पानी, एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन पदार्थ है. पानी को जिस बर्तन भी बर्तन में रख दो, उसका आकार ले लेता है. पानी निकाल दो, हवा उसका जगह ले लेता है. मौसम भी पानी जैसा होता है. नहीं मौसम पूरी तरह से पानी जैसा नहीं होता. यह आयतन के मामले में पानी जैसा होता है. मौसम से हमारा वातावरण कभी खाली नहीं होता. एक जाता है तो दूसरा डेरा जमा लेता है. मौसम के रंग होते है, गंध होते हैं और स्वाद भी होते हैं. और जब मौसम में रंग, गंध और स्वाद नहीं होते तो यह पानी जैसा हो जाता है. तब मौसम बेरंग, और बेस्वादी हो जाता है. बहना - बिना किसी मकसद के, फर्क के. शहर के शोर में टूटा हुआ एक दिल जैसा, बस काम काम और काम की धुन, बस चलना, चलना और चलने की जिद जैसा, पुराने किले के सर पर पीछे से पड़ता चाँद के प्रकाश जैसा जिसके आगे किले लम्बाई से अँधेरा हो. एक विरोधाभास जैसा. हम सभी अल्लाह की संतान हैं पर उंच नीच का स्थाई स्वाभाव जैसा. वैसा. ज़हर, अमृत, विरासत, फकीरी, दुःख, सुख, ज्ञान, अँधेरा, रास्ता और रुकावटें. सभी कुछ ना कुछ छोड़ रहे हैं, कारखाना धुंआ छोड़ रही है. ... और मैं अपनी गर्ल...
I do not expect any level of decency from a brat like you..