परसों तकरीबन सुबह पौने नौ बजे हमारे प्यार को गोली एकदम सामने से मारी गई। वही वह रोज़ की तरह अपने घर साढ़े आठ में निकली थी। अपनी गली तक हस्बे मामूल अपने चोटी की दुम में उंगलियों से छल्ला बनाते आई। फिर जैसे ही उसकी गली, चौक के खुले सड़क पर आकर जुड़ी उसने झटके से अपने बालों को झटका देकर पीछे कर लिया जैसे घर की सरहद खत्म हुई। सब कुछ आदतन ही था। गुरूवार का दिन से लेकर उस दिन अपनी दीदी का पीला सूट पहने जाने वाले तक की बात भी, उसका फिटिंग ढ़ीला होना भी और एक आखिरी बार सबसे नज़र बचा दाईं ओर के ब्रा के स्ट्रेप्स को थोड़ा पीछे धकेलना भी। सबसे अंत में गर्दन नीचे कर एक नज़र अपने सीने पर भी डाली और सब कुछ ठीक रहते हुए भी अपना दुपट्टा ठीक किया। हालांकि मैंने आत्महत्या की कोशिश की और उसमें असफल रहने के बाद मिल रहे उलाहने और हो तमाशे के बाद मेरा सिर घुटा हुआ है। मैं दिखने में पागल जरूर लग रहा होऊंगा लेकिन ईश्वर को हाजि़र-नाजि़र मानकर अपने पूरे होशो हवास में इस बात पर कायम हूं कि मैं शारीरिक रूप से न सही मानसिक तौर पर पूरी तरह स्वस्थ हूं। और इस लिहाज़ से मेरी याददाश्त पर भरोसा कि
I do not expect any level of decency from a brat like you..