कभी उससे पूछना कि वो कितना अकेला होता होगा जब तुम उसे छत पर कड़ी धूप में सूखने छोड़ आते होगे। वो सूती साड़ी जो तुम्हारे बदन से लगकर अपने पोर पोर में तुम्हारे होने को अपने में समेट लेता है। कभी उससे पूछना कि वो जब दोपहर के ढ़ाई बजे छत पर कड़कड़ाता है तो कैसी तनहाई घेरती है उसे कि दिखाने के लिए झूलता रहता है।
आज तुमसे देर तक बात करके देर तक उदास रहे। ऐसी उदासी बरसों से नहीं आई थी। जो आई थी इस दौरान तो वो नौकरी, करियर, आटे दाल की कमी की उदासी थी। तुम्हारे छूने की उदासी नहीं थी। साथ जिंदगी गुजारने की बात यों थी कि बगैर जिंदगी गुजारना। साथ जिंदगी गुजारना महज़ एक हसीन बात थी। अपने आप में खूबसूरत ख्याल और हकीकत उदासी लिए हुए। कितना अजीब होता है कि हम अपने अतीत पर हैरां होते हैं और कई चीज उम्र बीत जाने के बाद मिलती है। भरी जवानी समंदर किनारे घूमने निकले और कुछ न मिला और एक दिन जब फेफड़े में हवा ना रहा ना ही गले में ताकत तो गीले रेत संग पानी में शंख से पैर टकराता है। हम उठाकर देखते हैं, अपने बालों को इधर उधर झटका देते हुए जांच परख करते हैं और फिर यह अधिक से अधिक ड्रांइग रूम में सहेजने के लायक नज़र आता है। तुम्हारा मिलना दूर के डाल के पंख फड़फड़ाता पंछी जैसा था। जो प्यार चाहा था वो मिलने के बाद भी...
मार्च के इस मौसम में जब गुलाबी से ठंड में (जब तुम बालकनी में अपनी गोरी नंगी बाहों को इस ठंड के बाइस सहलाते हुए आती हो) रातों को उजास चांदनी फैली रहती है, चांद के दाग ज्यादा गहरे दिखते हैं और वो झीनी सी उसी तन्हा सूती साड़ी के पार खिलता है, चांद को नीले काले कैनवास पर कोई बनाता है और उसपर हल्के हाथ से झाड़ू बुहार देता है।
राजधानी की सड़कों पर नीम तथा अन्य पेड़ो के पत्ते पटे हुए रहते हैं, पत्ते जो सड़को पर ही गिरे गिरे सड़ रहे हैं हमारा मानस पटल भी ऐसा ही राजमार्ग बन जाता है जहां कई यादें छींकती हुई हैं तो कई बीमार, कई सहेजे हुए, कई उत्साह से लबालब पर सभी अपनी जगह गल रही है, उसी से महक उठता है और एकाकार होकर खड़ा क्या होता है - कुछ स्नेह संबंध, कुछ प्रेम संबध।
देर से आना, तुम्हारा हाथ पकड़ खुद को सांत्वना देना है। वो सुख पाना है जो बस मिल जाना होता है।
... और अब दिल में यही चाहत करवट ले रही है कि जोर से तुम्हारी हथेली रगड़ और दूर तक के वीराने जंगल में आग लगा दूं। लग जाएगी यकीन मानो। ये भावावेश नहीं, तुम्हारे मिलने के खुशी पर नहीं बल्कि उदासी के उस ढ़ेर पर खड़े होकर जुटाए से आत्मविश्वास से कहा जा रहा है।
उदास होते हुए भी बेहद ख़ूबसूरत पोस्ट... जब मुद्दतों बाद यूँ धूप निकलती है तो यकीनन उसे ओक में भर के पी जाना चाहिये... उन लम्हों को यूँ संजो लेना चाहिये, उस साथ को अपने आप में यूँ जज़्ब कर लेना चाहिये की वो लम्हें भले बीत जाएँ, भले वो साथ उम्र भर ना रहे पर उन साथ बिताये पलों की रौशनी ज़िन्दगी के तमाम सीले कोनों को रौशन करती रहे... ता-उम्र !!!
ReplyDeleteकलम थामने की देरी है आकाश खुद-बखुद पन्नो में सिमट जाता है...
ReplyDeleteये पास्ट उदासी भरा भी हो तो सोच को एक खूबसूरती तो दे जाता है.....कई बार जब जिन्दगी में कुछ नहीं होता बीते हुए लम्हे भी जीने की वजह बन जाया करते हैं...सागर के मिजाज़ से अलग पोस्ट है...हल्की-फुलकी सुकूँ देने वाली.... एक लाइन जिसे पढ़ कर रुके थे हम वो है " कई चीज उम्र बीत जाने के बाद मिलती है। भरी जवानी समंदर किनारे घूमने निकले और कुछ न मिला और एक दिन जब फेफड़े में हवा ना रहा ना ही गले में ताकत तो गीले रेत संग पानी में शंख से पैर टकराता है। हम उठाकर देखते हैं, अपने बालों को इधर उधर झटका देते हुए जांच परख करते हैं और फिर यह अधिक से अधिक ड्रांइग रूम में सहेजने के लायक नज़र आता है।"
ReplyDeleteगीले जज्बे सुखाने वाली धूप तो हमारी जिन्दगी में आयी ही नहीं।
ReplyDeleteउदास पोस्ट
ReplyDeleteआते दाल के भावो में उलझे है.. खैर लिंग का दोष यहाँ भी रहा.. साडी अगर स्त्रीलिंग होती तो कशिश और बढ़ जाती.. इतने बार कहने के बाद भी नहीं मानोगे तो गलती तुम्हारी ही है..
ReplyDelete"कितना अजीब होता है कि हम अपने अतीत पर हैरां होते हैं और कई चीज उम्र बीत जाने के बाद मिलती है।"
ReplyDeleteअतीत के साथ ही न जाने कितनी यादें जुडी हैं.......समय-असमय घूमती फिरती "अपना अस्तित्व भी कभी था"
बताने चली आती हैं हमें.....!!
आज का वर्तमान कल फिर हमारे सामने अतीत बन कर खड़ा हो जाने वाला है !!
सुखद वर्तमान भी अतीत में दुःख देता है ..!!
ऐसी पोस्ट के लिए कभी कभी उदास होना बुरा भी नही..
ReplyDeleteकुछ चीज़े देर से मिलती है अगर वक़्त पे मिल जाये तो ये हसीन यादें किधर जाये.
आदि मानव भी कित्ता भोला था बेकार पत्थर टकरा के आग निकालता रहा....हथेली वाला concept उसे पता न होगा....:)
wah....sagar bhai.........
ReplyDeleteye udasi to khushi ke beez hain........
jiyo.....
waha waha
ReplyDeleteऐसी उदासी बरसों से नहीं आई थी। जो आई थी इस दौरान तो वो नौकरी, करियर, आटे दाल की कमी की उदासी थी। तुम्हारे छूने की उदासी नहीं थी।
ReplyDeletejeet raho mere bhai...kya lkh diya hai...kurban hun tum par..
उदास होते हुए भी बेहद ख़ूबसूरत पोस्ट| धन्यवाद|
ReplyDeleteateet aue vartmaan aur udaasi ki dher per aatmvishwaas yun hi nahi janm leta ... aapki kalam ko naman
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