किशोरावस्था से जवानी की ओर जाती तुम्हारे बचपने का यह उच्चतम स्तर होगा. अब तुम थोड़ी गंभीर हो जाओगी. अल्हड़ता दूर जाने लगी होगी. होंटों पर लिपस्टिक लगाकर आईने में देर तक नहीं हँसती होगी अब करीने से तुम्हें लिपस्टिक लगाना भी आ गया होगा. तुमने अब दुपट्टा ठीक से पिन-अप करना सीख लिया होगा.
मेरी आँखों में अब तक वही मंज़र कैद है कि तुम रेत पर ठीक किसी नदी की तरह अपने सीने से आँचल हटाकर मेरे शहर को बसाई हुई हो. तुम्हारी गुदाज़ बाहें मेरे आगोश में मसक रही है. कसमसाई हुई तुम कभी मेरे आस्तीनों से खेलती हो, झेंपती हो और कभी टूट कर प्यार करती हो. यूँ कभी-कभी बीच में जब मैं भी अपनी आँखें खोलकर तुम्हारे होंठों को अपने होंठ के इतने करीब देखता हूँ तो मेरा दिल धक् से रह जाता है. मैं तुम्हें अपने हैसियत से बाहर जाकर नापने की कोशिश कर रहा हूँ.
कहीं भरी आकाल में तब बारिश हुई थी. भूखे को अनाज मिला था. उस दिन किसी किसान के आँगन से बैल नहीं खोले गए थे. कहीं कोई खुदा किसी अभागे पर नेमत बरसाया था. कोई भागा हुआ घर लौटा था और माँ के चेहरे पर पहली बार नूर दिखा था.
कृष्ण ब्रज के बहाने सृष्टि को प्रेम का महत्ता बता रहे थे. सुकरात ने सत्य की खातिर जहर पी थी. समंदर बार-बार चाँद को छूने के लिए आवेग से उठा था. झील पर पानी पीने आई सुनहरी हिरणी कुचालें भर रही थी. गाय के खुर ने गोशाले में उत्पात मचाई थी.
... और कालिदास दूर बैठे कहीं कोई विराट महागाथा लिख रहे थे.
... अगले दिन तुम मुझे रात में कई बार अकचकाकर नींद टूटने कि शिकायत करती हो.
मेरी आँखों में अब तक वही मंज़र कैद है कि किसी पेड़ कि ओट लेकर मैंने बारिश में तुमसे आसमान देखने को कहा था. यह और बात है कि इतना प्रेम कहाँ से बरसा था यह रहस्य हम दोनों आज तक समझ नहीं पाए.
मेरी आँगन की मिटटी ने तुम्हारे गमले में कोई नया पौधा अब तक खिला दिया होगा. तुम्हारी यह शिकायत कमजोर पड़ गई होगी कि मेरे बाल बहुत देरी से सूखते हैं. उम्मीद है, इन गर्मियों में एक साथ कई सूरज निकला करते होंगे. गुलमोहर और अमलतास पर झमाझम फूल आया है अलबत्ता तुम्हारे गालों पर पिम्पल्स आने के दिन खत्म होने को आये होंगे.
... आज यही खुशखबरी देनी थी कि मैं तुम्हें पूरी तरह से भूलने में कामयाब हो चुका हूँ.
"... आज यही खुशखबरी देनी थी कि मैं तुम्हें पूरी तरह से भूलने में कामयाब हो चुका हूँ."
ReplyDeletekya khoob bhoole ho ji...
kunwar ji,
तुम रेत पर ठीक किसी नदी की तरह अपने सीने से आँचल हटाकर मेरे शहर को बसाई हुई हो.
ReplyDelete......
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गुलमोहर और अमलतास पर झमाझम फूल आया है अलबत्ता तुम्हारे गालों पर पिम्पल्स आने के दिन खत्म होने को आये होंगे.
Good going...
नि: शब्द है जी एक बार पढने से काम नहीं चलेगा इस कृति को ..हर पंक्ति कई बार मन से गुजारनी होगी ..
ReplyDeleteसच में भूल गये हो, साफ़ पता चल रहा है।
ReplyDeleteगजब लिखा है।
हूं .......!!
ReplyDeleteहेरान हूँ किसी को भूल कर इतनी सूक्षमता और आवेग से याद किया जाता है ....
ReplyDeleteमेरी आँखों में अब तक वही मंज़र कैद है कि किसी पेड़ कि ओट लेकर मैंने बारिश में तुमसे आसमान देखने को कहा था. यह और बात है कि इतना प्रेम कहाँ से बरसा था यह रहस्य हम दोनों आज तक समझ नहीं पाए.
मेरी आँगन की मिटटी ने तुम्हारे गमले में कोई नया पौधा अब तक खिला दिया होगा. तुम्हारी यह शिकायत कमजोर पड़ गई होगी कि मेरे बाल बहुत देरी से सूखते हैं. उम्मीद है, इन गर्मियों में एक साथ कई सूरज निकला करते होंगे. गुलमोहर और अमलतास पर झमाझम फूल आया है अलबत्ता तुम्हारे गालों पर पिम्पल्स आने के दिन खत्म होने को आये होंगे.
... आज यही खुशखबरी देनी थी कि मैं तुम्हें पूरी तरह से भूलने में कामयाब हो चुका हूँ.
wahhhh wahhhhhh bas sochta hu bhoolkar yaad karna phir shabdo main pirona....bahut khooob dost!
ReplyDeleteLikhte raho swagat hai !!
Jai HO Mangalmay Ho
"मेरी आँखों में अब तक ...... अपने हैसियत से बाहर जाकर नापने की कोशिश कर रहा हूँ."
ReplyDeleteDost "matinee show" se "morning show" ki taraf ja rahe hain. :)
Aise ant kafi khoobsoorat kiya hai aapne
और इस लिखावट का रहस्य...?
ReplyDeleteआखिरी लाईन सारे मार्क्स ले जाती है..
येह बात तो हमे भी समझ न आयी कि सब राज की बात लिखी और खत खुला क्यों रहने दिया..्भई टीआरपी का जमाना है..सो ’राज की बातों’ के रेट्स ज्यादा होते होंगे..
ReplyDelete..खैर बात अपनी जगह तक पहुंचे..भले ही जमाने के रास्ते सही..आमीन है :-)
शायद ग़ालिब चचा के मरने के बाद भी ऐसे ही हसीनों के खुतूत निकले होंगे घर से...वैसे तुम्हारी उमर क्या है अभी कामरेड? ;-)