क्षितिज पर शाम का सूरज लाल हुआ जाता है और उसकी लालिमा इन आँखों में उतर आई है. उधर सूरज उतरता जाता है इधर पीने की ख्वाहिश जवां हुई जाती है... ये शराब मांगती लाल आँखें हैं. कई हलकों में कई रात से जागी हुई. इनमें बसे सपनों को गर दरकिनार कर दिया जाये तो एक हथेली नींद भरी है जो किसी भी वक्त पूरे बदन को अपने गिरफ्त में ले उसे दुनिया से पल भर में जुदा कर सकती है. बुरी तरह से थके हुए इस जिस्म में थकान, टूटन, बुखार और दहशत एक साथ तारी है मानो पुलिस द्वारा रात भर दौड़ाया गया हो और अब जबकि थकान में चूर होकर शरीर ने जवाब दे दिया है तो ऐसे में कमर नीचे की ओर झुक आती है और दोनों हाथ बरबस घुटनों पर आसरा पाते हैं. ये लाल-लाल आँखें मानो रम का रंग घुल आया हो इनमें और ऐसे में चेहरा ऐसा जैसे दो बरस बाद किसी अपमान को सोचते हुए लाल पपीते का जमीन पर गिरना, किसी हत्या का गवाह होना जैसे श्मशान में पिछली रात जल कर ख़ाक हुए शव की राख कुरेदते परछाई. आँखें जैसे बदहवास पोरों से बुखार से तपते पलकों पर वर्जिश के बहाने रूह तलाशने की कोशिश, एक एकमुश्त मुहब्बत, जैसे बोरे में भर कर सील ली गई हो अमानत... क्षमा करें
I do not expect any level of decency from a brat like you..