स्वतंत्रता आंदोलन के दौड में फिल्मकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर इस आंदोलन को समर्थन देने का प्रयास किया. तब तक देश में सिने दर्शकों का एक परिपक्व वर्ग तैयार हो चुका था. मनोरंजन और संगीत प्रधान फिल्मों के उस दौड में भी देशभक्ति पूर्ण सार्थक फिल्में बनीं. स्वतंत्रता के ठीक बाद फिल्मकारों की एक नयी पीढ़ी सामने आई. इसमें राजकपूर, गुरुदत्त, देवानंद, चेतन आनंद एक तरफ तो थे वी. शांताराम, विमल राय, सत्यजीत राय, मृणाल सेन और हृषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार और दूसरे फिल्मकारों का अपना नजरिया था. चेतन आनंद की ‘ नीचा नगर ’ , सत्यजीत राय की ‘ पथेर पांचाली ’ और राजकपूर की ‘ आवारा ’ जैसी फिल्मों की मार्फ़त अलग-अलग धाराएँ भारतीय सिनेमा को समृद्ध करती रहीं . बंगाल का सिनेमा यथार्थ की धरती पर खड़ा था तो मुंबई और मद्रास का सीधे मनोरंजन प्रधान था. बॉक्स ऑफिस की सफलता मुंबई के फिल्मकारों का पहला ध्येय बना और इसी फेर में उन्होंने सपनों का एक नया संसार रच डाला. मनोरंजन प्रधान फिल्मों को व्यावसायिक सिनेमा के श्रेणी में रखा गया. एक दीर्घकालीन संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता के अभ
I do not expect any level of decency from a brat like you..
सागर...अथाह...अनंत...अबूझ.
ReplyDeleteगहराई जहां रौशनी की किरण भी न पहुंचे ऐसा कुछ है जो तुम में करवटें लेता रहता है.
सागर साहब...सलाम!
स्पीचलैस..
ReplyDeleteदेवकी की आंठ्वी संतान... क्या बात है जानी..!
गुरु बैठे तो हम भी ऑफिस में है ! पर आज भटक नहीं पा रहे.
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना।
ReplyDeleteदुनिया चार पैसे के लिए मर रही है और हम यहाँ चार लम्हे के लिए
ReplyDeleteअपना हीं ज्ञान हडकंप मचाता है
मेरे मन में आते विचार देवकी की आठवी संतान क्यूँ नहीं हो जाते...
सही है.. और अंतिम वाला तो एकदम सोंच से परे
'सोचालय'- सोच कर रखा है भाई नाम !
ReplyDeleteअद्भुत ! सोच कहीं आ सकती है, कहीं से आ सकती है ।
अपने लिये कहूं -
"आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः..."
यहां से भी !
जैसे किसी खुदाई में मिली पत्थर पे खुदी या फिर किसी लेखक की अनछपी रचना हो कोई..
ReplyDeleteलिखे शब्दों पे फेरी लकीर अजीब सी मनोस्थिति बनाती है.(सभी लोग मिट जायेंगे)
आपकी सुपरिचित सम्मोहक शैली में लिखी शानदार रचना.
बढ़िया अभिवियक्ति बधाई
न खाते गेंहूँ, न निकलते खुल्द से बाहर
ReplyDeleteजो खाते हजरते-आदम ये बेसनी रोटी
:-)
ऑफिस में बस कीजिए उतना सा ही काम, नौकरी चलती रहे ,शरीर करे आराम!
ReplyDelete:) कमाल है साहब..जवाबदेही तो बनती है..लगता है रेगुलर करवा करके ही छोडेगे आप..
आशा है ऐसे कई उड़ते हुए पन्ने ब्लॉग पर आ गिरेंगे !
ReplyDeleteजब तुम्हारी बातेँ मेरी बातेँ होती हैँ तो यह कविता है. जब यह मेरी बातेँ नहीँ होती तो पहेली.
ReplyDeleteसत्या
बहुत सुन्दर! राइटिंग भी बुरी नहीं है भैये! जय हो!
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