प्रश्न 1 : राम एक गधा है : सिद्ध करें .
उत्तर : राम के एक सर हैं,
गधे का भी एक ही सर है.
राम की दो आँखें हैं
गधे को भी दो आँखें हैं
राम के दो कान हैं
गधे के भी दो कान हैं.
अतः सिद्ध हुआ - राम एक गधा है.
प्रशन २ : सिद्ध करें : राम एक गधा नहीं है
उत्तर : राम के दो पैर हैं
गधे के चार पैर हैं
राम की पूँछ नहीं है
जबकि गधे के पास पूंछ है
राम के चेहरे पर हर तरह भाव आते हैं
जबकि गधा कातर सा चेहरा लिए रहता है.
अतः सिद्ध हुआ : राम एक गधा नहीं है.
लब्बोलुवाब ये कि प्रमेय हो या जिंदगी के प्रश्न अपने तर्कों पर सिद्ध किये जा रहे हैं. तर्क बलवती होता है सुविधाओं में, अपने हितों में. जैसे भारत रक्षा क्षेत्र में रूस से सौदा करता है तो अमेरिका इसे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सैन्य प्रतिद्वंदिता को बढाने और हथियारों कि होड़ बढ़ने का तर्क देता है लेकिन जब खुद अरबों का बजट अपने संसद में पेश करता है तो इसे "शांति के लिए निवेश" का नाम देता है.
कफ़न (कहानी) में घीसू और माधव का अंतिम संस्कार ना कर दारु पीने का दिल था तो दोनों ने इस बलवती तर्क को जन्म दिया - मरने के बाद नए कपडे ?
तर्क से गिरे तो निष्कर्ष पर अटके
जहाँ रिक्शाचालक रामशरण अपना प्यार यानि लछमी से शादी ना कर सकने को निर्दयी बताता है वहीँ मल्टीनेशनल कम्पनी का एक इंजीनीयर सिध्धार्थ देर रात सिगरेट पीते हुए "लव- माय फुट" कहता है. चूँकि सुनीता की नयी-नयी शादी हुई है वो इसे मन लगाये रखने का एक जरिया बताती है वहीँ रबिन्द्र कला केंद्र की पेंटर सुहासिनी अपने स्ट्रोक को रोकते हुए इसे कई सपनों का उदय मानती है. मेट्रो में मेरे साथ अक्सरहां सफ़र करने वाली एक लड़की जिसका हाथ कलम से ज्यादा तेज़ मोबाईल पर एस एम् एस टाइप करने में चलता है वो अपने जीवन में घटित हो रहे इस प्यार को "बहारों के आने सा" बताती है (मोबाईल फिर से चमक उठा है) और एक अधेड़ उम्र का तीसरा आदमी भी है जो डेस्क पर प्यार को महान बताता है.
बहुत से ऐसे किरदार हैं जिनके लिए प्यार ना महान होता है ना क्रूर, कई बार यह वैसा ही होता है जैसा उनका मूड होता है.
सागर साहिब, जिंदगी के कुछ बेहतरीन अंतरद्वंद आपने पेश किये हैं.
ReplyDeleteकबीले गौर है....... पर दिमाग अपना-अपना.
आपने सोचने को विषय दे दिए बहुत से - जो आस-पास घटित हो रहे हैं...... अब ये हम जैसे पाठकों पर निर्भर कर्ता है कि दिमाग का कैसे इस्तेमाल करते हैं.
प्यार हो या ज़िंदगी का कोई और पक्ष, सब अपने-अपने हिसाब से तर्क तो गढ़ ही लेते हैं... प्यार तो एक ऐसी अबूझ पहेली है कि ईश्वर के अस्तित्व की तरह उस पर भी अनेक खोजें हुईं हैं और होती जा रही हैं, पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला और ना कभी निकलेगा. कुल मिलाकर बात वही कि अपना-अपना फलसफा है, दूसरा माने या ना माने 'माय फुट' :-)
ReplyDeleteसही जा रहे हो जनाब.. हम तो एक ही क्षण में "माय फुट" और महान दोनों बता जाते हैं.. अपने अपने अजीब तर्क.. यू नो?
ReplyDeleteप्रमेय से कुछ भी सिद्ध हो सकता है, यदि कोई सिद्ध करने पर तुल जाये।
ReplyDelete@प्रशान्त - आई नो प्रशान्त ;)
ReplyDeleteतो साहिबान का मूड अभी क्या है सरकार?..महान इश्क फ़रमाने की तबियत मे हैं या क्रूर-टाइप?..और महान प्यार तो अधेड़ उम्र की ही चीज है..जिन्हे मिला नही होगा..वही महान बताते होंगे ना!..वैसे आप भी कहां मियाँ..दूसरों के मूड परखने मे वक्त जाया करोगे तो अपना भूल जाओगे..खैर अबकी मेट्रो वाली से नम्बर तो ले लेना..जिंदगी मे थोड़ी और बहारों की गुंजाइश और मोबाइल मे थोडे और एस एम एस का स्पेस बना रहना चाहिये हमेशा...नही?
ReplyDeleteखूब उलटबासियां...
ReplyDeletesach hai, ye ishq ka tadka.
ReplyDeleteमरने के बाद नए कपडे ?
ReplyDeleteअभी सोचालय में ही विचरण कर रही हूँ
haan.zyadatar, cheezen baatein mood par depend hoti hain... First time Agreed
ReplyDeleteप्यार और सरकार किसीके लिए जो चीज कातिलाना है...वहीँ जब वो खुद उसका इस्तेमाल करता है तो वाही चीज शांति प्रयास होती है प्रेमचंद्र के कफ़न से लेकर मेरिका के ओबामा तक सिर्फ यही चार बिखरा है इस रास्ते में...सारे तर्क खुद कि सुविधा के लिए गढ़े जाते हैं.................
ReplyDeleteतर्क सिर्फ सच्चाई को मरोड़ सकता है उसे ढक नहीं सकता ...
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