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पेड़ के तने और फुनगी में बहुत विरोधाभास है

किसी टेसन से कोई कोयले वाली गाड़ी छूटने की अंतिम चेतावनी देती है। प्रभाती गाई जा चुकी है। कोई टूटा सा राग याद आता है। पहले मन में गुनगुनाती है फिर आधार लेती हुई मैया शुरू करती है - उम्महूुं, हूं हूं हूं हूं, ला ला ला ला लाला ला ला... अनाचक लय पकड़ में आ जाता है और अबकी दूसरी लाइन से शुरू करती है। 'कि रानी बेटी राज करेगी। महलों का राजा मिला रानी बेटी राज करेगी।' सर्दियों की सुबह है। धूप खिली है। आंगन में खटिया पर मैया अपने अपनी दोनों पैरों को सामने सीधा करके बैठी है। और पैरों पर ही रानी बेटी लेटी है। आंखें में काजल, बाईं तरफ माथे पर काजल का गोल टीका, हाथ-पांव फेंकते, हल्की जुकाम से परेशान, अनमयस्क सी। बीच बीच में मन बहल जाता है तो पैर के अंगूठे को उठा कर मुंह में रख लेती है। सरसों तेल की मालिश हो रही है। मैया बड़े जतन से बहलाती हुई, कभी डांट कर कभी ध्यान बंटा कर मालिश कर रही है। एक हथेली जित्ता पेट, दो अंगुल का माथा, थोड़ा लंबा घुंघराले केश, कुल मिला कर एक गोल तकिए जैसी आकृति, गुल गुल करती, स्पंजी। गुंधे हुए गीले आटे के स्पर्श सी। कभी कभी हैरान होती हुई ...

मरियम...

तुम जानते हो सुख क्या है ? बहुत हद तक तो मैं भी नहीं जानती लेकिन फिर भी उसके आसपास का सच महसूस करती हूं। वैसे भी इंसानी एहसासों को पूरी तरह से जानने का दावा कौन कर सकता है? बड़े बड़े मनोवैज्ञानिक भी ग्राफ चार्ट की मदद, सर्वे, प्रतिशतों का खेल, औसत लोगों पर किए गए अध्ययन से ही अनुमान लगाते हैं। पूरी तरह से जानने का दावा वो भी नहीं कर पाता। कभी उनके कथनों पर गौर करना तुम्हें मैं सोचता हूं कि, मुझे लगता है कि, ऐसे मामलों में मुख्यतः ऐसा होता है कि, सामान्यतः लोग ऐसा कहते/करते हैं, मेरा अनुभव या अध्ययन फलाना कहता है, मिस्टर एम के साथ इसी हालात में चिलाना कदम उठाया था, कई इंसान औरत की तरह भी हो सकते हैं, वो पानी की तरह हो सकते हैं, जो ढ़लान देखकर उधर की ओर सरक जाता है। ब्ला...  ब्ला... ब्ला... मैं अपनी हाल-ए-दिल कहूं तो मुझे आज तक नहीं लगा कि मैं प्यार में हूं। वो जब मेरे साथ होता है तो मुझे बस अच्छा लगता है। जरूरी नहीं है कि मैं उसका चेहरा देखती रहूं। हम पार्क में एक दूसरे से उलट अपनी पीठ सटाए मूंगफली खाते हैं तो भी मुझे सूकून रहता है। और उसके आस पास होने का भ्रम भी मुझे...

रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें

दादी,  मेरे पास दारु पीने को कितने बहाने हैं ! आज शाम उदास है इसलिए पी लेता हूँ, आज 'एलियन'  बहुत याद आ रही है इसलिए पी रहा हूँ, आज नौकरी नहीं मिली इसलिए... तो आज तुम मेरे साथ नहीं हो इसलिए... अब तो दिल करता है अपना ऊपर ब्लेड ही चला लूँ  और अपना ही खून पीउं, वैसे भी इतने दिनों में खून शराब में तब्दील नहीं हुई होगी क्या ?   नशे में जब माथा घूमता है तो लगता है पूरा शहर मेरे साथ घूम रहा है... सारी सृष्टि मेरे साथ नाच रही है.  जिस्म के अन्दर जो तट है उसके वहां मजधार से आती कितने सुनामी हैं... यह आती हैं और बसे-बसाये सभी झोपड़ियों को तहस-नहस कर देती हैं... दादी, लगता है जैसे यह धोबी है और मुझे कपडे जैसे पटक-पटक के धो रही है तभी इतना बेरंग हुआ हूँ कि अब कोई रंग मुझ पर नहीं चढ़ता...  ये बेरंगी उसी मजधार से आई है.  हाँ - हाँ ! वही मजधार जहाँ उसने मुझे छोड़ा था. कोई कितना नशे में है यह उसने पैर के अंगूठे पर खड़े रह कर कांपने से सिखलाया था...  अभी बीती सर्दी में...