बूंद जो रूकी होगी गुलमोहर के डंठल पर उसे कहना मेरा इंतज़ार करे। पेड़ के तनों का रंग लिए जो मटमैला सा गिरगिट होगा उसे कहना भुरभुरी मिट्टी देख कर ही अंडे दे। गंगा पार जब सफेद बालू पर परवल पीले फूलों वाला मिनी स्कर्ट पहन कर सीप में मोती सा पड़ा हो तो उसे कहना तुम कुछ दिन और हरे रहो। राजेंद्र प्रसाद के पुण्य स्थल पर अलसुबह हुए बारिश में अपनी ऊंगली से उन सफेद संगमरमर पर कोई नया ताज़ा शेर लिख जाना। इस शहर में दशहरे के वक्त आसमान लाल नहीं होता। अव्वल तो आसमान देखना ही नहीं होता। अपना शहर अच्छा है शिकायत होते ही आकाश तकते हैं। यहां यह शाम के लिए बचा कर रखना पड़ता है।
छत पर वाली बाथरूम के बगल वाली जगह खाली रखना जहां हमने न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण वाले नियम की परख की थी। यहां के मकानमालिक उस गज पर भी नोट कमाना चाहते हैं। पाल पोस कर बड़ा किया हुआ जगह अंतर्मन में अपने कुछ स्थान छोड़ जाता है। कई दिनों बाद जब वहां जाना हो तो चार आदमियों से बात करते हुए भी कनखियों से देख लेना होता है। वो शिवालय पर 'शिवम-शिवम' का लिखा होना, महावीर मंदिर पर 'महावीर विनउ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना' देख लेना, मोड़ पर का ढ़लान, द्वार पर वाले चौड़े गड्ढ़े में लहलहाता अलता का पेड़। और बहुत जज्बाती होकर यूकिलिप्टस के चिकने सादे से कागज़ जैसे तने पर उकेरे गए अजीज़ लोगों के नाम। किसी अच्छे ख्याल पर झूलते आम जैसे समर्थन करते हों और बाहों में भर कर एक जोरदार चुंबन लेने पर बेलों का झूमते देखना।
अड़हुल के फूल से लकदक डालियों से लाल लाल फूल तोड़ डलिए में रखना। बेवजह भैया के कोहबर में जा कर सुहाग वाला कोई गीत भूला भूला से गुनगुनाना। ओसरा के कमरे में चौखट के बाद गहरे नंगे पैरों की धमक और गाने का रफ्तार पकड़ना। दादी को यूं याद करना कि अपना ही अचरा जांच लेना। मिलते थे ना विक्टोरिया के सिक्के वहां पर पिंकी जो तुमने इनारे पर गोयठा (उपला) के नीचे छुपा कर रखती थी। कागज़ में लपेट कर एक बिसरा हुआ स्वाद वाला अचार भी लाना .... कच्ची सरसों तेल वाला और दाग ऐसा जो अब कभी ना छूटे।
पिंकी, धूप तो तेज़ हुई जाती है पर हमारा कद उस तरह से नहीं घट रहा।
बैक लो, बैक लो, और पीछे---बहुत दूर तक पीछे ले गये...बेहतरीन!!
ReplyDeleteaur kitna back lenge... gaadi ko gear mein daaliye....aur dandanate hue before waqt nikal jaaiye... forward baniye..forward aaiye....aitna nahi samjh mein aata hai
ReplyDeletewaise likhe theek thak ho :-)
बूंद जो रूकी होगी गुलमोहर के डंठल पर उसे कहना मेरा इंतज़ार करे।
ReplyDeleteमन तो पहली लाइन पर ही अटक गया उस बूँद के साथ... हौले हौले ढुलकते हुए नीचे आया तो दिल हुआ पीले फूलों वाली मिनी स्किर्ट पहने परवल को देख कर ज़ोर से सीटी मारने का (लड़कों के अंदाज़ में) ... बारिशों में संगमरमर पर शेर तो नहीं लिखे कभी, अलबत्ता सड़क पर खड़ी गाड़ियों के धूल भरे डैशबोर्ड्स पर उँगलियों से न जाने कितने ऑटोग्राफ्स दिये हैं :)
पोस्ट पढ़ते-पढ़ते कनखियों से यादों की कितनी ही भूली बिसरी गलियों में झाँक आये... हाँ! ऐसा ही तो करते हैं हम सब, पर ऐसे शब्द नहीं होते उन्हें बयां करने के लिये... पर आपने हर एक शब्द को झाड़ पोछ कर इतने प्यार और ख़ूबसूरती से एक-एक याद सजाई है कि यादों को भी ख़ुद पर ग़ुरूर होने लगे...
अरे पोस्ट के शीर्षक की तारीफ़ करना तो भूल ही गये... बैक लो... बैक लो... और पीछे... हाँ, तो शीर्षक के लिये खड़े हो कर तालियाँ !!!
ReplyDeleteबढिया पोस्ट,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
तेज धूप में ही हमारा कद घटने लगता है, शाम तक चौड़े होकर बैठ लेते हैं हम।
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