भीड़ में सहसा मुझे देख उसकी आंखें महकीं। चश्मा जोकि थोड़ा ढ़लक आया था सो उसने चार आंखों से मुझे देखा। मेरी निगाहें लगातार उस पर थी। नेकलाइन पर बल पड़े और वो आधी इंच नीचे धंस आई। चश्मे वालों के साथा थोड़ी दिक्कत ये होती है कि उसके शीशे पर अगर लाईट पड़ती है तो शीशे पर रोशनी की एक शतरंजी खाना नज़र आता है फिर एक पल को यह संदेह उपजता है कि उसने मुझे देखा या नहीं। और इसी दरम्यान अगर हम नहीं चाहते कि वो हमें देखे तो हम किसी दीवार के आड़े आ सकते हैं, नीचे झुक सकते हैं, पीछे मुड़ सकते हैं। आंखें किसी को कैसे चीन्हती है। पहले स्वाभाविता में नज़र पड़ती है फिर सहज ही गर्दन इधर उधर घूम जाती है लेकिन उस पहचाने की आंख हमारे स्मृतियों में सहसा धंस आती है और तंग करने लगती है। संबंधों में एक लाख शिकायत के बाद भी पहली प्रतिक्रिया मुस्कुराहट की ही होती है। वो स्केलेटर से चढ़ रही थी और मैंने सीढि़यां ली थी। ऊपर प्लेटफार्म पर हाॅर्न बजाती मेट्रो आने या जाने का संकेत दे रहा था। अमूमन सभी मानकर चलते हैं कि गाड़ी अब लगने वाली होगी, सो सबके कदमों की रफ्तार बढ़ जाती है। एक दूसरे को पहचानने की क्रिया को
I do not expect any level of decency from a brat like you..