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झूलते हुए रस्सी में मरोड़ बनी रहती थी, पकड़ थी कि ढीली पड़ जाती थी।



एहसास में बने रहने का नाम जिंदगी है वरना तुम पत्थर हो। गलतियां करो, और पछताने से ज्यादा रोया करो। उस शाम जब तुमने जब ये कहा था झील में किसी ने पत्थर फेंका था, कुछ पानी दो गुच्छे ‘टुभुक’ की आवाज़ के साथ उछले थे। बात सच्ची थी। मुझे अब भी याद है। दिन भर की हंसी मजाक के बाद यह पहली गंभीर बात तुमने कही थी जो तुम्हारे हिसाब से दिन का पहला मजाक था। तुम्हारे मंुह से जब भी इस तरह की बात निकलती थी, तुम हथेली से मुंह दाब कर बेतहाशा हंसती थी। अचानक से तुम्हारे ऐसा बोलने के बाद भी तुम आदतन हंस हंस कर दोहरी होने लगी थी।

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक जो लम्हे को जी कर आगे बढ़ जाते हैं, उन लोगों के लिए जो इसे अपने मन में टांक लेंगे। दूसरे टाइप के लोग पहले में ही आ गए। 

तुमने यह बात जब मुझसे कही थी तो मेरे दामन से उम्मीद का आखिरी सिरा भी छूट रहा था। मैंने भी आदतन तुम्हारी इस बात को नहीं माना। इस मामले में भी दो तरह के लोग होते हैं। एक समझाने मात्र से समझ जाने वाले। और दूसरा टाइप वाले में मैं हूं - मुझे ठोकर खाने, खाते जाने, चीज़ों को उसके हाल पर छोड़ देने और अगर हो पाया तो समय हाथ से निकलने के बाद खुद ही सुधरने की आदत है। लोगों का सब्र चूक सकता है मुझे समझाते समझाते। 

मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहता लेकिन मेरे अंदर का अंधेरा खत्म नहीं हो रहा है। सवालों के जवाब तरतीब से नहीं मिल रहे। किसी से वाजिब तरीके से प्रश्न भी नहीं पूछ पा रहा हूं। कभी कभी कुछ उठता है और अपने ही अंदर लड़खड़ा कर गिर पड़ता है। मैं न चाहते हुए भी अपने रास्ते में खुद भी दीवार बन गया हूं। चश्मा धंुधला पड़ गया है मेरा। अजीब बात है ऐसे इलाके में हूं जहां रोज़ 4 वक्त अजान सुनता हूं। लेकिन इनर कॉलिंग नहीं आ रही है। 

मैंने देख लिया और कहीं मेरी तृप्ति नहीं है। और टूटे फूटे ढंग से ही सही यही काम मैं थोड़े मन से कर पाता हूं। मेरे जिंदा रहने के लिए लिखना बहुत जरूरी है। लिखना मेरे लिए अच्छा है। यही मेरा मुक्ति मार्ग है।
मैं उम्मीद करता हूं कि आने वाला साल मुझसे मेहनत करवाएगा, विज़न साफ होगा और मैं लिख सकूंगा। 

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