किसी टेसन से कोई कोयले वाली गाड़ी छूटने की अंतिम चेतावनी देती है।
प्रभाती गाई जा चुकी है। कोई टूटा सा राग याद आता है। पहले मन में गुनगुनाती है फिर आधार लेती हुई मैया शुरू करती है - उम्महूुं, हूं हूं हूं हूं, ला ला ला ला लाला ला ला...
अनाचक लय पकड़ में आ जाता है और अबकी दूसरी लाइन से शुरू करती है।
'कि रानी बेटी राज करेगी।
महलों का राजा मिला रानी बेटी राज करेगी।'
सर्दियों की सुबह है। धूप खिली है। आंगन में खटिया पर मैया अपने अपनी दोनों पैरों को सामने सीधा करके बैठी है। और पैरों पर ही रानी बेटी लेटी है। आंखें में काजल, बाईं तरफ माथे पर काजल का गोल टीका, हाथ-पांव फेंकते, हल्की जुकाम से परेशान, अनमयस्क सी। बीच बीच में मन बहल जाता है तो पैर के अंगूठे को उठा कर मुंह में रख लेती है। सरसों तेल की मालिश हो रही है। मैया बड़े जतन से बहलाती हुई, कभी डांट कर कभी ध्यान बंटा कर मालिश कर रही है। एक हथेली जित्ता पेट, दो अंगुल का माथा, थोड़ा लंबा घुंघराले केश, कुल मिला कर एक गोल तकिए जैसी आकृति, गुल गुल करती, स्पंजी। गुंधे हुए गीले आटे के स्पर्श सी। कभी कभी हैरान होती हुई कि क्या आदमी कभी इतना भी छोटा होता है। सामने बैठा बड़ा भाई जो कि खुद 5-6 साल है। कहता है -मुन्नी तो अभी बहुत छोटी है । हां तू तो जैसे बूढ़ा पीपल हो गया है - मैया कहती है। मुन्ना खुद उसके मुंह में उंगली फिरा कर जब तब जांचता रहता है कि उसके दांत आ रहे हैं या नहीं! तुतलाते हुए कहता है- अत्ता मैया! इचको भी दांत आएका तो पेट खलाब होगा ना ! मैया बस आंख तरेरती है बस उसको आगे नहीं बोलना है इसका पता चल जाता है।
आंगन के परले तरफ मंगल किसान का बेटा सोमू पानी को अभी अभी दाई तरफ मिट्टी की रोका लगा कर खेत की मेड़ पर बैठा है। उसकी कहानी अब भी थोड़ी बची हुई है। पहलवान सुबह की ताजगी में काली मंदिर के सामने वाली अखाड़े में तेल पिलाई मिट्टी पर लंगोट पहन मुगदर घुमा रहा है। बाहर सड़क पर टमटम वाला अब भी हांक लगा रहा है, हालांकि टमटम पर की दोनों पंगत भर चुकी है। बाज़ार तक के साढ़े तीन रूपए और कमा लेगा। एक सवारी कहता है - हमारे कपार पर भी एक बैठा दो। घोड़ा सूख कर कांटा हुआ जा रहा है और तेरा तोंद पसरा जा रहा है। अरे जिससे रोज़ी चले उसका ख्याल रखा कर।
काकी अपनी बहूओं को चाय पर जुटा अपनी वही पुरानी घुटने के दर्द वाली आलाप छेड़े हुए है। दही वाली पैसे का तगादा कर गई है। गोयठा वाली ममानी सी अधिकारवश गरिया गई है कि उसके पति को ही इस बार इमली वाले खेत की बटाई मिलनी चाहिए।
गांव का मुखिया परब- त्यौहार के बखत कुछ ज्यादा ही मेल जोल बढ़ाने लगता है, हमदर्द बनने लगता है। जानता है इस घर पर इकठ्ठा दो महीना का छुट्टी लेकर छोटका आने वाला है, हल्ला है कि अबकी वो सेना में सूबेदार हो गया है तो हर सुबह किबाड़ की झंझीट पीट कर पूछ लेता है कि छोटका आया कि नहीं ? सबको पता है कि जितना छोटका से उसको मतलब नहीं है उससे ज्यादा उसको सेना की ट्रिपुल एक्स रम से लगाव है। पूरे गांव भर में यह फैला है कि छोटका नेता की तरह कसम खाया था कि एक बार फौज में भरती हो जाए तो सगरे गांव भर के बुर्जुगन को सेना की दारू का स्वाद चखाएगा। तब्बे से जब इसके घर पर परका रहता है। वैसे खुद छोटका अभी तक मास और दारू से दूर रहता है। चाहे उसकी पोस्टिंग सियाचिन में हो श्रीलंका में।
किस्से... किस्से और बेशुमार किस्सा...। पैर की कानी ऊंगलियों की बिछिया से लेकर, अलता के हल्के होते रंग तक, दादी नम्बर एक नाटकबाज़। उसका काम बस पुराना बात याद करते हुए चाय सुड़कना। हर बात पर कहानी, लेकिन कहते हुए सजल होती आंखें। एकदम जीवंत। कभी मटकती, कभी शून्य में खो जाती हुई। हंसी की बात सुनाते हुए रो देती और रोते रूलाते अचानक से बातों का सिरा जाने कैसे तो घूमता कि पूरा घर हंसने लगता। जब सारी बहूंए हंसने में लीन हो तो अचानक से फटकार - बेसरम औरत सब, लाज लिहाज बिसरा कर ही-ही- ठी- ठी में केतना मन रमता है!
बड़की ताना देती है - काकी आज के जमाने को दूषने में नंबर एक उस्ताद। हमारे टाइम तो दही इतना शुद्ध कि हाथ में लेकर पड़ोस में दे आते थे। आज ? आज तो पानी का झोल। काकी कड़क कर टोकती है- ए बड़की! ढ़ेर मुंह खुल रहा है तुम्हारा। सब दांत तोड़कर पेट में डाल देंगे।
ठहाका।
पर मैया कुछ नहीं बोलती। वो खुश है उसके कानों में इस फलते फूलते बाग की खबर आ रही है उसके लिए बहुत है। रानी बेटी को पलटती है। पीठ पर की रीढ़ की हड्डी पर लंबे लंबे मालिश करती है। दोनों पैरों को लपेट लपेट कर धुले हुए कपड़े सी मोड़ती है। इससे घुटना मजबूत होता है। एक तो सरसों का तेल और धूप दोनों देह चुस्त दुरूस्त बनाए रखेगा।
छोटकी आश्चर्य से कह रही है को सुनाते हुए कह रही है - मैया आज भी पूरा गांव नंगे पैर चलती है, कुदाल चला लेती है। चश्मा नहीं लगा फिर भी दाल चावल चुन लेती है। बीस किलो का बोरी उठा कर मिल से आटा पीसवा (यही कहते हैं) लेती है।
मैया अपनी तारीफ सुन कर मुस्कुराती है। रानी बेटी की बांहों पर पकड़ थोड़ी कस जाती है। गाना फिर शुरू कर देती है - 'खुशी खुशी कर दो विदा, कि रानी बेटी राज करेगी।'
http://www.youtube.com/watch?v=eTj_Iep9zZg
ReplyDeleteसागर ऐसे गाँव अभी भी होते है क्या .....इतना सुकून,चुहलबाजी सब अभी जिंदा है ? इस मशीनी शहर की रफ़्तार ने देखने सोचने और महसूस करने की ताकत कुंद कर दी ....loved this write up
ReplyDelete.....saagar
ReplyDeletek rani beti raz karegi...
ReplyDeleteराग-दरबारी के अंश सा....
ReplyDelete