रिक्वेस्ट :)
ऊपर वाली के चक्कर में...
“होता है, चलता है, दुनिया है” यह संवाद फिल्म खलनायक से लिया गया है. तस्वीर हर्रर्र बार कि भांति गूगल से और वीडियो भी यू ट्यब से... अब इन दोनों को कितना बार शुक्रिया कहें ? चलिए दिल रखने के लिए शुक्रिया कहे देते हैं.
ReplyDeleteजल्दी जल्दी . दुसरा भाग लिखो .......... बहुत कुछ किये हो बाबू लडकपन मेँ ......... रेनोल्ड्स के पेन से पता चल्ता है . क हहहह
ReplyDeleteऔर हाँ अगर फिलिम बिदेसिया क सुजित कुमार कुमार वाला गाना लगा दिये होते ना त बुझ जाओ कि बस कमाले था......
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
कुश वैष्णव
जयपुर
http://kushkikalam.blogspot.com
यह लड़कियां लास्ट मोमेंट पर हाथ छुडा के काहे भाग जाती है, समझ नहीं आया आज तक” ... इस बात पर मुस्कुराए बिना नहीं रहा गया ...
ReplyDeleteअब तुम्हे कितनी बार जबरदस्त कहे ? चलो दिल रखने के लिए जबरदस्त कहे देते हैं.
ReplyDeleteअरे वाह! ये है देसी कहानी ,लगा अपने ही मोहल्ले में घूम रहे है ..अगली कड़ी जल्दी लिखिए
ReplyDeleteHar muhalle ki kamobesh aisi hi kahaniyan hoti hongi..aapne sundar shabdankan kiya!
ReplyDelete“जब लड़की आगे बैठती है तो सीन कैसा रोमांटिक लगता है पर पीछे बैठते ही सीन कैसे संघर्षवाला लगने लगता है रे बाबा, दुपहरी जाग जाती है”
ReplyDeleteBahut hi badiya.
Mein samajh gaya ki mera exam to gaya. Sab log danadan badhiya post karenge to ham padenge kab.
Bas yahi kahoonga mera khayal karte hue dost agli kadi baad mein likna. :) Nahi to likh hi do ab padne mein man to lagna nahi hai. Waise bhi is umar mein padai nahi hoti hai.
भाई लिखा तो कमाल का ज़ाई तो फिर जल्दी ही दूसरा भाग भी लिखना ... पहले प्यार को आगे भी तो बढ़ाना है ...
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति...
ReplyDelete..रचना गहरे डूब कर लिखी गयी लगती है..और पढने पर लगता है कि लेखक ने अपनी जवानी भी उसी सी डी की दुकान पर दिन-दिन भर फ़ाल्तू बैठ कर राह-चलतों को ताकते हुए गारत की है..गोया कि अपनी जवानी की सी डी भी ’उस’ टाइप की फ़िल्मों की घिसी सीडीज को ही बार-बार चला-चला कर घिस डाली हो..
..सोनू की कहानी मे इतनी ट्रेजिडी है कि अंततः कामेडी बन जाती है..और दरअस्ल ऐसी कहानियों की कामेडी मे ही उस पात्र की ट्रेजिडी छुपी होती है..और जिंदगी ऐसी ही तो होती है...कि हमें अपनी जिंदगी की ऐसी कहानी तो दर्द ही दर्द लगती है..मगर यही कहानी अगर दूसरों की लाइफ़ की हो तो पढ़ने-सुनने मे अतीव आनंद आता है..
कई कहानियों-उपन्यासों के पात्र याद आते हैं..याद आते हैं राग-दरबारी के रुप्पन बाबू और बारहमासी के छुट्टन बाबू..और याद आता है शायद सीमा शफ़्क की कहानी का एक लड़का जो ट्रक वाले की गाने की कैसेट्स चुरा कर ऐसी सिचुएशन मे दिन-दिन भर सुनता रहता था..और सोचता था कि इस ससुरे अताउल्ला खाँ ने सारी ग़ज़ले मेरे लिये ही गा कर रखी हैं क्या? ;-)
..और तुलसी को जल देते वक्त मुई गर्दन के घूम कर ’उस’ ओर एक नजर देख भर लेने मे कितना कुछ छिपा होता होगा..महसूस किया जा सकता है..कोई असंभव सी ख्वाहिश, कोई झूठमूठ सा सपना, कोई छलावा...या कोई एक-बूँद-जिंदगी-की..क्या कुछ..मगर इस नजर निथारने पर रह जाती है एक रिक्तता..रुटीन!!
और यह खालिस अधूरी सी बात हुई है..सो सोनू की सीडी अटकनी नही चाहिये अभी..खैर आँखों से दो बूँद पानी डाल कर और रूमाल से पोछ कर इस सीडी को भी सोनू चला ही देगा..
(कमेंट बक्सा और बड़ा करा लो अब;-) )
NIMN SHAHRI MAHAUL AUR WAHAN PALNE WALI PREM KAHANIYA....
ReplyDeleteMUHRON PE MUHREN LAGATE JA RAHE HO AAP!!
मुझे तो लगा 'बगलवाली जान मारे ली' लगाओगे ... लीड पेन में लपेट के... हम्म...
ReplyDeleteयों सोनू का जिंदगी का सिलेबस बस काफी सिमट चुका है, सुबह उठकर माई के हाथ का चाय पीना, नहाना, तुलसी में जल देना और दस बजे तक दूकान खोल देना.. इन सबके बीच में तुलसी में जल देते वक्त मुई गर्दन रश्मि के घर के तरफ मुड ही जाती थी...बढिया प्रस्तुति.
ReplyDelete@ अपूर्व,
ReplyDeleteवाह ! सही अर्थों में कमेन्ट पोस्ट को पूरा करते हैं मान गया अब
“यह लड़कियां लास्ट मोमेंट पर हाथ छुडा के काहे भाग जाती है, समझ नहीं आया आज तक” ... सोनू सोचता है.
ReplyDelete“होता है, चलता है, दुनिया है...”
uper wali ke chakker mein ladika khub pitail ba......
हर हाल में बढे आगे.
ReplyDeleteआमीन.
हाहा.. मै तो अपूर्व की लाईन चेपूगा सबसे पहले-
ReplyDelete"पढने पर लगता है कि लेखक ने अपनी जवानी भी उसी सी डी की दुकान पर दिन-दिन भर फ़ाल्तू बैठ कर राह-चलतों को ताकते हुए गारत की है..गोया कि अपनी जवानी की सी डी भी ’उस’ टाइप की फ़िल्मों की घिसी सीडीज को ही बार-बार चला-चला कर घिस डाली हो.."
सागर सही सही बताना इनमे से कितनी नही देखी है? :) गज़ब मारू पोस्ट है भाई जी.. जैसे हम ऊपर से ताक रहे हो और सोनू मिया दिन ब दिन जीते जा रहे हो.. जबरदस्त.. जारी किया जाय.. मूड कैसे बना ये लिखने का वो भी शेयर कर देते.. :)
आज पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं.. ये दूसरी पोस्ट पढी थी.. हर पोस्ट पढी जाएगी.. बहुत बढिया.
ReplyDeleteपढ़-देख-सुन-गुन लिया प्रेम-पेलापा !! आभार !
ReplyDeleteका लिखें ? सब तो अपूर्व ने लिख डाला? वैसे पंकज वाला क्वेश्चन पूछने का मन हो आया? भाई जी, उस दिन कौन सी पिक्चर देखी थी, ऊपर वालियों में से? और भाई जी, एक दिन बहुत बड़े किस्सा गो बनोगे.
ReplyDeletewah...sach hai....maja aa gaya...wase hai to aye saare muhalle ki kahani....chalo “होता है, चलता है, दुनिया है...”
ReplyDeleteits really cool...ise padh kar thoda inspired ho kar maine bhi kuch likha hai
ReplyDeletehttp://antaswork.blogspot.com/2010/10/expression-of-romanticism.html#links
बाबू, दूसरा पार्ट????
ReplyDelete