सूरज की तरफ पीठ किए मैं एक पूरा-पूरा दिन तुम्हें सोचता रहता हूं। ऐसा लगता है तुम पीछे कुछ दूरी पर बैठी मुझे लगातार देख रही हो। तुम्हारी आंखों की नज़र मेरी गर्दन पर एकटक चुभा हुआ है। इस गड़ने वाली नज़र से जो गर्मी निकलती है उससे मेरी कनपटी, गर्दन, कंधे और पीठ में अकड़न शुरू हो जाती है। इन जगहों के नसों में झुरझुरी होने लगती है। किसी रहस्यमयी सिनेमा में तनाव के समान तुम्हारा ख्याल हावी होता जाता है और मैं धूप में कांपने लगता हूं। प्यार में आदमी कहीं नहीं जाता। वहीं रहता है सदियों तलक। तुमने आज सुबह सुबह पिछले साल क्रिसमस की जो तस्वीर भेजी है, गोवा 2011 के नाम से सेव है। मैं यहां बैठा बैठा भी 2011 का ख्याल नहीं कर पाता। हालत किसी जख्मी परिंदे जैसा है जो भूलवश किसी गुंबद के अवशेष में आ गया है और अब चोटिल हो चारों दीवारों पर अपने पंजे मार कांय कांय किया करता है। XXXXX प्रचंड गर्मी में सर पर जो थका हुआ पंखा अपने पूरे वेग से घूमता है जिसे कैमरे की नज़र से स्लो मोशन में घूमता नज़र आता है, वो भी सन्नाटा नहीं काट पाता। बाहर का तो क्या अंदर का सन्नाटा पूरा महफूज रहता है। कोई यकीन करेगा
I do not expect any level of decency from a brat like you..