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आँखों में कैद चंद मंज़र

दृश्य -1
एग्जामिनेशन होल में, किसी सवाल का जवाब सोचते हुए कनपटी से पसीने की एक धारा फूटती है... टप! कान के नीचे गिरती है. सवाल बदल जाता है.

"गर्मी से निकली पसीने की बूँद ठंढी क्यों होती हैं?"

दृश्य -2

बेरोजगारों ने बेंचों पर मां-बहन की गालियाँ लिख कर खुन्नस निकाली है... गिनता हूँ 1-2-3-4-... उफ्फ्फ ! अनगिनत हैं दोनों तरफ...

बाहर गांधी मैदान में, 'बहन जी' की रैली है... हर खम्भे पर हाथी है.

दृश्य -3

"तुम्हारी कंवारी पीठ पर के रोयें हिरन जैसे सुनहरे हैं"

अगली बेंच पर बैठी श्वेता को जब मैं यह कहता हूँ तो वो दुपट्टे का पर्दा दोनों कांधों पर खींच लेती है. कभी फुर्सत में तुम्हें  "एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल" का मतलब समझाऊंगा... मैं सोचता हूँ.

दृश्य -4

बाहर निकलता हूँ...आसमान में मटमैले बादल छाए हैं... गंगा शहरवालों से उकताकर तीन किलोमीटर पीछे चली गयी है. मैंने इतनी परती ज़मीन बरसों बाद देखी है...

मुझे गुमां होता है कि मैं राजा अशोक हूँ और हवा मेरे कान में कहती है " बादशाह! यह पाटलिपुत्र की सरज़मीन आपकी हुकूमत का हिस्सा है"

दृश्य -5

शाम का हाट सज चुका है... मुरझाये सब्जियों पर छींटे मारे जा रहे हैं.. एक अधनंगा बच्चा आम को अपने हाथ में लिए बड़ी ललचाई नज़रों से देख रहा है.... उसकी दादी उसके हाथ से छीन बिकने के लिए वापस टोकरी में रख लेती है...

मैं सड़क पर चल रहा हूँ, तेज़ हवा के बायस मेरे हाथ, कुरते के घेरे में बार-बार फंसते हैं.. मेरे मुंह से गाना छूटता है... "जिंदगी कैसी है पहेली हाय" ...

पीला फलक, कोरस में "हूऊऊऊ" गा कर मेरा साथ देता है... मुझे अपनी हैसियत का पता चलता है.
...यह सारे मंज़र मेरी आँखों में कैद हो जाते हैं.

"कोई नागिन ढूंढ़ के लाओ रे... अब यहाँ के आगे बदला ले"

Comments

  1. गाँधी मैदान- पटना का एक विशाल मैंदान, पटना का दिल.

    पाटलिपुत्र- पटना का पुराना नाम, यह शहर सम्राट अशोक ने बसाई...
    अभी इस नाम की कोलोनी है.

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  2. कतरा कतरा जोड़ कर आपने वास्तव में सागर बना दिया ...

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  3. Sabhi manzar aankhon ke aage se guzar gaye...chalchitr kee tarah..

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  4. पढाई, लिखाई, कन्या की दिखाई और शहर की घुमाई सब जोर पर है :-)

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  5. bas itna hi, shandaar.
    http://udbhavna.blogspot.com/

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  6. द्रश्यों में बसी दुनिया ... शब्द उनमें सच पिरोते हुए ... सुंदर! ..

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  7. इत्ता अच्छा क्यों लिखते हो सागर ??? देखो बड़े लेखक बन जाना तो हमें मत भूल जाना... बहुत अच्छा लिखा है.

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  8. अच्छा लिखे हो गुरु !
    शुभकामना , बड़े लेखक बनो भाई !
    और हाँ , भूलने के विरुद्ध भी !

    तथ्यात्मक त्रुटि है एक !
    पाटलिपुत्र नगर अशोक ने नहीं बल्कि
    उदयन ( उदयभद्र ) ने बसाया है !
    कालोनी अशोक की हो , कोई अचम्भा नहीं !

    जारी रहें आर्य पर भौतिक-दैहिक इतिहास भूगोल
    चकाचक रखते हुए ! आभार !

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  9. सन्नाटा बिखेर दिया है चारो तरफ.. हर बार पिछली बार से अलग ले आते हो बाबु.. लिखे तो उम्दा हो ही जानी..

    और ये अमरेन्द्र भाई क्या कह रहे है.. बिना रिसर्च के लिख मार रहे हो.. पाटलिपुत्र से बाहर क्या गए भूल ही गए..

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  10. ... बेहद प्रभावशाली है ।

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  11. vaaah....kayaa kahu sagar ke itane tukare kar diya our har sagar pahale jitna hi vishaal.....

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  12. सारे दृश्य देखे हुए थे...यहाँ तक कि वो रोयें भी..पर वो कहते हैं न कि देखना काफी नहीं होता है...आँखें सुजानी पड़ती हैं.

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  13. यह शिल्प अभी कुछ दिनों पहले तक कितना ताज़ा लगता था…तुम्हारे यहां अब तक उस ताज़गी की छाया है…मुझे क्यों लगता है कि इसे बचाये रखने के लिये तुम्हें फिर तोड़ना पड़ेगा

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  14. अच्छा लगा यहाँ आकर.
    दृश्य जो भी हैं कहीं न कहीं सोचने के लिए विवश कर देते हैं.

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  15. ह्म्म..कुछ वक्त तो बीत गया तब से..उम्मीद है कि अब तक काँधे के तिल का मतलब अच्छे से समझाया जा चुका होगा..और जिंदगी की पहेली न सही इम्तिहान की पहेली तो सफ़लतापूर्वक सुलझायी जा चुकी होगी..गरमी मे पसीना ही ठंडक देता है..सो लगता है कि खूब ठंडक होगी आपकी तरफ़..और आम की तरफ़ अब भी ललचायी निगाह से देखते वक्त आपकी पोस्ट याद आयेगी... :-)

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  16. ये सारे दृश्य (एक कुंवारे की) जिंदगी का वो हिस्सा है जहाँ कायदे से जीने के लिए सोचना बहुत पड़ता है.

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  17. अच्छे दृश्य खींचे है आपने उम्मीद है मार्क्स भी अच्छे मिलेंगे :)

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  18. आपका डिजिटिल कैमरा पसंद आया ...जिन्दगी की नब्ज को आँख के जरिये टटोलता ....खूबसूरत,सच्चा ,दिल के करीब ,वक्त से रूबरू कराता ..इस बयानगी -दीवानगी का कायल होना ही है ..आभार ...सभी पोस्ट नहीं पढ़ पाती हूँ आपका कमेन्ट अपूर्व के ब्लॉग पर देखा ..और यहाँ चली आई ....इधर आते रहेंगे तो ब्लॉग तक पहुंचना आसान होगा ...अपूर्व के कमेन्ट बेशकीमती होते हेँ ...आप समझ सकतें हेँ . ईमानदारी की कीमत ईमान दारी ही हो सकती है ...आमीन

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