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उड़ जा सानू नई तेरी परवा...



INT. CAFÉ COFFEE DAY - DAY.

चंडीगढ़ के इस कॉफ़ी हाउस में मेज़ के इधर उधर, आमने सामने एक जोड़ा बैठा है। पीने की इच्छा कुछ भी नहीं है फिर भी बात ज़ारी रखने के लिए एक एक कप कॉफ़ी ली जा रही है। जूनी (लड़का) लगभग बेफिक्र है और इकरा (लड़की) कॉफ़ी का सिप लेकर जब टेबल पर स्लो मोशन में रख रही होती है तो हल्की रोशनी में सफेद टेबल कवर पर काली छाया दिखती है। लगभत यही रंग लड़की के आंखों के नीचे भी गहरे काले धब्बे के रूप में मौजूद है। बैकग्राउंड में जैज़ जैसी मद्धम धुन बज रही है।


जूनी:       नो......  नॉट इम्पोस्सिबल  ईरू... अब... नहीं हो सकता

इकरा:       हाऊ इज़ इट पॉसिबल जूनी ? तुमने कहा था ना हम घर छोड़ देंगे ?

जूनी:             नो... आई कांट... मैं घर के अगेंस्ट नहीं जा सकता। इसका रिजल्ट ठीक नहीं होगा।

इकरा: बट आई विल गो.... लिसन जूनी.... यू नो आई विल डाई। यू नो ना...

जूनी:                ऐसा नहीं होता... इनफैक्ट होगा। हमने साल भर साथ में बिताए ना... ईनफ है। (एक सांस में) सी ईरू !  ऐसे केसेज में हम अपने दिल में ही ग्राऊंड रिएलिटी को ईग्नोर कर रहे होते हैं। टू बी फ्रेंक... हर फ्यूचर भी जानते होते हैं।

(थोड़ा रूक कर)

             एण्ड टेल मी ओनेस्टली, क्या तुम नहीं जानती थी ?

इकरा : यू नो व्हाट, मेरे जानने का  होराइजन कम है और एक बार जान लिया कि क्या करना है तो फिर क्या नहीं करना है यह नहीं सोचती। ऐसा करो तुम मुझे बदनाम कर देना लेकिन शादी कर लेते हैं।

जूनी:           तुम्हारी बदनामी मुझसे अलग नहीं होगी। 

इकरा: (बात काटते हुए) लेकिन तुम्हारे बिना आगे जीना... क्या वो तुमसे अलग होगा ? 

जूनी:        तुमने कहा था आज हम बहस नहीं करेंगे। ईट वुड बी बेटर कि हम कोई साफ रास्ता निकाल लें। 

इकरा: कोई क्यों ? एक क्यों नहीं

जूनी: हां वही... एक.... 

(जूनी बहुत हिम्मत करके अपनी मुठ्ठी कसता है। चेहरा लाल हो आता है। माथे के किनारे से पसीने की बूंद धार की तरह नीचे गिरती है और कहता है) 

जूनी:       ...और वो एक ‘ना‘ है। यही लास्ट है।

(इकरा अपना सर मेज़ पर दे मारती है। खुले हुए बाल आगे की ओर गिर जाते हैं। जूनी दो सेकेण्ड देखता है फिर उठ खड़ा होता है। कुर्सी पीछे खींचते हुए इकरा को सुनाई देता है।)

जूनी:           नेवर कॉल मी अगेन।

(इकरा फफककर रोती है, पर रोना सुनाई नहीं देता, पेट में झटके पड़ते हैं और कोहनी के धक्के से टेबल हिलता है। जूनी शीशे के दरवाज़े के करीब आ गया है। दरवाज़े पर उसका हल्का सा अक्स उभरता है। वो दरवाज़ा खींचता है और बाहर निकल जाता है। खींचने और दरवाज़े के फिर से लगने में उस पर कई चेहरे डिजाल्व हो जाते हैं।

इकरा अब सर उठाती है। जूनी अपनी इनटाईसर के शीशे में जेल लगे बाल को ऊपर उठा कर नुकीला बनाता है और बाईक पीछे लेता है। इकरा को वो थोड़ी दूर तक नज़र आता है फिर एक मोड़ के बाद आंखों से ओझल हो जाता है।
इकरा अपने चेहरे से बाल सुलझाती हुई हटाते हुए मुस्कुराती है।)

इकरा: मदर फकर ! शादी की बात ना करो तो लीच की तरह चिपका ही रहता है।

Comments

  1. इसमें देसीपना कुछ कम सा लगा।

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  2. खुबसूरत रचना ,आभार|

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  3. oho ye ek naya rang dikhaa ..rochak

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  4. जमाने के साथ - साथ आपको भी अंग्रेजी से प्यार हो गया है ... पढ़ते- पढ़ते काफी की महक .. सहानुभूति के दुकड़े एकत्रित हुए और अंत में काफी का स्वाद और सहानुभूति दोनों खलास !!

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  5. कुछ हट के लगी आपका यह लिखा हुआ ...बढ़िया है

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  6. प्रेम और विवाह की दूरी में मतभेद की स्थिति कशमकश जगाती रहती है।

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  7. "एक बार जान लिया कि क्या करना है तो फिर क्या नहीं करना है यह नहीं सोचती। "
    सागर , मुझे सिर्फ़ यहाँ तक अच्छी लगी कहानी .. इतने ही पागलपन में कोई ऊँचे जाता है ..कहानी के अंत तक इकरा ज़मीन पे मुंह के बल गिरी ..कहानी भी .. मेरी नज़र में !
    मैं नहीं समझ सकी की ये कहानी तेज़ी से ऊपर जा रही थी ..फिर नीचे कैसे आ गयी ..! वो लाइन जो मैंने mention की है . वो ज़बरदस्त है . काश की कहानी उसी भावदशा पे चलती !

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