चार बजे स्कूल की घंटी बजती है। इसको बजते बहुत कम बच्चों ने देखा है। कुछ उन बच्चों ने जिन्हें मास्टर जी की क्यास निहायत ऊबाउ लगता है, जो अपनी कक्षा में 92 की वल्र्ड कप के हीरो इमरान खान की बात नहीं करते। कुछ उन बच्चों ने जिन्होंने सबक नहीं बनाया हो, अपना नंबर आता देख 3ः55 पर रोनी सूरत बना कर हाथ की कानी उंगली उठा देता, कुछ उन लड़कों ने जिनके लिए पढ़ाई मायने नहीं रखती, कंठ फूट रहा हो, बगलों पर मुलायम बाल आने शुरू हुए हों और रात को स्वप्नदोष की बातें जब अपने दोस्तों को बताए तो साथी नफरत से पेश आते हुए उसे सही जगह उपयोग करने की राय दे। स्कूल के पीछे की गली में बहता अविरल पेशाब महकता रहता और कुछ चार चार साल से अपनी ही कक्षा में जमे बच्चे अपनी-अपनी वाली को (जो कि कोई एक हो तय नहीं था) यथा संभव चूम रहे होते। वक्त के उन कीमती पलों को आज जिसने भी संजो कर रखा है उस माहौल और उस गंध की तलाश में आज भी मारा मारा फिर रहा है। वैसे कई बच्चों ने घंटी को गौर से नहीं देखा था। घंटी उनके लिए एक आनंद की लड़ी थी। बिना देखे वो कल्पना कर लेते कि लोहे का दो मोटा लंबा सा छेद वाला र...
I do not expect any level of decency from a brat like you..