Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Daughter

वक़्त को स्टेचयू कहा है हमने, जरुरत क्या तस्वीर की; फुर्सत की

Chubby cheeks, dimple chin   Rosy lips, teeth within,   Curly hair, very fair,   Eyes are blue, lovely too,   Mama's pet, is that you??   Yes! Yes! Yes! बहती नाक में इत्ते सारे काम गिल्ली ही संभाल सकती है। गिल्ली। इस नाम के पीछे सीधा सा परिचय यह कि महादेवी वर्मा के एक कविता की आधार पर यह नाम रखा गया है। लंबे   से   एक नेवी ब्लू स्कर्ट और सफेद कमीज़ में डेढ़ हाथ की गिल्ली। बदन पर एक तिहाई कमीज और दो तिहाई बहुमत में लिपटी गिल्ली। प्यारी गिल्ली। दुलारी गिल्ली। मोटू गिल्ली। ऐसी गिल्ली, वैसी गिल्ली। जाने, कैसी कैसी गिल्ली। पूरे घर में बस गिल्ल ही गिल्ली। मां-पापा ने कुछ सोच कर रही इत्ता लंबा स्कर्ट खरीदा है कि कम से कम इस खेप से ही वो दसवीं कर लेगी। कम से आठवीं का टारगेट तो पूरा कर ही लेगी! करना कुछ नहीं है, अगर कमर का साइज ठीक रहा तो बस नीचे के बंधन बढ़ती उम्र के साथ खोलती जाएगी। स्कर्ट ऑटोमेटिक रूप से उसकी लंबाई को कवर करता चलेगा। एक सौ सत्तर रूपए में एक ही थान से भाई के लिए हाफ पैंट और बहन के लिए स्कर्ट खरीदी गई है। खैर...! एनुअल ...

दीवार से टकराकर मछली लौट जाती है

गर्मियों के दौरान स्कूल के मेन गेट पर बाईं तरफ एक खोमचे वाला खड़ा रहता। ब्लू चेक वाले लंुगी और हाफ सूती शर्ट में, बाल बड़े सलीके से झाड़े एक सभ्य, सौम्य बंदा। देखने से लगता शिक्षा अच्छी लिया हुआ अधेड़ युवक लेकिन मजबूरी (बहुत हद तक पैसे की कमी) के कारण आगे पढ़ने से वंचित वो सांवला आदमी जो देखने में बंटी के पापा जैसा लगता, एक सभ्य इंजीनियर जैसा। ये डाॅक्टरों और इंजीनियरों की पर्सनाल्टी क्या पढ़ते-पढ़ते या प्रैक्टिस में ही बन जाती है? खैर... वो एक बड़े आकार वाले डमरू के लकड़ी के स्टैण्ड पर एक चैड़ी सी टेबल लिए खड़ा रहता। क्या-क्या है उसमें ? कागज़ के कुछ मोटे गत्ते। किरासन तेल वाला शीशी जो अंधेरे में डिबिया का काम करता है। कफ सीरप वाली शीशी जिसमें सरसों का तेल है, एक ठोंगे में कटे हुए महीन प्याज, एक बड़ी शराब के बोलत में लाल चटनी जिसके ढ़क्कन पर कांटी से छेद किया हुआ है ताकि जोर दे कर उझलने पर थोड़ा थोड़ा बाहर गिरे। कुछ प्लास्टिक के पारदर्शी डब्बे जिसमें फरही (मूढ़ी), चना, हरी चना, चूरा, बादाम वगैरह रखे हैं। एक पन्नी में आधे आधे कटे हुए नींबू, एक में इमली, एक छोटे डब्बे में लाल मिर्च ...

अलखि, तुम्हारे अक्षर तो सुग्गा मैना के कौर से लगते हैं !

ज़मीन पर बोरा बिछा, अलखि उस पर पालथी मार कर बैठी है। दोपहर चार बजे का समय है। धूप छप्पर पर से वापस लौट रही है। आंगन के बाईं ओर गोशाला है और दाहिनी तरफ मिट्टी से घिरे किंतु थोड़ी ऊंचाई पर गिलावे पर ईंट से घेरा पूजा स्थान। इसपर गोबर से लिपाई की हुई है। बीच में हनुमान जी की ध्वजा है जो हर साल रामनवमी पर बदली जाती है। अलखि ऊपर देख कर सोचती है। अभी-अभी तक तो नया था क्योंकि चैत्र गुज़रे ज्यादा दिन नहीं हुए हैं लेकिन रंग थोड़ा धूसर हो रहा है। एक बारिश गिरेगी ना, तो ध्वजा का लाल रंग और हल्का हो जाएगा। सफेद, उजला आकाश कितना सूना है। लगता है खराब हो गए कपास रखे हों।  बोरे पर पिचहत्तर फीसदी जगह घेर कर अलखि बैठी है। शेष पच्चीस प्रतिशत स्थान पर उसकी किताब कॉपी है। कॉपी क्या है एक नमूना है। अगर पलट कर देखी जाए तो मालूम होता है जैसे नितांत उलझन में लिखी गई हो। जैसे कोई जवान लड़का किसी किशोरी को प्रपोज़ कर रहा हो तो शर्म और उलझन में जो आरी तिरछी लकीरें खिचेंगी, उसकी पूरी कॉपी  कुछ ऐसी ही लगती है लेकिन ठहरिए जिसे आप इस कुंवारे और अनछुए रूपक द्वारा तौल रहे हैं अगर अलखि के पास यह उदाहरण रख ...

मेघे ढाका तारा

कल कितना हसीन दिन होगा न दादा ! मुझे समय से भूख लगेगी और हम सवेरे सवेरे मंदिर जाएंगे, कम से कम अपना कर्म तो करेंगे। मैंने सोचा है कि बड़ी सी टेबल पर शीशे के ग्लास जो उल्टे करके रखे हैं उसी समय सीधा करके उसमें तुम्हारी फेवरेट रेड वाइन डालूंगी।  आखिरकार मैंने ठान लिया है दादा कि मैं कल सीलन लगी दीवार, इस मौसम के गिरते पत्तों की परवाह नहीं करूंगी। कल न उनसे अपने दिमाग की उलझनें जोड़ूंगी दादा। कसम से दादा। कल उधर ध्यान नहीं दूंगी दादा। दादा बुरा वक्त है जानती हूं लेकिन मैं खुश रह लेती हूं। तुम्हारे नाम की आड़ रखकर तो मैं कुछ भी कर लेती हूं दादा। दादा हम शरणार्थी। शिविर को कैसे घर मान सकते थे दादा ? चैकी के नीचे का रूठा पायल कुछ बोले, न बोले दादा हम तो कल खूब खुश रहने वाले हैं। दो शब्द बस दादा - खूब, खूब खुश। सच्ची। नए साल की तरह।  हमारे अंदर जब अच्छाई जागती है न दादा तो खूब जागती है इतनी कि कुछ भी अच्छा नहीं हो पाता। ऐसा कि खुद को ऊर्जा से भरपूर मानो दादा और सोचो कि आज सारे काम निपटा देंगे फिर कैसी गांठ जमती है मन में कि शाम तक बिस्तर से उतरना नहीं होता ? हाट जाने के सारे रस्...

री सखी ! जाग री

गुलाबी रंग की फ्रोक और लगभग उसी रंग की हेयर बैण्ड पहने   ‘ रेनी ’ (मेरी बेटी) बालकनी से टाटा करते सूरज  को  चिढा रही है. उसने जाते हुए सूरज को ‘ रुको साले, एक मिनट ’ कह कर अपने हाथों से बैंगल खोला और उससे सूरज का नाप ले उसकी हैसियत बता दी है. इतने पर भी उसकी खीझ खत्म नहीं हुई तो उसने उसे मुंह दूषना शुरू कर दिया. अपमानित हो रहा लाल सूरज गुस्से के मारे और सूज कर बड़ा हो गया है और फलक पर किसी यूँ टिप्पा खा रहा है के जैसे किसी थके हुए नौजवान ने अपने कमरे  के   दीवार पर   दिन  भर लात  खाया  हुआ फुटबाल दे मारा हो. रेनी भी भीतर से खीझ इसलिए महसूस कर रही है क्योंकि सूरज उसके हाथ नहीं आ रहा. उसका बस चले तो उसका मुंह नोच कर ही दम ले लेकिन फिलहाल जो कुछ उससे बन पड़ रहा है उसमें वो पूरे लगन से लगी हुई है. बालकनी में जाती हुई धूप की अंतिम किरणें छिटक रही है. रेनी को गुमान होता है जैसे सूरज अपनी रूह यहीं छोड़ गया हो. उसे एक मौका मिल जाता है. अपनी सैन्डल उतार कर वो धूप पर ही सूरज को दिखा-दिखा कर सैन्डल बरसाए जा रही है. उधर सूरज भी पेड़ों के झुरमुट से ...

कोमल...

कोमल को ‘ ओए होय होय होय होय ’ बोलने की आदत है और मेरा ‘ शब्द जादू करते हैं ’ कहने की. हम कह सकते हैं की यह दोनों हमारे तकिया कलाम है जो वक्त- बेवक्त हम दोनों दोहराते रहते हैं. पर बहुत फर्क है हम दोनों में. कोमल जो की मेरी बेटी है जी. वो जब ‘ ओए होय होय होय होय ’ बोलती है तो कई भाव में बोलती है... हैरानी में, शरमा कर, जब किसी पे प्यार आये तब. वो 15 साल की हो चुकी है पर पिछले 3 साल से खुद को 12 से आगे नहीं मानने को तैयार नहीं. सही भी है क्योंकि यह बदमाशी और मासूमियत ही है जो उसे 12 का बनाये हुए है... मैं उसकी बात थोडा कम ध्यान से सुना करता हूँ क्योंकि उस वक्त भी मैं उसे दुआएं देता रहता हूँ... वो जब भी ओए होय होय होय होय बोलती है तो उसके होंठ गोल हो जाते हैं और मुझे बेतहाशा अपनी गर्लफ्रेंड का सिगरेट पीकर उसका धुंआ मेरे मुंह पर फैंकने का दृश्य उभर जाता है. कोमल की आँखें ऊपर की ओर चढ जाती है और वो भी गोल होकर थिरकने लगती है. फिर मुझे लगता है सारी कायनात में कंपन होने लगी है. वो यह बोलते समय हर शब्द पर रूकती है जैसे अपना बोला हुआ सुनना चाहती हो. वो कहती है जब में यह बोलूं तो वातावरण...