डिस्क्लेमर: इस पोस्ट के सभी पात्र वास्तविक हैं, इनका दिए गए ब्योरे से, उन घटनाओं, स्थानों एवं संदर्भित व्यक्तियों से पूरा सम्बन्ध है और ऐसे सभी काम के लिए वही पात्र उत्तरदायी है . दिनांक : गुलाबी सर्दियों कि आमद स्थान : सामान्य सी बात थी, हर जगह घटती रहती है. समय : टूटने का कोई वक्त होता है क्या ?? नहीं बताओ ना होता है क्या ? जुर्म : वही, घिसा पिटा काम जो सब करते हैं. इकबालिया बयान : 20 वीं सदी के जाते जाते और 21 वीं सदी की दहलीज़ पर पैदा हुआ, प्रेम करता हुआ और और जीता हुआ मैं एक कन्फ्यूज्ड किशोर था. मुझे जावेद अख्तर के लिखे मीठे गाने अच्छे लगते थे, देर रात में कुमार सानू और सोनू निगम को सुना करता. जिनमें बेशुमार, तितली, नदी, पहाड, झड़ने, बादल, रंग, बारिश, आंचल और मदमाते नयनों का जिक्र होता. मुझे सोच कर सारी कायनात मुहब्बत से सराबोर लगती. तब मुझे बहुत कुछ कहाँ पता था... लेकिन जो पता था वो यह कि तुम्हीं सच हो और पूरे जगत में बिखरी हो. हर किताब और गिफ्ट पर बड़े भलमनसाहत से लिखता था – लव इज लाइफ. तब कहाँ पता था कि मुहब्बत फुर्सत में किया जाने वाला काम है. भोलेपन
I do not expect any level of decency from a brat like you..