वक्त हो गया जानम, अब अपने हल्के ऊनी कपड़े उतार कर मुझे दे दो। जो तुमने दिन भर पहन कर इधर उधर भागदौड़ की। तुमने दौड़ कर बस पकड़ी, हमारे भविष्य को सोच सोच कर लिफ्ट में पसीने पसीने हुई। ना ना बाथरूम के शीशे में अपने चेहरे पर जमी इस चिकनाई को धोना मत। मैं दिली तमन्ना थी कि तुम खूब थको। इस दुनिया के तमाम रंगो बू तुममें शामिल हो जाए। हाईवे के किनारे उग कर फैल जाने वाले मालती के फूलों जैसी। बेतरबीब और नैसर्गिक सौंदर्य। जब कभी मैं तुम्हारे तांबाई नीम उरियां गुदाज़ बाहों के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि शराब के बाद का संबल देने वाला बस यही एक हहराती डाल है जो इस वक्त ठहरी है। मैं जनम का प्यासा, नींद में प्यास लिए जब यह ख्याल करता हूं कि तुम्हारे इन बाहों पर दिन पर एक नमकीन नदी तैरी होगी जो अब सूख कर तुम्हें और नमकीन बना चुका है तभी तुम्हारी तुलना खुद से कर सकने में समर्थ होता हूं। इंसानों में क्लास वैसे भी कभी नहीं पसंद आया। इन दिनों दिन भी कैसा लगता है। कुछ चेता और बेसुध सा। जैसे नींद में गला सूख रहा हो। कोई परेशान करने वाला सपना देख रहा होऊं, जिसे तोड़ नहीं पा रहा होऊं और सूखे हलक पर खाली घूंट लेकर गला तर करने की कोशिश कर रहा होऊं।
ज़रा अपने बेबसी की सिसकारियां अपने चेहरे से उतार नीचे बहने दो। मैं भारी पलकों से देखूं कि वो तुम्हारे नेकलाइन में कैसे अपनी जगह बनाती है। इस पल में वो सब जो रूक रूक कर तुम्हारे संकोच, मौन मिश्रित इंकार में घुल नीचे उतरता आ रहा है वो मैं दरार भरी होंठों से चुग लेना चाहता हूं। जिसके लिए मैंने जिंदगी की रात का इंतज़ार किया है। दिन भर खुद को धूप में सुखाया है शाम को जलावन की तरह चूल्हे में डाला गया हूं। और तब भी जो नमी अंदर रह गई थी जिसके बायस धुंआ बन लोगों के आंखे गीली कर जल रहा हूं। मैंने इस लम्हे के लिए एक रोशनदानों भरी मीनार पर रात-रात भर पहरा दिया है। जिस पल तुम सबके लिए घृणा का पात्र हो, मेरे लिए हसीन हो। तो इस रात में इस लम्हे को जब तुम्हारी नंगी बाहों पर बस मेरी तर्जनी उंगली वहां रूकी हुई है। गौर से देखो इस उंगली को ये सोए रहने का भ्रम देते हुए जगी हुई हैं। मेरे मन की सारी उलझन उसमें समा आई है। जाने दो इसे ये जिस भी रस्ते जाना चाहती है।
यह जब कहते हुए जब भी मैं अपने ठंडे गाल तुम्हारे कपोल पर रख देता हूं वे लाल हो अपने दहकने की इत्तला देती है। रगों में खून का गर्म होकर दौड़ना तेज़ हो जाता है। मुझे चाकू से काटा हुआ टमाटर याद आता है कि जिसका एक सिरा काटे जाने के बाद भी अंत में जुड़ा हो जैसे तुम्हारा हृदय। तुम बिल्कुल वैसी ही हो जानेमन। पैमान में शराब सी लबरेज, जज्बात का तूफान लिए एक फल...... सुकून की पल सौंपती एक औरत।
हुए उतारो अब अपना पैरहन जानम। उतारो भी...
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeletereally... no words
ReplyDeleteआपको पढ़ना एक अनुभव है।
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=MzkutBxMQz0
ReplyDeletesunder
ReplyDeletejeete huye likhaa yaa likhte huye jiyaa
ReplyDeleteजब तक बात पल्ले न पड़े,अपन औपचारिक प्रशंसा करने वालों में नहीं हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
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