गाढ़ी, ठंडी बहुत ठंडी बीयर। फेन में कैद। जैसे कांटों के बीच खिला इतना लाल कि जैसे काला गुलाब, दिल जिसे शिवलिंग मान गाढ़ा, लाल टप टप करता अभिषेक करता है। जैसे बनैले जंगल में अमरलता। जैसे बेबसी में कैद जिंदगी, जैसे ढ़ीले वसन में अस्त व्यस्त औरत। जैसे शैतान जादूगर के डिब्बे में खूबसूरत राजकुमारी।
गाढ़ी, ठंडी बहुत ठंडी बीयर। फेन में कैद। जैसे बदहवासी में मुंह से गिरता लार। सुनहला, गाढ़ा। रंग और स्वाद एक से। पर बोतल की बीयर ठंडी और मुंह का लार गर्म। तुम्हारे लिए अन-हाईजेनिक लेकिन मेरे लिए असली तुम।
गाढ़ी, ठंडी बहुत ठंडी बीयर। फेन में कैद। जैसे रात की राख। अपने वक्त का मास्टर फिर सिफर। अपनी उम्र के उरूज में सब कुछ और फिर जिंदगी का एक हिस्सा भर।
तुम्हारे लिए मैं अंधा होकर तिलचट्टे सा रडार लगाए घूम रहा हूं। कोई जंगली चूहा किसी घर के रसाई में घुस आया है। कोई सूअर गुज़रे वक्त के सारे गजालत भरे पलों को अपने नथुनों से घिनौना मान दरकिनार कर रहा है। मन का कीड़ा चलते चलते ऊब कर उलट जाता है, पीठ के बल चलता है थोड़ी दूर, उभयचर भी कहलाता है।
रात रेंगती है नसों में। माहवारी से गुज़र रहा हूं मैं, पेडू में दर्द होता हैं। रीढ़ की हड्डी संग लिपट कर बैठ गया है कोई। जबरदस्ती कोई संभोग करता है और फिर जबरदस्ती की आदत हो जाती है।
मारो इसके गाल सूजा दो। बदन के हिस्सों को अलग अलग सजा दो। कोचो, देखो कि किसी विधि रूला दो। कहां है प्यास सही पता दो।
आदमकद होने तक बदन तोड़ दो फिर से मेरा।
गाढ़ी, ठंडी बहुत ठंडी बीयर। बोतल, फेन, दिमाग की नसों में कैद। पपीते में काले बीज सा। कच्चे आमों में मौजूद खिच्चे बिया सा। शाम ढ़ले ताखे पर रखा डिबिया सा।
पता था आदम को कि बीयर था करता इंतज़ार उसका। होठों का असली चंुबन। होठों का असली काम - चुनाव। होठों का असली काम - अपनाना।
गाढ़ी, ठंडी बहुत ठंडी बीयर।
कुछ कविता मयी कुछ कहानी मयी
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