(विंध्यवासिनी मंदिर के ऊपर एक छज्जे पर बैठे दो कबूतरों की बातचीत (एक नर, एक मादा) ज्ञातव्य हो की दर्शन की बेला है और दोनों बातचीत में बार-बार अपने चोंच और नज़र को सीढ़ियों पर चढ़ते लोग की तरह इशारा कर रहे हैं ) एक घर होता है जहाँ तुम पैदा होकर बड़े होते हो. कुछ रिश्तेदारों के बीच एक और किरदार दिखता है जिसका आम सा संबोधन नहीं होता या घिसे हुए संबोधन होने के बावजूद वो खून का रिश्ता नहीं होता. पर उस किरदार का पूरे परिवार में और लिए जाने वालों फैसलों में पूरा दखल रहता है. तुम्हारे पिता के बाद वे मुखिया का स्थान ले लेते हैं. तुम बड़े होने तक नहीं जान पाते कि यह आखिर हैं कौन... पहले तो सिखाया जाता है कि इस किरदार को यह पुकारो, पर जब अक्ल खुलती है फिर पड़ताल करने पर यह पता चलता है कि इसका हमारे खानदान के खून से कोई रिश्ता नहीं .. यह एक अपरिभाषित रिश्ता है, एक अनाम सा जिसे तुम बुआ, ताई, जिज्जी, काकी या फिर नाम से ही बुलाते रहे हो. यह किरदार घर की भलाई के बारे में तुम्हारे पिता (अगर जिम्मेदार हुए तो ) से कम नहीं सोचता. ऐसा होने के कारण कई रहे होंगे और अब चूँकि वो अपनी जवानी खो चुकी है
I do not expect any level of decency from a brat like you..