वो आई और चली गई। मेरे पास अब सिर्फ यह तसल्ली बची है कि वो अपने जीवनकाल के कुछ क्षण मेरे साथ और मेरे लिए बिता कर गई। और जब से वह गई है मैं मरा हुआ महसूस कर रहा हूं। लेकिन मैं जानता हूं कि वो जी रही होगी कहीं। उसे जीना आता है और मुझे मरना। वो भी थोड़ा थोड़ा मर लेती है मगर मैं जी नहीं पाता। मैं मरे हुए में जीता हूं। वो जीते जीते ज़रा ज़रा मर लेती है। वो गई है और मुझे लगता है कि नहीं गई है। हर उजले उपन्यास के कुछ पृष्ठ काले होते हैं या कालेपन से संबंध रखते हैं। आज रम पीते हुए और उसके साथ मूंग की सूखी दाल चबाते हुए मैं सोच रहा हूं कि कई बार हम किसी उजले शक्स के लिए एक टेस्ट होते हैं जिसे गले से उतारना खासा चुनौतीपूर्ण होता है। और इसी कारण यह एक थ्रिल भी होता है। जीवन के किसी कोने में सबका स्थान होता है। बेहद कड़वी शराब पीने की जगह भी हमें अवचेतन में मालूम होती है। सामने वाले की आंखों में कातरता देख अपनी जि़ल्लत भरी कहानी के पन्ने खोलने को भी हम तैयार हो जाते हैं। अंदर कुछ ऐसा भी होता है कई बार जो हमारे मूल नाम के साथ लिखने को तैयार नहीं होता मगर वो जो अमर्यादित और अनैतिक पंक्तियां हैं...
I do not expect any level of decency from a brat like you..