उदासी का ऐसा घेरा जैसे काजल घेरे तुम्हारी आंखों को किसी सेनानायक द्वारा की गई मजबूत किलाबंदी द्वितीया की चांद की तरह मारे हमें घेर कर। पीड़ा तोड़ता है हमारी कमर प्रेम जैसे - सर्प का नेत्र सांझ जैसे नीला विष रात जैसे तुम्हारी रोती आंखों से बही काजल की अंतहीन क्षेत्रफल वाली सियाह नदी बही, उफनी, फैली, चली और निशान छोड़ गई। छत पर एक बच्ची घेरे में कित-कित खेलती मेमना कोहरे का एक टूसा सहमति से खींचती आई बाल बनाती, धूप हर मुंडेर से उतर जाती सूरज वही दिन लेकर लेकिन हर नए पर चढ़ता कलाकारी वही, बस कलाकारों के नए नाम गढ़ता दृश्य हमारी आंखों में बंद हो जाता है पेड़ पर हो रही बारिश झड़झड़ाती है हमने यह क्या था जो समझने में उम्र गंवा दी सुलगता क्या रहा दिल में फिर किसे हवा दी हाथ खाली थी खाली ही रही तुम जो मिले थे समझने वाले कहने वाले, रोने वाले कट जाती है नसें मन की तलछट में झुंड से छिटके मछली सी सर पटकती, धूप में और चमकती फिर प्यास से मरती दृश्य हमारी आंख में बंद हो जाता है कोई तितली पस्त होकर अपने पंख खोलती है नाव आँखों में चलती है, अंतस उसको खेता है ...
I do not expect any level of decency from a brat like you..