अचानक से उम्र और ज्यादा लगने लगी है. चाय पीने के बाद भी चाय पीने की तलब लगी रहती है... खून की कमी से चिडचिडापन बढ़ने लगा है, हर बात का जवाब देने लगा हूँ.. सहनशीलता ख़त्म हो रही है. यादाश्त भी पहले सी नहीं रही ... किसी बस स्टॉप पर रख कर भूल जाता हूँ... हँसते हुए मुंह तो खुलता है पर बंद नहीं हो पाता... चश्मा पहनकर आईने में देखता हूँ अपनी ही पांच-छह आँखें दिखाई देती है... हाथों में स्पर्श देर से पता चलता है. थरथराहट लगी रहती है.. रोज़ सुबह उठकर देख लेता हूँ मेरी पत्नी जिंदा तो है ! वो भी मुझे शायद नींद में चेक कर लेती होगी. हमारे बीच एक अबोला सा डर दाखिल हुए कुछ महीने हो गए हैं... यह डर हम प्रेम की आड़ में वैसे ही अनदेखा करते हैं जैसे बच्चे और समाज हमें कर रहे हैं.. यों कभी-कभी कुछ समाचारपत्र वाले आते हैं जो अपने खाली जगहों को भरने के लिए सबसे नीरस पन्नो पर हमारे भावनाओं को "बुजुर्ग चाहे आपका साथ" या "बड़ों को सम्मान करिए"जैसे दयनीय शीर्षक लिए हमारी शिकायतों से कुछ वाक्य कोट कर लेते हैं. ये सब भी घरों में उब की हद तक अलसाए दोपहरी में गर्भवती महिलायें ही पढ़ती हैं
I do not expect any level of decency from a brat like you..