रजिया बड़े सधे क़दमों से नंगे पाँव दरगाह की सीढियां चढ रही है, शांत मन, आँखों में तेज और माथे पर करीने से लपेटा हुआ फेरैन है.
दोपहर की तेज धूप में फर्श पर पाँव पकते थे. उसने मन्नत वाले जगह पर रोशनदान सरीखे आकृति पर धागा बाँधा. यह जगह, उसी आहाते में दरगाह से थोडा हटकर था. पीछे खुला पहाड था जहां पश्चिम से आती हवा के तेज झोंके गर्मी कम करती थी, रजिया को लगा जैसे पीर बाबा खुद नेमत बरसा रहे हों. ऐसे में उसे अपनी मांगी हुई दुआ कबूल सी लगी और इसी सोच में रजिया का चेहरे पर नूर छा गया. उसने जमीन पर घुटने, तलवे और एडियाँ जोड़े और सजदे में झुकी, उठी और अपने दोनों हाथों की हथेलियों को सटाया. ऊपर ने दोनों रेखायों के चाँद बनाया जिसके ठीक ऊपर हारून का चेहरा उग आया. रजिया हौले से मुस्कुराई हथेलियों को अपने पलकों से लगाया फिर से नीचे झुकी, आँखें खोली और सामने पड़े मोबाईल पर हारून का नाम चमक उठा.
उधर हारून के आने की दस्तक हो चुकी थी और इधर रजिया के इबादत में खलल पैदा हो गई. दिल की सारी संयत धड़कनों ने अपना क्रम तोड़ दिया. मन चंचल हो उठा. साँसें तेज और बेतरतीब से छोटे-बड़े होकर चलने लगे. अंदर उठापटक, शोर और कोलाहल छा गया. ना उसके मन में अब खुदा की तस्वीर बन पा रही थी ना ही उसके पाँव दरगाह की फर्श पर टिक रहे थे. आँखें जो सादगी, पवित्रता, श्रद्धा और निश्चलता में डूबी थी उनमें सपनों की नाव डोलने लगे.
उसने हारून को मूर्त रूप में सोच कर अमूर्त हरारत को महसूस किया. 24 साला एक परिपक्व लड़की, चंचल लड़की के रूप में ढल गई थी. एकबारगी उसे ख्याल आया कि पीर बाबा भी यह सब देख रहे होंगे पर हालत उसके काबू में नहीं थे और इसे बेकाबू होता देखा उसने अपनी चंचलता का प्रमाण जीभ निकालकर, आसमान की ओर देख, आँखें छोटी कर, हलके इनकार में गर्दन डुलाते हुए 'सॉरी' बोलकर दिया और दौड पड़ी दरगाह के बाहर.
दिलों में ढेर सारा ईंधन लिए हारून और रजिया एक दूसरे के तरफ दौड़ते हुए आये. पार्क के ठीक मुहाने पर बायीं तरफ दोनों ट्रेनों में जोरदार टक्कर हुई. शुक्र है, कोई हताहत नहीं हुआ उलटे कई ज़ख्म भर गए. टक्कर जबरदस्त थी, एक दूसरे में समा जाने वाला जैसा उनका प्लान था. पर जिस्म हमेशा अलग ही होते हैं.
स्लीवलेस सूट पहनी रजिया जब हारून से अलग हुई तो हारून ने बरबस उसकी गुदाज़ बाहों को थाम लिया. लेकिन उस अनछुई, निचली चिकनी त्वचा पर हारून का हाथ देर तक ना रह सका और फिसल कर उसकी कोहनी पर आ रुका. एक पल के लिए हारून को रजिया की बाहें अपेक्षाकृत छोटी लगी पर हकीकत का ख्याल आते ही दोनों एक-दूसरे में खो गए..
...और दोनों अभी भी खोये हैं.
अरे मेरी जान..
ReplyDeleteतेरी जान की कसम...
सोचालय में बड़े दिनों बाद सुरूर की आमद है.. धांसू!!!
शुक्र है, कोई हताहत नहीं हुआ उलटे कई ज़ख्म भर गए. टक्कर जबरदस्त थी, एक दूसरे में समा जाने वाला जैसा उनका प्लान था. पर जिस्म हमेशा अलग ही होते हैं.
ReplyDeleteBahut jabardast..
बहुत अच्छा गद्य लिखा है। कहानी भी एक सरसराहट पैदा करती है।
ReplyDeleteBahut sashakt lekhan hai!
ReplyDeleteमन की हलचल को करीने से लपेटा है शब्दों में।
ReplyDeleteबेशक लाजवाब ! दुकान तंग चल रही है??? क्यों??? महँगी चीज़ें कम बिकती हैं. है ना ?
ReplyDeleteईमानदारी से कहूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं तुम्हारा लिखा पढकर.
साली जिंदगी....ऐसी ही है ....हम खामखाँ इसे दूसरे लिबासो से ढकते है
ReplyDeleteसागर!
ReplyDeleteरुक क्यू गये? ...और?
सब उम्र का तक़ाज़ा है भई..बदन के शज़र पर छाये उम्र के बसंती पत्तों का असर है..कि चाँद आसमान पर नही नाजुक हथेलियों मे खिलता है..और दुआओं की चाँदनी से ख्वाहिशों की रुपहली रेत पूरी भीग जाती है...दुनिया चाँद के माथे का टीका लगती है...प्रेम खुदा और प्रियतम मे फरक नही करता है..
ReplyDeleteसब कुछ खुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर
उठते नही हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद