शाम का सन्नाटा फिर से काबिज है। और मेरा मन तुम्हारी ओर लौटने लगा है। दिन भर काम कर लिया मैंने। आज कल तुम ही मेरी शराबखाना हो। दिन भर के बाद की ठौर हो। मैं भी कितना मतलबी हूं। दिन में कई बार याद आने के बाद भी कुछ नहीं कर पाता हूं। लेकिन शाम होते ही तुम्हारे ख्यालों से मुझे बीयर की महक आने लगती है। तुम्हारी तस्वीर देखता हूं तो लगता है जैसे मेले में अपनी सहेलियों से छूट गई लड़की हो। आंखों में वही लहक लिए कि जो भी मिलेगा तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुंचा देगा। लेकिन मैं खुद भटका हुआ हूं घर से। खबर तो है मुझे कि तुम्हें कैसा लगता होगा लेकिन शायद पहुंचा नहीं सकूंगा। मैं तुममें अपना घर देखता हूं। तुम्हारे साथ शायद घर तलाशने की सोचूं मैं। तुम मिल तो गई हो मुझे लेकिन मुझे नहीं पता कि मुझे तुम्हारा करना क्या है। सिर्फ पाने खाने का नाम प्रेम नहीं है, अगर ऐसा होता तो मैं विजेता था। अच्छी बात यह है प्रेम में कि इसे दुनिया की नज़र से नहीं देख सकते हम। हमें एक दूसरे के लिए ही होना है। एक दूसरे को समझने को भी जरूरी नहीं मानता मैं। बस जस्ट बी विद मी। कभी कभी मन होता है कि तुम्हारा नाम ल
I do not expect any level of decency from a brat like you..