आई ओफेन सी यू इन माय बालकनी
इन द डिफरेंट पोजेज़
समटाइम्स विद काॅफी मग इन केजुअल
समटाइम्स व्हेन यू आर नॉट ओनली यू
इवेन नो, डैट इज़ योर इमेजि़ज, नॉट यू
बट देयर इज़ समवन इन माय हार्ट
हू डिक्लेयर्ड - यू आर माय हनी
आई ओफेन सी यू इन माय बालकनी...
ओ.. ओ.. ओ ...
कैसे कैसे बुनती हूं, क्या क्या गुनती हूं। दो कांटों के बीच ऊन का धागा उंगली से झगड़ता रहता है जैसे कोई लम्बी बहस हो या जैसे मेरी ही बेटी हो और यह शिकायत लेकर मायके आई हो कि कैसे घर में मुझे ब्याह दिया। हर फुर्सत में लड़ती हो। मैंने सर्दियों में कई कई स्वेटर बस इसी ख्याल में बुने हैं, तुम्हें सोचते हुए। तुम जो कि एक मसला हो बड़े भी बस ख्याल में ही हुए। तुम्हारे जितना स्वेटर तैयार हो जाता है मगर तुम वही के वही बने रहते हो।
इन दिनों आसमान मटमैला रहता है और पूरा वातावरण धूल से भरा लगता है मानो परले गली में कोई जोर जोर से झाड़ू लगा रहा हो। नीबूं के पेड़ों पर पत्ते नहीं हैं और वे ठूंठ बन गए है। तुम्हारा राह तकते मेरे पत्थर हो जाती आंखों सी। देखना कोई आधी रात काट ले जाएगा इसे अलाव के वास्ते।
इसी खिड़की पर बैठे कितने मंज़र तैरते, बहते हैं और छूटे भी जा रहे हैं। वक्त का कुछ गर्म सिरा हमारे बीच बचा रहे इसकी कोशिश में लगी रहती हूं।
वो देखो तुम खड़े हो, हंसते हुए तुम्हारे खुरदुरे दांत दिख रहे हैं। वो देखो तुम दिख रहे हो जब अपने कमरे में चिल्ला रहे हो, खिड़कियों पर के सारे शीशे चटख चुके हैं। तुम्हारी आवाज़ चिपकी है उनसे। आक्रोश में डूबी एक बेहद मासूम आवाज़। सुनने में एक शेर की दहाड़ पर हकीकत में एक मेमने का मिमियाना।
स्वेटर बुनते हुए इसके हर खाने में तुम्हें देखा है और चाहती हूं कि जब तुम इसे पहनो तो पूरे रेशे में मेरी उंगलियों का लम्स ताउम्र बसा रहे।
आॅलदो यू आर नॉट हीयर
स्टिल आई ओफेन सी यू इन माय बालकनी
ओ.. ओ.. ओ ...
a passionate extract intensely written!
ReplyDeleteस्वेटर बुनते हुए इसके हर खाने में तुम्हें देखा है और चाहती हूं कि जब तुम इसे पहनो तो पूरे रेशे में मेरी उंगलियों का लम्स ताउम्र बसा रहे।
ReplyDeleteAah! Kaise narm,komal khayalaat hain!
:-)
ReplyDeleteइसी खिड़की पर बैठे कितने मंज़र तैरते, बहते हैं और छूटे भी जा रहे हैं। वक्त का कुछ गर्म सिरा....
ReplyDeleteस्वेटर तो गर्म सिरे को सुरक्षित रखेगा उसकी तो नियति यही है....
शब्दों का ऐसा ख़ूबसूरत ताना-बाना बुनने वाले हाथ तही-दस्त कैसे हो सकते हैं भला...
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