गुलाबी रंग की फ्रोक और लगभग उसी रंग की हेयर बैण्ड पहने ‘रेनी’ (मेरी बेटी) बालकनी से टाटा करते सूरज को चिढा रही है. उसने जाते हुए सूरज को ‘रुको साले, एक मिनट’ कह कर अपने हाथों से बैंगल खोला और उससे सूरज का नाप ले उसकी हैसियत बता दी है. इतने पर भी उसकी खीझ खत्म नहीं हुई तो उसने उसे मुंह दूषना शुरू कर दिया. अपमानित हो रहा लाल सूरज गुस्से के मारे और सूज कर बड़ा हो गया है और फलक पर किसी यूँ टिप्पा खा रहा है के जैसे किसी थके हुए नौजवान ने अपने कमरे के दीवार पर दिन भर लात खाया हुआ फुटबाल दे मारा हो.
रेनी भी भीतर से खीझ इसलिए महसूस कर रही है क्योंकि सूरज उसके हाथ नहीं आ रहा. उसका बस चले तो उसका मुंह नोच कर ही दम ले लेकिन फिलहाल जो कुछ उससे बन पड़ रहा है उसमें वो पूरे लगन से लगी हुई है.
बालकनी में जाती हुई धूप की अंतिम किरणें छिटक रही है. रेनी को गुमान होता है जैसे सूरज अपनी रूह यहीं छोड़ गया हो. उसे एक मौका मिल जाता है. अपनी सैन्डल उतार कर वो धूप पर ही सूरज को दिखा-दिखा कर सैन्डल बरसाए जा रही है. उधर सूरज भी पेड़ों के झुरमुट से लुक्का-छ्प्पी करता हुआ उसके चेहरे और आँखों पर अपनी चमक हर कुछ सेकेंड बाद टोर्च की लाइट की तरह दे मारता है जिससे रेनी की आँखें चमक उठती हैं. किसी खास कोण से देखने पर उसके कान के नीचे के सुनहरे रोयें चमक जाता है और उसके साथ उसके गले में हिलोरे मार तैरता चेन भी, जिसको वो अपनी मासूमियत में सोने का मान बैठी है और उसकी इसी ग़लतफहमी से हमारी जान छूटी है.
रेनी सूरज से इसलिए खफा है क्योंकि उसने कुछ मिट्टी के खिलौने बनाये थे जिससे खेल कर उसका दिल भर गया है. अब वो उसी मिट्टी से दूसरा खिलौना बनाना चाहती है. इसके लिए उसने छत पर उन खिलौनों को रख दिया है. उसका प्लान कुछ ऐसा है कि जब बारिश होगी तो यह खिलौने अपने आप गल जायेंगे फिर उस सौंधी और गीली मिटटी को थोडा नज़र बचा कर खाते हुए उससे नए खिलौने बना लेगी लेकिन यह सुरजवा तो जिद पर अड़ा हुआ है. रोज मुंह दिखlने आ जाता है और बारिश को आने नहीं देता. मैं उससे कहता हूँ कि यह काम तुम नल के पानी से भी कर सकती हो तो इस पर उसका कहना है कि इससे उन मिट्टी में खुशबू नहीं आती और मेरी कोई सहेलियाँ इस नियम से खिलौने नहीं बनाती.
खिलौने पर इतना गहरा चिंतन देख किसी को भी यह लगेगा कि रेनी अच्छा खिलौने बनाती होगी. ये बात दीगर है कि रेनी के किसी भी खिलौने के नाक-मुंह सीधे नहीं हैं (ठीक रेनी की ही तरह) लेकिन यह बात उसे कह देना किसी के बूते की बात नहीं है. खैर...
खिलौने पर इतना गहरा चिंतन देख किसी को भी यह लगेगा कि रेनी अच्छा खिलौने बनाती होगी. ये बात दीगर है कि रेनी के किसी भी खिलौने के नाक-मुंह सीधे नहीं हैं (ठीक रेनी की ही तरह) लेकिन यह बात उसे कह देना किसी के बूते की बात नहीं है. खैर...
मैं रेनी से कहता हूँ कि सूरज तुम्हारा बॉयफ्रेंड है, रोज तुमको देखने आता है और आगे भी आता रहेगा. वो ‘हुंह’ कहकर अपना मुंह टेढा कर देती है. इस दरम्यान बहुत कुछ घट जाता है. उसके उपरी और निचले होंठ सटते हैं एकबारगी लगता है जैसे वो उस वस्तु विशेष को ‘किस’ करेगी लेकिन अंत में अपने होंठों से ही उसे दूर करने का इशारा कर देती है. उसका कहना है कि सूरज बॉयफ्रेंड नहीं है और ना हो सकता है अगर होता तो मेरे हाथ आता और अब तक मेरे हाथों पिट चुका होता.
रेनी यह सब कहते हुए बहुत सहज है लेकिन उसका इस दौरान उसका पाँव हिलते जाना यह बता रहा है कि सूरज से गुस्से की कसक उसके मन के एक कोने में अभी भी पालथी मारे बैठी है.
...उधर टिप्पा खाता हुआ सूरज मुझे इशारे कर जाता है कि इस इतवार मैंने तुम्हारे कई सपनों के दीयों में अपनी ज्योति लगा फिर से उसे रोशन कर दिया है.
मैं रेनी को उसके भावी बॉय फ्रेंड के लिए इक शे’र गा कर सुनाता हूँ
“आज छत पर नहीं आया सूरज
धूप की आंच में बाल सुखाने में बड़ी देर हुई”
वाह सूरज की तो ऐसी तैसी रेनी जिन्दाबाद...
ReplyDeleteउसने जाते हुए सूरज को ‘रुको साले, एक मिनट’ कह कर अपने हाथों से बैंगल खोला और उससे सूरज का नाप ले उसकी हैसियत बता दी है.
ReplyDeleteसूरज को इतनी आसानी से उसकी हैसियत बता देना एक मासूम बच्चे के बस का ही है... हम बड़े तो बस उसकी चकाचौंध से ही दब कर रह जाते हैं...
निदा जी का एक शेर याद आ गया -
"बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे"
Bahut,bahut pyara aalekh!
ReplyDeleteक्या बात है सागर साहब, भाई वाह !
ReplyDeleteसूरज की गर्मी से भी तपती रेनी की गर्मी। वाह, बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह! सागर साब ये अंदाज़ तो आपका नहीं लगता ...किसी रिनी की मासूमियत और उस मासूम सी समझदारी का भ्रम बखूबी कलमबद्ध किया है आपने.....आपकी कलम का ऐसा रूप अच्छा लगा....मानव मन का सरल और निश्छल रूप रिनी के रूप में होता ही है हम सब के पास. बधाई हो
ReplyDeleteसही कहा कि अंदाज आप जैसा तो नही लगता..मगर सागर साहब ही क्या जिनका अंदाजे-बयाँ हम क्षुद्रजीवों की पकड़ मे आये..रेनी की यह मासूमियत ही है कि सूरज जा कर भी रेनी से दूर नही जा पाता..रात भर कहीं समंदर की तलहटी मे औँधा पड़ा रेनी की नाराजगी का अफ़सोस करता होगा..कि उसके खिलौनों को सूरज पसंद नही आता..सच मे अपनी रूह वहीं कही छोड़ आया होगा..शिकस्ता!!
ReplyDeletecute post..:)
ReplyDeleteबदले से मिजाज़ ..लेकिन खूबसूरत......
ReplyDeleteबस फर्क इतना है के आज से दस साल बाद जब इस पोस्ट को दोबारा लिखोगे ......रेनी के मुंह से" रुको साले, एक मिनट’".........को shayad change karoge
क़त्ल साग़र सा'ब क़त्ल !!
ReplyDeleteमहीने भर में पढ़ी गयी ढेर सारी पोस्टों में ३-४ बेहतरीन पोस्टों में से एक.
ज़्यादा कहना तारीफ़ को डायल्युट कर सकता है.
वैसे डिम्पल ने मेरा कमेन्ट चुराया है.
x-(
किसी खास कोण से देखने पर उसके कान के नीचे के सुनहरे रोयें चमक जाता है और उसके साथ उसके गले में हिलोरे मार तैरता चेन भी,
...कमाल Eye for detail.
...उसका कहना है कि इससे उन मिट्टी में खुशबू नहीं आती और मेरी कोई सहेलियाँ इस नियम से खिलौने नहीं बनाती.
ये पूरा पैरा अपने साथ ले जा रहा हूँ
एक पोस्ट गिफ्ट के रूप में दे रहा हूँ पसंद आएगी...
http://geetchaturvedi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
रेनी मासूम है अगर तो उसकी मासूमियत सिवाय बैंगल से सूरज नापने के अलावा कही नज़र नहीं आती...
ReplyDeleteमतलब के बॉय फ्रेंड के मायने उसे पता है वो साले कहती है..आई मीन आई कांट रिलेट विद दिस..