अपनी डफली... सबका राग! जर्नालिस्म में एक चीज़ पढ़ा था कि सूचना का पुनरूत्पादन होता है... मनोरंजन का भी गोया यही हाल है. हर चीज़ कहीं न कहीं पढ़ी लगती है, किसी न किसी सन्दर्भ से जुडी लगती है... ताक-झांक करने की मेरी पुरानी आदत है और आदतन हम अपनी डफली के बहाने गैरों के राग सुनाने बैठ गया... 'धुरंधरों के सामने इस ब्लॉग का कोई औचित्य नहीं है... यह बस उस गाने की तरह है- अ ने कहा ब्लॉग बनाइम, त बी न भी कहा ब्लॉग बनायेम... त हमहूँ कही हमहूँ ब्लॉग बनायेम... ब्लॉग बनायेंगे और छा जायेंगे... तो अब जब भी टेम मिलेगा अपन अपना हारमोनिया लेकर शुरू हो जायेगा... 'दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए... मुहब्बत भरी एक नज़र चाहिए... 'सच्ची साहिब हमको मुहब्बत भरी आपकी एक नज़र चाहिए' सलाम!
I do not expect any level of decency from a brat like you..