अजीब बात है। आप किसी से कहां तक नाराज़ रहोगे, इस ज़माने में। नारियल का सा तो दिल है आपका। अंदर से श्वेत और कोमल और ऊपर से इगो। ऐसे में गर नाराज़ होते हो तो तुम्हारी मर्जी। हो जाओ। न तुमसे वो राब्ता रखेगा कि तुम अपनी नाराज़गी उस तक पहुंचा सको। न तुम गुस्से के मारे उससे वास्ता रख पा रहे होगे। इससे ज़ाहिर ही न कर सकोगे। तो बहुत दिनों बाद घुमाफिरा कर बात वहीं पहुंचेगी कि तुम्हें मुस्कुराना ही पड़ेगा। कितनी शिकायतें कहां तक पालोगे? लेकिन अपने दिल में कहां से क्या तक सोचते फिरोगे? खाने का निवाला, च्वइंगम जैसा लगेगा और लिथड़ता जाएगा जो कि हलक के नीचे उतरने का नाम नहीं लेगा। ख्याल आएगा तो पानी का एक बड़ी घूंट लेकर उसे बस जैसे तैसे नीचे धकेल दोगे। पेड़ के पत्तों के गुच्छे के नीचे का अंधेरा अपने मन जैसा लगेगा। बाहर का धुंधला कोहरा कहेगा कि देख मैं तेरे मन का प्रतिबिंब हूं। इस कदर तुम्हारे दिलो दिमाग पर काबिज़ हूं कि कुछ भी साफ नहीं है। सोच का समंदर दूर, बहुत दूर तक हिलकोरे मारेगा। एक लहर उठेगी और कहेगी - निकाले फेंक उसका ख्याल दिल से। दूसरी कहेगी कि होता है, उसे एक मौका और दे। तीसरी कहेगी, ऐसा पहले भी
I do not expect any level of decency from a brat like you..