Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Hard Gravy

कोई जिस्म के ताखे पर रखी डिबिया आँखों की रास कम कर दे

एक ने अपना भाई खोया तो दूसरे ने अपना घर। कभी कभी मन थकने, उसमें शून्य भरने और दुनिया बोझिल लगने के लिए दिन भर के दुख की जरूरत नहीं होती। खबर मात्र ही वो खालीपन का भारीपन ला देता है। कोई पैर झटक कर चला जाता है और पहले से खोखली चौखट के पास उसकी धमक बची रह जाती है जो उसके अनुपस्थिति में सुनाई दे जाती है। एक ही हांडी में दो अलग अलग जगह के चावल के दाने सीझ रहे थे। तल में वे सीझ रहे थे और ऊपर उनके सीझने का अक्स उबाल में तब्दील हो रहा था। ऐसा भी नहीं था कि वे सबसे नीचे थे। सबसे नीचे तो आंच थी जो उन्हें उबाल रही थी। बदन जब सोने का बन रहा था तो मन तप रहा था। शरीर इस्तेमाल होते हुए भी निरपेक्ष था। शरीर भी क्या अजीब चीज़ है, भक्ति में डालो ढ़ल जाता है, वासना में ढ़ालो उतर जाता है। कई बार उस मजदूर की तरह लगता है जो घुटनों तक उस गाढ़े मिट्टी और पानी के मिश्रण में सना है, एक ऐसी दीवार खड़ा करता जिसमें न गिट्टी है और न ही सीमेंट ही। क्या दुख पर कोई कवर नहीं होता या हर कवर के नीचे दुख ही सोया रहता है? क्या दुख हमारे सिरहाने तकिया बनकर नहीं रखा जिसपर हम कभी बेचैन और कभी सुक...

एल्बम के दो पन्नो के बीच अफसुर्दगी की नमी रहती है

जी हां! रात भर रोने और न सोने के बाद के बाद मैं आपके सामने फिर से तैयार हूं। और अभी इस वक्त जो पूरे घर में नंगे पैर घूम कर आ कर पलंग पर बड़ी बेतकल्लुफी से इस तरह बैठी हूं कि पैर न पलंग पर हैं न ज़मीन पर। आपको मेरे मैले हो आए पर तो नज़र आ ही रहे होंगे जो लगी मेंहदी के साथ कुछ इस तरह घुल मिल गई है कि कल की लगी मेंहदी हफ्ते भर पुरानी हो आई है। अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि मेंहदी की सजावट इन मैले तलवों में कहां गुम हो गई है। एक मिनट, क्या आप बता सकते हैं रंग ज्यादा किसका नुमाया है मेंहदी का या मैलेपन? आपको मालूम है जिंदगी में हर स्तर पर लड़ाई चलती रहती है? आपको पता तो होगा ही लेकिन आप यह जानकर हैरान होंगे कि मेरे तलवों पर भी लड़ाई हो रही है और यह बात एक होने जा रही दुल्हन से ज्यादा बेहतर कौन समझ सकता है? चलिए कोई और बात करते हैं। हम मनुष्य बड़े सपनीले होते हैं। ये सपनीले भी कैसा शब्द है। इस शब्द में भी नीले रंग हैं। मेरा एक स्वाभाविक सा सवाल यह है कि हमें इतने हाथ पांव मारने की जरूरत किसलिए पड़ी? आप कोई यथार्थ भरा नया शब्दकोश क्यों नहीं गढ़ते? ठीक है भारत बहुत अतीत में बहुत समृद्ध द...

जो रिपोर्ट में नहीं है...

परसों तकरीबन  सुबह  पौने नौ बजे हमारे प्यार को गोली एकदम सामने से  मारी  गई। वही वह रोज़ की तरह अपने घर साढ़े आठ में निकली थी। अपनी गली तक हस्बे मामूल अपने चोटी की दुम में उंगलियों से छल्ला बनाते आई। फिर जैसे ही उसकी गली, चौक के खुले सड़क पर आकर जुड़ी उसने झटके से अपने बालों को झटका देकर पीछे कर लिया जैसे घर की सरहद खत्म हुई। सब कुछ आदतन ही था। गुरूवार का दिन से लेकर उस दिन अपनी दीदी का पीला सूट पहने जाने वाले तक की बात भी, उसका फिटिंग ढ़ीला होना भी और एक आखिरी बार सबसे नज़र बचा दाईं ओर के ब्रा के स्ट्रेप्स को थोड़ा पीछे धकेलना भी। सबसे अंत में गर्दन नीचे कर एक नज़र अपने सीने पर भी डाली और सब कुछ ठीक रहते हुए भी अपना दुपट्टा ठीक किया। हालांकि मैंने आत्महत्या की कोशिश की और उसमें असफल रहने के बाद मिल रहे उलाहने और हो तमाशे के बाद मेरा सिर घुटा हुआ है। मैं दिखने में पागल जरूर लग रहा होऊंगा लेकिन ईश्वर को हाजि़र-नाजि़र मानकर अपने पूरे होशो हवास में इस बात पर कायम हूं कि मैं शारीरिक रूप से न सही मानसिक तौर पर पूरी तरह स्वस्थ हूं। और इस लिहाज़ से मेरी य...