वक्त हो गया जानम, अब अपने हल्के ऊनी कपड़े उतार कर मुझे दे दो। जो तुमने दिन भर पहन कर इधर उधर भागदौड़ की। तुमने दौड़ कर बस पकड़ी, हमारे भविष्य को सोच सोच कर लिफ्ट में पसीने पसीने हुई। ना ना बाथरूम के शीशे में अपने चेहरे पर जमी इस चिकनाई को धोना मत। मैं दिली तमन्ना थी कि तुम खूब थको। इस दुनिया के तमाम रंगो बू तुममें शामिल हो जाए। हाईवे के किनारे उग कर फैल जाने वाले मालती के फूलों जैसी। बेतरबीब और नैसर्गिक सौंदर्य। जब कभी मैं तुम्हारे तांबाई नीम उरियां गुदाज़ बाहों के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि शराब के बाद का संबल देने वाला बस यही एक हहराती डाल है जो इस वक्त ठहरी है। मैं जनम का प्यासा, नींद में प्यास लिए जब यह ख्याल करता हूं कि तुम्हारे इन बाहों पर दिन पर एक नमकीन नदी तैरी होगी जो अब सूख कर तुम्हें और नमकीन बना चुका है तभी तुम्हारी तुलना खुद से कर सकने में समर्थ होता हूं। इंसानों में क्लास वैसे भी कभी नहीं पसंद आया। इन दिनों दिन भी कैसा लगता है। कुछ चेता और बेसुध सा। जैसे नींद में गला सूख रहा हो। कोई परेशान करने वाला सपना देख रहा होऊं, जिसे तोड़ नहीं पा रहा होऊं और सूखे हलक पर खा
I do not expect any level of decency from a brat like you..