अजीब बात है। आप किसी से कहां तक नाराज़ रहोगे, इस ज़माने में। नारियल का सा तो दिल है आपका। अंदर से श्वेत और कोमल और ऊपर से इगो। ऐसे में गर नाराज़ होते हो तो तुम्हारी मर्जी। हो जाओ। न तुमसे वो राब्ता रखेगा कि तुम अपनी नाराज़गी उस तक पहुंचा सको। न तुम गुस्से के मारे उससे वास्ता रख पा रहे होगे। इससे ज़ाहिर ही न कर सकोगे। तो बहुत दिनों बाद घुमाफिरा कर बात वहीं पहुंचेगी कि तुम्हें मुस्कुराना ही पड़ेगा। कितनी शिकायतें कहां तक पालोगे? लेकिन अपने दिल में कहां से क्या तक सोचते फिरोगे? खाने का निवाला, च्वइंगम जैसा लगेगा और लिथड़ता जाएगा जो कि हलक के नीचे उतरने का नाम नहीं लेगा। ख्याल आएगा तो पानी का एक बड़ी घूंट लेकर उसे बस जैसे तैसे नीचे धकेल दोगे। पेड़ के पत्तों के गुच्छे के नीचे का अंधेरा अपने मन जैसा लगेगा। बाहर का धुंधला कोहरा कहेगा कि देख मैं तेरे मन का प्रतिबिंब हूं। इस कदर तुम्हारे दिलो दिमाग पर काबिज़ हूं कि कुछ भी साफ नहीं है। सोच का समंदर दूर, बहुत दूर तक हिलकोरे मारेगा। एक लहर उठेगी और कहेगी - निकाले फेंक उसका ख्याल दिल से। दूसरी कहेगी कि होता है, उसे एक मौका और दे। तीसरी कहेगी, ऐसा पहले भी हो चुका है। चौथी - तूने भी तो फलां के साथ ऐसा ही किया था। पांचवीं -जाने दे, हर घटना अपनी कीमत लेती है। इस रिश्ते को भी आखिर कुछ न कुछ चुकाना ही था। छठी- अब से किसी पर यकीन नहीं करूंगा। सातवीं - लेकिन फिलहाल किसके कंधे पर सर रखकर रोएगा ? तू गुनाह से तौबा भी करता रहेगा और फिर इसी चीज़ को किसी न किसी बहाने न्यौता भी देता रहेगा। हाथ में कोई पेंसिल होगी तो एक ही लकीर पर उसे घिसते घिसते लकीर मोटी कर देगा। मुंह में कोई सुपारी होगी तो उसे महीन दर महीन पीसता चला जाएगा। नौवां ख्याल पूरे वारदात को फिर से नए सिरे से सोचने को कहेगा। तू उस पर इस बार थोड़ा सजग होकर अमल करेगा। अबकी संवाद ज़रा ज्यादा संभले हुए होंगे। नपे-तुले होंगे। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद फिर एक ज़ोरदार लहर उठेगी। खुद को ठगे जाने का ख्याल पहले से ज्यादा कड़वा बनकर इस कदर हावी होगा कि सोचेगा ज़िंदगी जैसे सबको मज़े देने वाली वेश्या हो गई है। हालांकि वेश्याओं का तेरे मन में बड़ा सम्मान होगा लेकिन जिस तरह लोग उसे बरतते हैं अपना हाल भी कुछ वैसा ही है। कोई भाववश मीठे बोलों का मरहम रख अपना मतलब निकाल ले जाता है, कोई मसखरी कर जांघों पर जली हुई सिगरेट बुझाता है। दसवीं कहेगा - अबकी तेरे पास जो आए तो.... दसवीं (ए) उसके मुंह पर थूक देना। दसवीं (बी) - उसके मुंह पर एक मुक्का जड़ देना। दसवीं (सी) - उसे बुरी तरह इग्नोर कर देना और फिर उसकी प्रतिक्रिया देखना। दसवीं (डी) - उसे कुछ मत कहना। एक शब्द भी नहीं। बस चुपचाप रहना। चूंकि ये सारी चीज़ें इस तरह से खत्म नहीं होती है इसलिए विकल्प डी। फिर क्या होगा? फिर वो कहेगा कि क्या बात है? तुम - (अति उत्साह से, ध्यान तोड़ते हुए) नहीं.....। नहीं तो। वो एक घुन्नापन ओढ़ लेगा और तुम्हें देखता रहेगा। तुम्हारे सब्र का बांध टूटता जाएगा। तुम भूलते जाओगे कि तुम्हें चुप रहना था। तुम्हें इस बात पर गुस्सा आता रहेगा कि वो इतना शांत कैसे है? लेकिन इस नाटक में वो नेचुरल रहेगा। जबकि तुम अतिरेक जोश में तमाम कसमों और तौबा के बाद भी कोई बात नहीं है को साबित करने में ऐसे उपक्रम करोगे कि ऊन का खुल कर लुढ़कता हुआ गोला बनते जाओगे। फिर न संभलने वाले जज्बात का ऐसा सैलाब जिसे बांधा नहीं जा सकता। हो सकता है कि तुम्हारे सब्र का यह बांध भी टूट जाए और तुम आखिरकार रो ही पड़ो..... लेकिन तुमने यह तो नहीं चाहा था। तुम अभी वर्तमान में इतने गुम हो कि सोच नहीं पा रहे कि तुम्हारी एक बार फिर से हार हो चुकी है। और उसकी जीत। हालांकि यह अभी परिभाषित नहीं है लेकिन इस तरह के कुछेक घटनाओं के दोहराव से यह साबित हो जाता है तुम्हें उसकी जरूरत है और आगे भी होगी लेकिन यह उसकी मर्जी और फुरसत होगी कि वह तुम्हारी पीठ थपथपाकर चुप कराने को उपलब्ध है या नहीं।
(फिलहाल सिसकी.......)
(फिलहाल सिसकी.......)
deja vu.
ReplyDeleteये घट चुका है तुम्हारे साथ पहले। फिर कब सम्हलोगे?
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वो अफसाना जिसे अंजाम तक पहुंचाना न हो मुमकिन...उसे एक फिलहाल तलक ठहराये हुये रखना?
तुम्हारे खत खुदा के दरवाजे तक पहुंचते हैं...कह दो एक रोज सारा कुछ...
पढ़ा है तुम्हें, जिया है तुम्हें, सोचा भी है दिन के कई पहर...हो ये भी तो सकता है कि कोई बस उतने भर के लिये था। तकलीफ जितनी उसने दी है, तुमने दामन फैलाये मांगी भी तो थी...वो जो खुदा बोल के बैठा है उपर। उससे कितने सवाल करोगे? रो रो के समंदर भर दो और फिर खाली दिल और दामन लिये उस किनारे से लौट आओ।
दोस्त, हम जन्म से अकेले हैं। उदास क्षणों में तो और भी। इतने दिनों से किसी को पढ़ते रहने पर कुछ हक बन जाता है।
सुनो, एक गीत सुनो...
धारा जो बहती है, मिलके रहती है
बहती धारा बन जा...फिर दुनिया से बोल
http://www.youtube.com/watch?v=pGYjHQbV1KE
सुनो, मुस्कुरा दो जरा। तुम्हारी सिसकी चुभती है बहुत।
समझाना तो उसे है जिसे सिसकने में पीड़ा हुयी, हम तो सोचते ही रहे।
ReplyDeleteनारियल सा दिल :)
ReplyDeleteशानदार लिखते हो आप .........
एक कालचक्र की भाँती नाराज होने, शिकायत करने, कभी ना बात करने, मनाने की उम्मीद के दौर से ज़िंदगी में असंख्य बार गुजरना होता है पर हर बार खुद को इस चक्र में पीसते देख कर कुछ नहीं सीखते, हर बार घटना की कीमत चुका नयी घटना के लिए खुद को तैयार कर लेते हैं यह पोस्ट सभी की आपबीती है.
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