फोन पर जब वो ‘हाय सागर’ बोलती तो दोनों तरफ कुछ मिलावट सी होने लगती... उसकी आवाज़ में मेरे नाम का अर्थ घुल जाता... मंथर सी चाल होती और होते गहरे भाव... गर उस वक्त सिर्फ इन दो शब्दों का आडियो ग्राफ खींचा जाए तो एक सरल रेखा भर उभरे, इतनी संयत जैसे लता मंगेशकर का रियाज़, आधी नदी के बाद का स्वच्छ पानी, पीली रौशनी में गुसलखाने में रखा पहला कदम,
इन शब्दों से लगता मेरे जिस्म के शराब में किसी ने बर्फ का टुकड़ा डाला है, वही बर्फ पहले सीधे अंदर जा कर पैठी है फिर उठकर ऊपर आती है और तैरने लगती है. मैं आँखें बंद कर उसकी आवाज़ से गुज़रता तो अपने को एक अँधेरी गुफा में पाता जहां मेरे ही शरीर की झिल्लियों की तस्वीर लगी है और कोई इंस्ट्रक्टर फलाने- फलाने जगह पेन्सिल की नोंक रख बता रहा हो कि “बाबू! मुश्किल है” .... तभी मेरे पार्श्व में ऐसा संगीत बजता जैसा राजेश खन्ना को लिम्फोसर्कोमा जैसी कोई संगीन बिमारी बताने पर बजता है....
जब मैं उसे बताता कि लोग मेरे साथ बड़े दयनीयता से पेश आते हैं तो मेरा निशाना लोग नहीं बल्कि वही हुआ करती... उससे बात करते-करते मुझे माइग्रेन से दोस्ती हो गई है. मैं उससे बताना चाहता हूँ कि माइग्रेन अब सिर्फ दर्द नहीं देता... मेरे जिस्म से सूरज निकलता है और सांझ बन डूबने लगता है... मैं निर्विकार उसे डूबते देखता हूँ ... मेरी प्यारी अठ्ठनी खो गयी है दरअसल इस उम्र में भी मैं झूठ बोलते पकड़ा जाता हूँ तो नज़र ऐसे ही चुराता हूँ.
वो पूछती कि दिल्ली का हाल क्या है (पर मैं सोचता कि दिल से सीधे दिल्ली का सफर इतना करीब तो नहीं, लोग कैसे इतनी जल्दी में इतना सफर तय कर लेते हैं) तो मैं उसे बताता हूँ कि दिल्ली अपने में मस्त है, इस साल कॉमन वेल्थ गेम होने वाला है, वो चहक उठती है...
मैं उसे बताता हूँ कि यह कॉमन लोगों की वेल्थ (धन) का ‘खेल’ है और अबकी महारानी एलिजाबेथ बहुत व्यस्त रहने के कारण नहीं आएँगी बल्कि राजकुमार चार्ल्स आयेंगे, जिससे तारीफ के शब्द सुनकर बिपाशा बसु थिरक उठी थी. रानी मुखर्जी ने राजकुमार चार्ल्स से मिलने के लिए मंहगी जूलरी और कपडे ख़रीदे थे और उससे मिलने को अपना सौभाग्य माना था.... जो कुछ साल पहले इंडिया आये थे और जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीद होने वालों को शहीद मानने से इनकार कर दिया था... हाँ तो दिल्ली और सेंसेक्स की उछाल में धंसा पूरा भारत मस्त है.
वो कहती है – तुम्हारी जुबान बहुत कड़वी है, तुम निगेटिव सोच के आदमी हो और ये बता कर मेरी सोच को बदलने की सलाह देती है...
मैंने हेलो-हेलो का बहाना करता हुआ फोन काट देता हूँ... ताकि बात फिर ‘हाय सागर’ से शुरू हो सके और मैं उससे इस बार कह सकूँ कि मैं तुम्हें (जिंदगी को) एक पूरा दिन स्मूच करना चाहता हूँ ताकि मेरी जबां मीठी हो सके, उस दिन मुझे शराब पीने की जरुरत ना हो और किसी खुले पार्क की छिटकी धूप में अपने माइग्रेन रूपी दोस्त को सहलाते हुए मैं हमेशा के लिए सो सकूँ. चिरनिद्रा.
wakai sochalaya hai.........ek alag hi soch ko darshati hai.
ReplyDelete.वैसे कई शब्द मेरी एक पसंदीदा नज़्म की याद दिला गए..."..पिघलता जाए जैसे बर्फ का टुकड़ा व्हिस्की में ....."....
ReplyDeleteकैद हो गये हैं जी लब, क्या बोलें?
ReplyDeleteआपके लेख में लय है (आप सुरूर कह सकते है )..जो अपने साथ बहा ले जाती है ...... वाकई किसी ख़ास के मुह से अपना नाम क्या "सुनो " भी इतना मीठा लगता है की कई बार ना सुनने का बहन भी कर लेते है
ReplyDeleteWow.....wat a thought ...aur jis bakhoobi se kalambadh kiya hai .....kaabil-e-tareef hai
ReplyDelete5th para kaafi pasand aaya.....romantism mein patrotism ki entry waakai kamaal hai
’हाय सागर’!! :-)
ReplyDeleteभई पूरी पोस्ट सॉलिड है एकदम..बस चिरनिद्रा वाली बात छोड़ कर..डियर जिंदगी सच एक ख्वाब है..मगर तब तक जब तक कि नींद नही टूटती..सो चिरनिद्रा वाला आइडिया फ़िल्हाल ड्रॉप करो..जबकि इस ख्वाब की रील मे अभी कुछ आइटम नम्बर्स का स्कोप है... ;-)
बड़े खतरनाक ख्याल हो रहे हैं हैं आपके.....
ReplyDeleteजबान मीठी करने का भला ये क्या तरीका हुआ...
कल पढ़ा, कई कई बार...'फ्लेमिंग शॉट' पीना कुछ ऐसा ही होता होगा, जलता हुआ और daring. मैंने कभी पीने की हिम्मत तो नहीं की है, पर आज पढ़ के लगा आरजू पूरी हो गयी.
ReplyDeleteपूरी पोस्ट में गजब का फ्लो है, नजाकत भी है और तेज धार भी...कमाल का बैलंस है.परत दर परत खुद को कैसे खोलते चले जाते हो कि लगता है कोई ताज़ा घाव छू लिया है, हालाँकि घाव तुम्हारे जिस्म में है, पर छूने भर से दर्द उभर आया है मेरी उँगलियों में.
चिरनिद्रा, माइग्रेन रुपी दोस्त...
तुम्हारी अब तक की सबसे अच्छी पोस्ट लगी मुझे. सलाम सागर साहब!
एक ही लफ्ज़ इसको पढ़ कर आया लाजवाब ....मूक कर देने वाला
ReplyDeleteजाने क्यों आज बात करने का दिल कर रहा है, इम्तेहान करीब है ना शायद... पूरे लक्षण हैं,
ReplyDelete@ वंदना जी,
पहले इस ब्लॉग का नाम अपनी डफली सबका राग था... एड्रेस में अभी भी यही बताता है... इसके साथ न्याय नहीं हो रहा था इसलिए सोचालय किया... संभवतः एड्रेस भी बदलूँगा...
@ डॉ. साहिब,
... आप अपने गुलज़ार को छांक ही लेते हैं... सॉरी अपने नहीं हमारे भी :)
@ मो सम कौन...,
कैद मत कीजिये जनाब, कुछ कहिये, सब चलेगा
@ सोनल रस्तोगी,
अल्ला जाने लेख में क्या है ? पर शुक्रिया तो बनता है बॉस.
@ प्रिया,
हिंदी में कमेन्ट लिखें तो इन बूढी आँखों को इतनी तकलीफ नहीं होगी. साथ ही हमारी अंग्रेजी ज्ञान का भी ख्याल रखा जाये.
@ जैसा पूर्व में कभी/कोई नहीं हुआ,
आइटम सोंग की डिमांड, भाई माजरा (मुज़रा) क्या है ! आप तो ऐसे ना थे :)
@ ओम आर्य,
अब आपसे क्या छुपाना, आप तो बेहतर जानते होंगे... नहीं चुमकी?
@ पुज्जी,
तुम्हारे कमेन्ट भावुक करते हैं, देखना घाव का ख़याल रखना ! बड़ा मुश्किल से टिकता है ये
@ रंजना जी,
यह कौना स्थिति है हो ? ... बहरहाल शुक्रिया.
हेल्लो सागर ! (चलेगा न):)
ReplyDeleteअब समझ आई माइग्रेन क्यूँ होता है.(फिर भी कहाँ कहाँ से चीज़े ढूंढ़ के लिख देते हो)बाकी सब बढ़िया अभिवियक्ति बधाई पर चिरनिद्रा की बात कुछ खास नहीं भायी
sagar hamne poori mehnat ki ...Hindi mein aapke comment box mein hamse to copy hi nahi ho raha hain....pichle 20 min se hindi mein likh paste karne ki koshih kar rahe hain... Ctrl +V kaam nahi karta na...hi paste
ReplyDeleteनेगेटिव सोच के आदमी हो... पाठकों को चिरनिद्रा से जगाने के लिए छिटकी धूप से लहरों पर लिखते हो...
ReplyDelete@ प्रिय + आ,
ReplyDeleteमेहनत की जरुरत नहीं, आगे से कोशिश की दरकार है. बड़े बड़े ब्लागरों के की-बोर्ड में ऐसी छोटी-छोटी तकनीकी खामियां होती रहती हैं :)
@ नीर + आ + जी,
आक्षेप है या लानत ! वैसे दोनों प्रिय है.
@ डिम (कम रौशनी) + पल,
ReplyDeleteअरे दौड़ेगा महारानी, अब चिरनिद्रा की बात नहीं भायी तो नहीं भायी.... बिंदास बोलने का भई (भाई ?)
बडे मूड मे हो.. :) ये मेरे फ़ोन के बाद की पोस्ट है..?? हे हे हे.. :) कुश! देखो लाडला बिगड गया :)
ReplyDeleteसागर, डुबा ले गये गुरु... इस वक्त बस यही अहसास हो रहा है कि हल्की हल्की डिम लाईट है, हल्की हल्की खुमारी और तुम्हारी पोस्ट मे घुलते आईस क्यूब्स..
सागर जबरदस्त की घात जबरदस्त लिखता है..
कोई पीड़ा जब जीवन का अंग बन जाये तो उससे मुँह चुराना कैसा । उगता सूरज भी ढल जायेगा, यही तो सारे सुख दुख का निष्कर्ष है । संवाद बहा है विचारों के बँधे किनारों पर और जब तक सागर पा नहीं ले, बहता ही जायेगा ।
ReplyDeleteek smmoch me chir nindra ka khumaar.... hmmm
ReplyDeleteayadat ko aane ka intejaar to kar lete ....
bolne do ki lab aazad hai mere .....
@ पंक (कीचड ) + ज,
ReplyDeleteराज़ खोल रहे हैं जनाब और मुझे रोकते हैं... आपका नशा उतरना हम जानते हैं.. उतार भी चुके हैं... खैर...
शुक्रिया यार, तुम्हें अच्छे से इम्तेहान के बाद पढूंगा...
@ प्रवीण जी,बहता भी रहूँ तो कोई बात है, यहाँ तो अलाम यह है कि नहीं बहने के कारण पानी गन्दला हो गया है.
ReplyDeleteआखिर जुस्तजू क्या है? ??
@ सत्या,
शब्द ब्रह्म है. बोलो यार, किसने रोका है.
देख रहा हूँ पंकज.. बिगड़ा हुआ तो था ही ये पर अब बिगड़ता ही जा रहा है..
ReplyDeleteअच्छा पढने की आदत डाल दी साले ने..
@ कुश Babu,
ReplyDelete" बिगड़ता ही जा रहा है.."
... प्रगतिशील पंक्ति कुश बाबू....
कब तक स्टेशन से छुपाकार ख़रीदे गए सस्ती किताबें सिरहाने छुपाये रखियेगा
प्रतियोगिता का ज़माना है हमने मुफ्त में उपलब्ध करवा दी... भाग मनाइए :)
किताब खरीदने के लिए जेब में दमड़ी तो हो बांगड़ू..
ReplyDeleteतुम चिरनिंद्रा में ख्वाब भी लेते रहते हो...
लेते रहते हो... ये पंक्ति भी प्रगतिशील है जानी)
पोस्ट का कबाड़ा कर रहे हैं मियां .. यह सब मेल पर :)
ReplyDeleteहम पंकज और प्रशांत के अनुशंषा पे यहाँ आये! आपका ये पोस्ट दो बार पढ़े...तब जाके समझ में आया. इतनी गहराई में राज़ क्यूँ छुपा देते हैं? :) वैसे गलत भी क्या है...मोती भी तो सीप के अंदर ही होता है न....बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहिए, और गिलास बीच-बीच में घुमा या हिला भी लीजिए, ताकि बर्फ़ और अच्छे से गले।
ReplyDeleteरगों में दर्द है या दर्द ही लहू बन गया है - एक रुबाई याद आ गयी -
मिस्रा है-
"रग-रग में जिसके नश्तरे-ग़म के उगें शिगाफ़, वो क्या बताए दर्द कहाँ है - कहाँ नहीं!"
@ स्तुति,
ReplyDeleteकभी अनुशंषा छोड़ ऐसे भी आइये.. वैसे भी यह एक 'आलय ' (घर) ही तो है.
@ हिमांशु Ji,
सराबी सिलसिले अच्छे लगेंगे,
यूँ ही से वास्ते अच्छे लगेंगे
जरा दो चार सदमे और सह लो,
फिर हमारे फलसफे अच्छे लगेंगे :)
लिखते रहेंगे... बर्फ लगाने की कोशिश कई साल से जारी है.
हाय सागर ! इतना गंदा सोचते हो...छिः छिः ...राम-राम ... तुम तो हमसे भी गंदा सोचते हो... लब मीठा करने का कितना गंदा तरीका सोच रहे हो.
ReplyDeleteऔर पोस्ट की क्या कहें ... ये तो दिल में ऐसे ही घुल गयी, ज्यों व्हिस्की में बर्फ धीरे-धीरे और वो बर्फ ठंडा करती है, इसने सुलगा दिया...
ये वाली पोस्ट तुम्हारी लिखी मेरी अब तक की सबसे फेवरिट पोस्ट है. कई बार लौट आती हूँ इसे पढ़ने के लिए.
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=bfk6AzvyX4k
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