कोमल को ‘ओए होय होय होय होय’ बोलने की आदत है और मेरा ‘शब्द जादू करते हैं’ कहने की. हम कह सकते हैं की यह दोनों हमारे तकिया कलाम है जो वक्त- बेवक्त हम दोनों दोहराते रहते हैं. पर बहुत फर्क है हम दोनों में. कोमल जो की मेरी बेटी है जी. वो जब ‘ओए होय होय होय होय’ बोलती है तो कई भाव में बोलती है... हैरानी में, शरमा कर, जब किसी पे प्यार आये तब. वो 15 साल की हो चुकी है पर पिछले 3 साल से खुद को 12 से आगे नहीं मानने को तैयार नहीं. सही भी है क्योंकि यह बदमाशी और मासूमियत ही है जो उसे 12 का बनाये हुए है...
मैं उसकी बात थोडा कम ध्यान से सुना करता हूँ क्योंकि उस वक्त भी मैं उसे दुआएं देता रहता हूँ...
वो जब भी ओए होय होय होय होय बोलती है तो उसके होंठ गोल हो जाते हैं और मुझे बेतहाशा अपनी गर्लफ्रेंड का सिगरेट पीकर उसका धुंआ मेरे मुंह पर फैंकने का दृश्य उभर जाता है. कोमल की आँखें ऊपर की ओर चढ जाती है और वो भी गोल होकर थिरकने लगती है. फिर मुझे लगता है सारी कायनात में कंपन होने लगी है. वो यह बोलते समय हर शब्द पर रूकती है जैसे अपना बोला हुआ सुनना चाहती हो. वो कहती है जब में यह बोलूं तो वातावरण में इक्को जैसा माहौल हो जाये पर मामला यहीं तक नहीं रुकता.
पिछली बार इतनी गहराई से यह मैंने तब परखा था जब अपार्टमेंट की सीढियों के निचले पायदान पर गौरव उससे यह कह रहा था की “कोमल तुम बहुत खूबसूरत हो” सहसा उसके मुंह से ओए होय होय होय होय निकल पड़ा था. वो मुझे यह बात बताने आती है. मैं दोहराता हूँ की कोमल तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. वो बताती है की मैं भी कोई लड़की अपने लिए देख लूँ जिससे फ्लर्ट कर सकूँ.
आज वो मुझसे अपने लिए एक पायल मांगने आई है. मैं उससे पूछता हूँ तुम्हारी आवाज़ की खनक तो ऐसे ही पूरे घर में कुछ खोजती हुई लगती है, तुम्हें पायल की क्या जरुरत ?
कोमल : (हँसते हुए) ओए होय होय होय होय
छः साल बाद
उसकी शादी की तैयारियां जोरों पर हैं. मैं और कोमल अभी भी सबकुछ ताक पर रख कर बातें करते हैं. वो संजीदा हो कर कहती है. पापा अपने हाथों की झुर्रियाँ मुझे दो.
मैं : ओए होय होय होय होय
कोमल : पापा एक बार और बोलो ना
मैं : क्यों ?
कोमल : शब्द जादू करते हैं ना पापा. इसलिए.
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(एक ओए होय होय होय होय यहाँ भी है. देखिये)
सेंटीमेंट्स से लबालब भर दिया है प्याला.. ये ओये होए कौन बोलता है.. जानता हूँ.. मेरी जान तुमने ही बताया है..
ReplyDeleteवाकई शब्द जादू करते है.. ओए होय होय होय होय
बेहद खूबसूरत और प्यारी कहानी, बिलकुल ही सागर अनमार्का, लेखन में इतने रंग और विविधता...कवि, तुम कहानी भी बहुत सुन्दर लिखते हो.
ReplyDeleteशब्द जादू करते हैं ,ओए होय होय होय होय
ReplyDeleteहम गाते-गरजते ’सागर’ हैं कोई हमें बाँध नही पाया
ReplyDeleteहम मौज मे जब भी लहराये सारा जग डर से थर्राया
हम छोटी सी वो बूंद सही, है सीप ने जिसको अपनाया
खारा पानी कोई पी न सका, इक प्यार का मोती काम आया
ओय होय होय होय होय्य्य!! :-)
सच मे कुछ शब्द जुबान के सिरचढ़े होते है..तकियाकलाम हो जाते हैं..और हमारे हर अनकहे के ’वक्यूम’ को ’फ़िल’ करते रहते हैं..यह पोस्ट भी (मगर कहानी नही कहूँगा इसे)शायद ऐसे ही शब्दों की पीढ़ियों के सफ़र की कहानी कहती है..जब एक उम्र के बाद तकियाकलाम जुबाँ के ठिकाने बदल लेते हैं..लोग चले जाते हैं..
ReplyDeleteLove your style of writing. Bilkul ओए होय होय होय होय
ReplyDeleteअच्छी कहानी सागर भाई...नए ज़माने के वक्त के परदे पर.
ReplyDelete:) :)
ReplyDeleteओय होय, ओय होय!
ReplyDeleteक्या-क्या हो लिया इस बीच!
अच्छी पोस्ट है सागर मियाँ
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